ईद '16
(यह ईद इस्लामिक टेररिज़्म के ख़िलाफ़)
● शहंशाह आलम
(यह ईद इस्लामिक टेररिज़्म के ख़िलाफ़)
● शहंशाह आलम
हर बच्चे की नींद में आती है ईद
ईद के चाँद की तरह सज्जित
जिसमें खिलौने होते हैं सेवईंयाँ होती ईद '16
(यह ईद इस्लामिक टेररिज़्म के ख़िलाफ़)ईद के चाँद की तरह सज्जित
जिसमें खिलौने होते हैं सेवईंयाँ होती ईद '16
● शहंशाह आलमहैं
दोस्त होते हैं ईदगाह होती है ईदी होती है
दोस्त होते हैं ईदगाह होती है ईदी होती है
बच्चों की नींद में इतने जतन से आई ईद को
धागा-धागा जोड़कर बचाए पैसे जैसी ईद को
कैसे दुःख में बदल जाता है कोई उन्मादी पल में
गोलियाँ बरसाकर बम मारकर छुरी घोंपकर
धागा-धागा जोड़कर बचाए पैसे जैसी ईद को
कैसे दुःख में बदल जाता है कोई उन्मादी पल में
गोलियाँ बरसाकर बम मारकर छुरी घोंपकर
अब ईदगाह जाने से डरते हैं बच्चे बुरी तरह
इन्हें वहाँ उगी घासों में इनके अपनों का ख़ून
छिपा दिखाई देता है इनके सपनों को डराता
इन्हें वहाँ उगी घासों में इनके अपनों का ख़ून
छिपा दिखाई देता है इनके सपनों को डराता
यह सच ही तो है इंसानियत को बचाने वाली
अच्छी ख़बरें आए कितने दिन हो गए
रमज़ान के पाक महीने में रोज़ा रखते हुए
अच्छी ख़बरें आए कितने दिन हो गए
रमज़ान के पाक महीने में रोज़ा रखते हुए
बच्चे सुनते आए थे रमज़ान में जंगें नहीं होतीं
रमज़ान के महीने में आतंकी हमले नहीं होते
इन दिनों अल्लाह की ख़ास मेहरबानियाँ होती हैं
रमज़ान के महीने में आतंकी हमले नहीं होते
इन दिनों अल्लाह की ख़ास मेहरबानियाँ होती हैं
मगर क्या ऐसा सचमुच हो रहा है मेरे भाई
वे जो अल्लाह के कहे को क़ुरान के कहे को नहीं मानते
क्या वे सचमुच मुसलमान होते होंगे बच्चे पूछना चाहते हैं
क्या वे सचमुच मुसलमान होते होंगे बच्चे पूछना चाहते हैं
बच्चे जो जानना चाहते हैं अपने बड़ों से साफ़-साफ़
ये बड़े किससे पूछकर देंगे जवाब इन बच्चों को
जिनके कि अपने मारे जा चुके हैं आतंकियों के हाथों
ये बड़े किससे पूछकर देंगे जवाब इन बच्चों को
जिनके कि अपने मारे जा चुके हैं आतंकियों के हाथों
बच्चे यह भी पूछते हैं अब अकसर कि अब्बू
स्कूल का दोस्त मुकेश कह रहा था मैं आतंकवादी हूँ
अब्बू, मैंने कहाँ धमाके किए... मैंने किसको मारा......
स्कूल का दोस्त मुकेश कह रहा था मैं आतंकवादी हूँ
अब्बू, मैंने कहाँ धमाके किए... मैंने किसको मारा......
अब इनके बड़े क्या कहें कि उनके भी दफ़्तर के लोग
उन्हें घृणा की निगाहों से देखते हैं उन्हें भी वही समझते हैं
उन्हें घृणा की निगाहों से देखते हैं उन्हें भी वही समझते हैं
बच्चे समझते हैं तब भी कि रिश्ते मकड़ी के जाले में
फँस चुके हैं उलझ चुके हैं बेहद बुरी तरह पूरी तरह
तब भी बच्चे मुसकुराते हैं दिल की गहराइयों से
फँस चुके हैं उलझ चुके हैं बेहद बुरी तरह पूरी तरह
तब भी बच्चे मुसकुराते हैं दिल की गहराइयों से
बच्चे जानते हैं किसी की हत्या करके नहीं
बल्कि अपनी हँसी से इंसानियत को बचा सकेंगे
आने वाले दिनों में ईद के चाँद जैसा जहाँ देकर।
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बल्कि अपनी हँसी से इंसानियत को बचा सकेंगे
आने वाले दिनों में ईद के चाँद जैसा जहाँ देकर।
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