Sunday, July 31, 2016

क्यों जरुरी है डेल्टा मर्डर मामले की सीबीआई जाँच ?

( अंतिम किश्त )
एक थी डेल्टा -9
क्यों जरुरी है डेल्टा मर्डर मामले की सीबीआई जाँच ?
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डेल्टा के साथ हुए यौनाचार एवं उसके पश्चात हुई निर्मम हत्या की हर कड़ी में साज़िश बहुत साफ नज़र आती है .जैन कॉलेज के प्रबंधन से लेकर पुलिस के अधिकारी कर्मचारी तक ,डेल्टा के लिए न्याय मांगने के लिए जुटे कुछ संदिग्ध लोगों से लेकर राजनीतिक आरक्षण की वजह से जनप्रतिनिधि बन पाये अनुसूचित जाति के नेताओं तक किसी ने भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाई हो ,ऐसा पूरे प्रकरण में दिखाई नहीं पड़ता है .
ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि सब तरफ अन्याय करने की हौड सी मची हुई थी .डेल्टा का मामला जिन धाराओं में दर्ज हुआ ,अभी तो उन्हीं पर सवालिया निशान है . जबकि यह सर्वविदित है कि नब्बे के दशक में बना अजा जजा अत्याचार निवारण अधिनियम इसी साल 26 जनवरी 2016 को समाप्त हो कर अजा जजा अत्याचार निवारण संशोधित अधिनियम के रूप में लागू हो चुका है ,बावजूद इसके न केवल पुराने कानून की धाराओं में मामला दर्ज किया गया ,बल्कि उसी पुराने कानून के तहत ही चालान पेश करके पुलिस ने अपने बौद्धिक दिवालियेपन को जगजाहिर करने का ही काम किया है .इतना ही नहीं पोक्सो एक्ट की भी धाराओं का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है ,जो धाराएं 5 एवं 6 लगाई गई है ,उनकी उपधाराओं का उल्लेख नहीं करना मामले को कमजोर करने का ही प्रयास लगता है .पोक्सो कानून की धारा 21 लगाई जानी चाहिए थी ,मगर नहीं लगाई गई है .हत्या के लिए लगाई गई भारतीय दंड संहिता की धारा 302 को तफ्तीश में बदल दिया गया है ,चार्जशीट भादस की धारा 305 के तहत पेश की गई है जो मर्डर को सुसाईड में तब्दील कर देती है .
क्या जाँच अधिकारी को दलित उत्पीडन ,यौन शोषण एवं पोक्सो जैसे कानूनों की सामान्य जानकारी भी नहीं थी या जानबूझकर यह गंभीर लापरवाही की गई ताकि दोषियों को बचाया जा सके .डेल्टा के शव का अपमान करनेवाले पुलिस अफसरान और संस्था अध्यक्ष के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नहीं किया जाना क्या साबित करता है ,जिन सरकारी अधिकारीयों ने अपने कर्तव्य के निर्वहन में अपराधिक लापरवाही बरती है ,उन पर अजा जजा अत्याचार निवारण संशोधित अधिनियम की धारा 4 के तहत कार्यवाही क्यों नहीं की गई ? कार्यस्थल पर यौन हिंसा सम्बन्धी दिशानिर्देशों का सपष्ट उल्लंघन पाये जाने के बावजूद जैन संस्थान की मान्यता रद्द करने सम्बन्धी किसी भी तरह की कार्यवाही या अनुशंसा नहीं किया जाना क्या किसी मिलीभगत की तरफ ईशारा नहीं करते है .डेल्टा हत्याकांड के नामजद आरोपी आदर्श जैन संस्थान के अध्यक्ष ईश्वरचंद वैद जिन्होंने अपनी जवाबदेही को नहीं समझा तथा डेल्टा के मर्डर को आत्महत्या बनाने और साक्ष्य मिटाने का आपराधिक कृत्य किया है ,उन्हें बाइज्जत दोषमुक्त करना किस तरह से न्यायसंगत ठहराया जा सकता है ?
