Saturday, July 2, 2016

मुल्लाह की मुखालफत ही अगर प्रगतिशीलता होती तो ये काम जिन्नाह ने भी किया था. मुस्तफा कमाल पाशा और मुशर्रफ ने भी, उखड़ा क्या?

अभिनेता इरफ़ान के बयान के समर्थन में जो कथित प्रगतिशील दंदनाये घूम रहे हैं वह थोडा ध्यान दें. मुल्लाह की मुखालफत ही अगर प्रगतिशीलता होती तो ये काम जिन्नाह ने भी किया था. मुस्तफा कमाल पाशा और मुशर्रफ ने भी, उखड़ा क्या?
इरफ़ान के व्यक्तव्य को ध्यान से देखें दो स्पष्ट त्रुटियाँ है. ईद के मौके पर बकर ईद पर बयान, दूसरे वह भी हर इस्लामी तुर्रमखां की तरह दर्स दे रहा है कि असली कुर्बानी दो, फर्जी नहीं...
बेहतर होता रमजान की कथित बरकतों, शैतानी फिलसफे और खुदाई ताकत आदि पर कोई वैज्ञानिक विकल्प युक्त चिंतन देता और बताता कि दुनिया के और मुमालिक बिना किताब, रोजा-नमाज के कितनी तरक्की कर लिए है और तुम लगे हो माथा घिसने में?
एक दो को छोड़ कर सारे कलाकार अनपढ़- जाहिल हैं जिनका कोई सामाजिक- सियासी सरोकार नहीं, इन कीड़े मकोड़ों पर उर्जा व्यर्थ न करें तो बेहतर. बलराज साहनी, पृथ्वीराज कपूर, ए के हंगल, जोहरा सहगल वाली पीढी कभी की गायब हो चुकी, कभी देखा किसी इरफ़ान-आमिर-सलमान-शाहरुख़ टाइप कीड़े मकौड़े को उनका जिक्र करते?

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