Monday, July 4, 2016

निशंक जी ने इक्कीस हज़ार करोड़ मांगे,हरीश रावत दस हजार करोड़ रुपये मांग कर भुट्टा और बर्गर "एन्जॉय" कर रहे हैं.आपदा तो पहाड़ पर रहने वालों के लिए है.सत्ता की सुरक्षित खोह में रहने वालों के लिए तो "प्लेसेंट रेन्स" हैं,सो भरपूर लुत्फ़ उठा रहे हैं!

आपदा के समय सत्ता की संवेदनहीनता बेहद व्यथित करती है.मुख्यमंत्री हरीश रावत जुबानी फुलझड़ी छोड़ते हैं कि सरकार आपदा पीड़ितों के साथ हैं.पर सरकार का साथ ऐसा है कि पिथौरागढ़ के बस्तड़ी में आपदा के ग्रास बने लोगों का दाह संस्कार करने के लिए लकडियाँ तक प्रशासन उपलब्ध नहीं करा सका.लकड़ियों की व्यवस्था के लिए दुःख की घडी में भी मारे गए लोगों के परिजनों एवं ग्रामीणों को शव सडक पर रख कर प्रदर्शन करना पड़ा.एक तरफ लोग शवों को सडक पर रख कर प्रदर्शन कर रहे थे और दूसरी तरफ देहरादून की सड़कों पर मुख्यमंत्री पर्यटक मुद्रा में भुट्टा,बर्गर आदि खा-खिला रहे थे.उनके पार्टीजनों और प्रशंसकों के अनुसार, यह मुख्यमंत्री के जमीन से जुड़े होने का एक और उदाहरण था.आपदा में लोग जमीन दोज होने के समय में जमीनी कहे जाने वाले मुख्यमंत्री का देहरादून की सड़कों पर पर्यटक मुद्रा में भुट्टा,बर्गर खाने जमीनी काम है या चरम संवेदनहीनता?
चमोली जिले के घाट में आपदा पीड़ितों के बीच थराली के कांग्रेसी विधायक प्रो.जीतराम गए तो उन्हें आपदा पीड़ितों का आक्रोश झेलना पड़ा.पता चला कि आपदा पीड़ितों के आक्रोश को शांत करने के बजाय पुलिस ने आपदा पीड़ितों पर लाठियां भांज दी.आपदा मे जिस तरह पूरा सरकारी तंत्र असहाय नजर आया और लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया,उससे लोगों का आक्रोश स्वाभाविक है॰ऐसे में आपदा पीड़ित विधायक के सामने आक्रोश न प्रकट करते तो क्या उनका फूल-मालाओं से स्वागत करते ?
ऐसा लगता है कि उत्तराखंड में आपदा के समय में सरकारें एकमात्र काम ,केंद्र को नुकसान का ब्यौरा भेजना ही समझती हैं.निशंक जी ने इक्कीस हज़ार करोड़ मांगे,हरीश रावत दस हजार करोड़ रुपये मांग कर भुट्टा और बर्गर "एन्जॉय" कर रहे हैं.आपदा तो पहाड़ पर रहने वालों के लिए है.सत्ता की सुरक्षित खोह में रहने वालों के लिए तो "प्लेसेंट रेन्स" हैं,सो भरपूर लुत्फ़ उठा रहे हैं!

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