इतना ही नहीं बल्कि डेल्टा के पीड़ित परिजनों को दलित अत्याचार निवारण कानून और पोक्सो एक्ट एवं राजस्थान पीड़ित प्रतिकर योजना के तहत मिलने वाला मुआवजा जो की 5 लाख 25 हजार रूपये होना चाहिए था ,वह देने के बजाय सिर्फ 90 हजार रुपये ही दिया जाना और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा मुआवजा देने का प्रार्थना पत्र अस्वीकार कर दिया जाना भी जुल्म की ही इस श्रृंखला की ही तो कोई कड़ी नहीं है ?
अब तक के पूरे घटनाक्रम से साफ हो गया है कि नोखा में डेल्टा के साथ जो जुल्म हुआ ,उस पर पर्दा डालने के काम में श्री आदर्श जैन संस्थान ,बीकानेर पुलिस और अनुसूचित जाति के जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत साफ साफ परिलक्षित होती है .हर कदम पर सब कुछ पहले से मैनेज्ड था ,पुलिस और अपराधी मिले हुए थे .सब मिलकर सच्चाई पर मिट्टी डालने का दुष्कृत्य कर रहे थे .किसी भी स्तर पर ऐसा नहीं लगता है कि डेल्टा मर्डर केस की सच्चाई को उजागर करने और अपराधियों को सजा दिलाने की कहीं भी ईमानदार कोशिस की गई हो !
जब यह स्पष्ट हो गया कि डेल्टा को राजस्थान के शासन और प्रशासन की ओर से न्याय नहीं मिल सकता है ,तो जस्टिस फॉर डेल्टा केम्पेन और दलित अत्याचार निवारण समिति सहित कई दलित एवं मानव अधिकार संगठनों की ओर से डेल्टा के गाँव त्रिमोही (गडरारोड )से लेकर देश और विदेशों तक सीबीआई जाँच की मांग को लेकर धरने ,प्रदर्शन ,रैलियां ,मोमबत्ती जुलुस आयोजित किये गये .
डेल्टा के साथ हुए अन्याय से जैसे जैसे लोग वाकिफ हुए जबरदस्त जन आक्रोश पैदा हो गया .सत्तारूढ़ दल के लिए जवाब देना भारी पड़ने लगा .इसी बीचकांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गाँधी डेल्टा के घर त्रिमोही पंहुच गये ,उन्होंने पीड़ित परिवार से मुलाकात कर डेल्टा को देश की बेटी करार देते हुए उसे न्याय दिलाने का ऐलान किया .मामला बढ़ता देखकर राज्य सरकार की नींद खुली और उसने पहली बार महसूस किया कि देशव्यापी दलित आक्रोश उसके लिए भारी पड़ सकता है ,इसलिए आनन फानन में डेल्टा के पिता महेंद्रा राम को जयपुर बुलाया .
चौहटन सुरक्षित क्षेत्र के विधायक तरुण राय कागा जो कि प्रारंभ से ही इस मसले में संवेदनशील रहे है तथा डेल्टा को न्याय मिले इसके लिए भी अपनी पार्टी में कोशिस करते रहे है ,उनके साथ महेन्द्रराम मुख्यमंत्री वसुंधराराजे से मिले .अंततः राज्य सरकार ने 20 अप्रैल 2016 को केंद्र सरकार को डेल्टा मामले की सीबीआई जाँच हेतु अनुशंसा कर दी .लोगों को उम्मीद जगी कि अब राज्य की निकम्मी पुलिस के हाथ से यह मामला केन्द्रीय जाँच ब्यूरो के पास चला जायेगा और मामले की निष्पक्ष जाँच होगी .
