Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
नैनीताल समाचार के बंद होने की आहट सुन रहा हूँ. चार दशक से यह अखबार उत्तराखंड के किसी ढोली या पुरोहित की तरह हर सुख दुःख में नौबत और घंटी बजाता रहा है. मैं लगभग पहले अंक से ही इसका पाठक और यदा कदा लेखक भी रहा हूँ . कयी बनिये और लाले अखबार , मैगज़ीन, चैनल आदि घाटा उठाकर भी चलाते रहे है, चलाते रहेंगे . क्योंकि उसके जरिये वह अपने कई टेढ़े हुए उल्लुओं को सीधा करते हैं . एक्टिविस्ट वणिक Rajiv Lochan Sah निसंदेह इस लोक यग्य को घाटा सह कर चलाते रहे हैं, और इस अखबार के कारण उन्हें चाहे सामाजिक प्रतिष्ठा मिली हो , लेकिन आर्थिक - राजनैतिक रूप से उनके लिए यह घाटे का सौदाही रहा है . आर्थिक और पारिवारिक कारणों से वह इसे बंद करने का अप्रिय निर्णय ले रहे हैं , तो इसके लिए उनकी भर्त्सना नहीं की जा सकती . आखिर वह कोई हातिमताई नहीं हैं , जो अपने चूतडों का गोश्त काट कर जनता को खिलाते रहें. उस प्रतिष्ठान में कार्यरत महेश जोशी का विस्थापन अवश्य चिंता का विषय है , और उनका पुनर्वास अकेले साह की नहीं, अपितु हम सबकी ज़िम्मेदारी है.. मैं अपने स्तर पर मदद करूंगा . मित्रों को भी प्रेरित करूँगा . आप भी करिए .जीत के रुमाल को हिला के लेंगे उत्तराखंड
{यह आलेख नैनीताल नगर में 53 दिन तक चले ‘नैनीताल समाचार के सांध्यकालीन उत्तराखंड बुलेटिन’ के अंतिम दिन ‘फिर मिलेंगे’ शीर्षक से दिनांक 25 अक्टूबर 1994 को सुनाया गया था। बुलेटिन के बारे में विस्तृत जानकारी ‘पहाड़’ द्वारा प्रकाशित गिरदा के काव्य संग्रह ‘उत्तराखंड काव्य’ में उपलब्ध है} उत्तराखंड आंदोलन में इन दिनों एक असमंजस […]
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