Monday, July 11, 2016

वित्तरहित कॉलेजों को खोलने और अनुदान के लिए गलत तरीके से बेहतर रिजल्ट उपलब्ध कराने का यह धंधा क्या बगैर राजनीतिक संरक्षण के संभव है? आखिर अन्य राजनीतिक पार्टियां इस धंधे का जोरदार विरोध क्यों नहीं करतीं? हर बार ये एक साथ क्यों नज़र आती हैं?


20 साल पहले 11 जुलाई को राजनीतिक संरक्षण में बथानी टोला जनसंहार हुआ था, जिसके खिलाफ माले कार्यकर्त्ता सड़कों पर थे। उस जनसंहार में रणवीर सेना ने 21 गरीब दलित अल्पसंख्यक महिलाओं और बच्चों का कत्लेआम किया था। उस समय भी रणवीर सेना को संरक्षण देने वाली सरकार और पार्टियों ने चुप्पी साध रखी थी। रणवीर सेना के राजनीतिक संरक्षकों और न्यायिक अन्याय के खिलाफ अकेले भाकपा- माले संघर्ष करती रही है। आज 11 जुलाई 2016 को बिहार के आमलोगों, खासकर गरीब-दलित-कमजोर वर्ग के बच्चों को समान शिक्षा के अधिकार से वंचित करने वाली निजीकरण की नीति के खिलाफ माले कार्यकर्त्ता सड़कों पर थे, आज वे शिक्षा माफियाओं को संरक्षण देने वाली सरकार और राजनीतिक पार्टियों के सम्बन्धों की उच्चस्तरीय जांच की मांग कर रहे थे। जिस शिक्षा नीति ने लालकेश्वर और बच्चा राय जैसों को पैदा किया है, क्या उसके लिए जिम्मेदार राजनीति भी दंड के काबिल नहीं है? वित्तरहित कॉलेजों को खोलने और अनुदान के लिए गलत तरीके से बेहतर रिजल्ट उपलब्ध कराने का यह धंधा क्या बगैर राजनीतिक संरक्षण के संभव है? आखिर अन्य राजनीतिक पार्टियां इस धंधे का जोरदार विरोध क्यों नहीं करतीं? हर बार ये एक साथ क्यों नज़र आती हैं?

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