लेकिन सीबीआई जाँच के नाम पर राज्य और केंद्र की सरकार ने डेल्टा के परिजनों और उसके लिए संघर्षरत लोगों के साथ धोखा किया .राज्य सरकार द्वारा अनुशंसा किये जाने को तीन माह बीत गये है और डेल्टा की हत्या हुए चार माह गुजर गये है मगर आज तक सीबीआई जाँच के लिए नोखा नहीं पंहुची है .सीबीआई जाँच का पूरा पाखंड अब उजागर हो चुका है .राज्य की भाजपा सरकार ने सिर्फ अनुशंसा करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है और केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने आज तक एक प्रतिभावान दलित छात्रा के बलात्कार के बाद मर्डर जैसे जघन्य कांड की सीबीआई जाँच के सम्बन्ध में नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है .
शायद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लोग यह समझते है कि अभी तक इस देश के दलित बहुजन मूलनिवासी लोग मूर्खतापूर्ण जीवन ही जी रहे है ,उन्हें पानी में चाँद दिखा कर भी सन्तुष्ट किया जा सकता है ,डेल्टा मामले में राज्य सरकार द्वारा की गई अनुशंसा को ही सीबीआई जाँच का नोटिफिकेशन तक बताया जा रहा है . कुल मिलाकर सीबीआई हेतु जाँच की बात को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया और इसी बीच बीकानेर पुलिस ने अत्यंत ही लचर किस्म का चालान बीकानेर न्यायालय में पेश कर दिया जिसमे संस्थान अध्यक्ष ईश्वरचंद को पूरी तरह से बचा लिया गया है .वार्डन प्रिया शुक्ला और उसका पति प्रज्ञा प्रतीक शुक्ला पैरवी के अभाव में जमानत पर बाहर आ गये है . अब केवल बलात्कारी शिक्षक विजेन्द्रसिंह जेल में बचा है .
नारों का शोर थम चुका है .पीड़ित के घर तक आने जाने वाले राजनीतिक पर्यटक भी अब नहीं दिखलाई पड़ रहे है .धरनों के टेंट समेटे जा चुके है .सोशल मीडिया के शेर भी अन्यत्र व्यस्त हो गये है ,अब डेल्टा का मुद्दा उस तरह से हमारी संवेदनाओं को उद्देव्लित नहीं कर रहा है ,जिस तरह हमने रोहित वेमुला को भुलाया ,उसी तरह डेल्टा भी भुलायी जाने लगी है .चंद सरोकारी लोगों और डेल्टा के परिजनों को छोड़कर शायद ही कोई इस बात को याद करना चाहे कि देश की एक होनहार छात्रा की मौत की सच्चाई को सामने नहीं लाया जा सका . सरकारों का क्या ,उन्हें तो जब तक वोटों की चोट नहीं पड़े तब तक कोई जिए या मरे ,कोई फर्क ही नहीं पड़ता है .
संविधान व तमाम कानूनों के होने और आंदोलनों एवं संघर्षों के बावजूद हमने अपनी आँखों से डेल्टा के मामले में न्याय ,व्यवस्था और कानून को दम तोड़ते देखा है .अगर भारतीय लोकतंत्र को बचाना है तो यह जरुरी है कि डेल्टा सहित हर अन्यायपूर्ण मसले की निष्पक्ष जाँच हो तथा अपराधी चाहे वे कितने ही प्रभावशाली क्यों ना हो ,सलाखों के पीछे जाये ,अन्यथा हम एक विफल लोकतंत्र और अन्यायकारी राष्ट्र है .
जब तक डेल्टा जैसी देश की होनहार बेटियां इस देश में सुरक्षित नहीं है ,तब तक भारत माता की जय के नारे बेमानी है ,बेहुदे है और बकवास है !
( समाप्त )
- भंवर मेघवंशी
{ लेखक स्वतंत्र पत्रकार है .संपर्क – bhanwarmeghwanshi@gmail.com व्हाट्सएप – 9571047777 }

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