शौचालय की गंदगी से अधिक गंदगी में लिथड़ी हुई सोच को शौचालय
की
गंदगी से बाहर निकालो प्यारे !
इंद्रेश मैखुरी
गुजरात में गाय का चमड़ा निकालने वाले दलितों के साथ स्वयम्भू गौ रक्षकों ने जिस तरह की बर्बरता की,वह शर्मनाक है,जघन्य है,क्रूरतम है.इसने एक बार फिर हमारे समाज के उस क्रूर चेहरे को उजागार कर दिया,जो चाहे कितना ही आगे बढ़ जाए,जाति उसकी सोच,समझ का प्रस्थान बिंदु है.मरे जानवरों का चमड़ा निकालना हो तो दलितों का जिम्मा है. “स्वच्छता अभियान” में कितने ही फोटो खिंचवा लो,लेकिन अंततः सफाई का काम दलितों को ही करना है.जिन्होंने सोच के दायरे को शौचालय तक समेत दिया है,उनके शौचालयों के गंध से बजबजाते सीवरों के अंदर घुस कर उन्हें साफ़ करने का जिम्मा, इसी तबके का है.ज़रा खुद को इनकी जगह पर रख कर देखिये और सोचिये क्या बीतेगी जब मल-मूत्र से भरे गड्ढे में उतरना पड़े.सोच कर ही उबकाई आने लगती है.लेकिन भयानक कार्य भी इस तबके को करना होता है.सिर पर मैला ढोने जैसी अमानवीय प्रथा का निबाह भी यही तबका कर रहा है.ये तबका यदि गंदगी को साफ़ न करे तो,आप नारा भले ही “जहाँ सोच वहां शौचालय” का लगा लें पर शौचालय जाने की सोच भी नहीं पायेंगे.
एक तरक्कीपसंद,आधुनिक देश में होना तो यह चाहिए था कि समाज के किसी हिस्से को ऐसे नारकीय काम न करने पड़ें,इसकी व्यवस्था हो.आखिरकार हम अपने समाज के एक हिस्से को गंदगी में लिथड़ा हुआ छोड़ कर कैसे आगे बढ़ रहे हैं?आदमी आज भी गाय का चमडा निकालने और सीवर में उतरने को अभिशप्त है और आप नारा लगा रहे हैं कि देश बदल रहा है !
शहरों में गायें सड़कों पर पॉलिथीन खाती हुई आवारा घूमती रहती हैं.गाय के नाम पर इंसानों का क़त्ल करने वाले स्वयंभू गौ रक्षको,जरा ये तो बताओ कि शहरों में आवारा फिरती पॉलिथीन खाती ये गाय किसकी माता है?कौन इन्हें सुबह शाम दुहने के बाद सडक पर छोड़ जाता है?ये सब वही धर्मपरायण लोग हैं,जो गाय को माता कहते हैं !गुजरात में गाय का चमड़ा निकालने वाले दलितों को गाडी के पीछे घसीटने वाले बर्बर गुंडों क्या पॉलिथीन खाती,आवारा फिरती गाय को देख कर भी तुम्हारी भुजाएं फड़फड़ाती हैं?गाय के नाम पर इंसानों का कत्ल करने वालो जरा ये बताओ तो गौमांस के कारोबार में तुम्हारे बंधू-बांधव भी क्यूँ शामिल हैं?संगीत सोम जैसे स्वयंभू धर्मध्वजा धारी जब गौमांस का कारोबार करते हैं,तब तुम्हारी वीरता कहाँ उड़नछू हो जाती है ?जरा किसी दिन संगीत सोम जैसों को भी गौमांस का कारोबार करने के लिए घसीटो तो अपनी गाडी के पीछे बाँध कर ! तुम ऐसा नहीं कर सकते क्यूंकि तुम गुंडा प्रवृत्ति के लोग हो.गुंडों का ही यह चरित्र होता है कि वह कमजोर पर वार करके स्वयं को गुंडे या दादा के रूप में स्थापित करता है.
लेकिन गुजरात में दलितों ने इस गुंडई की सारी हेकड़ी निकाल दी है.वे ठीक कह रहे हैं कि तुम्हारी गौ माता है तो करो उसका अंतिम संस्कार.कुछ तथाकथित उच्च वर्णीय लोगों को नौकरियों में आरक्षण से बड़ी दिक्कत है.मल-मूत्र से बजबजाते सीवर में उतरने के मामले में जो आरक्षण है,आईये पहले उसे समाप्त करें.सिर्फ दालित का बेटा ही क्यूँ झाड़ू उठाये,वो ही गंदगी भरे जहरीले सीवर में क्यूँ उतरे?यहाँ भी तो बराबरी करने उतरिये.सीवर में उतरने का जो आरक्षण इन्हें हासिल है,उसे समाप्त करने उतरिये.उतर पायेंगे ?
सैकड़ों वर्षों से ये दलित अपने झाड़ू से समाज में फैली हुई गंदगी साफ़ करते रहे हैं.परंतु दिमागों में बसी नकली श्रेष्ठता बोध और जातीय घृणा की गंदगी को इनका झाड़ू नही बुहार सका.शौचालय की गंदगी से अधिक गंदगी में लिथड़ी हुई सोच को शौचालय की गंदगी से बाहर निकालो प्यारे !
की
गंदगी से बाहर निकालो प्यारे !
इंद्रेश मैखुरी
गुजरात में गाय का चमड़ा निकालने वाले दलितों के साथ स्वयम्भू गौ रक्षकों ने जिस तरह की बर्बरता की,वह शर्मनाक है,जघन्य है,क्रूरतम है.इसने एक बार फिर हमारे समाज के उस क्रूर चेहरे को उजागार कर दिया,जो चाहे कितना ही आगे बढ़ जाए,जाति उसकी सोच,समझ का प्रस्थान बिंदु है.मरे जानवरों का चमड़ा निकालना हो तो दलितों का जिम्मा है. “स्वच्छता अभियान” में कितने ही फोटो खिंचवा लो,लेकिन अंततः सफाई का काम दलितों को ही करना है.जिन्होंने सोच के दायरे को शौचालय तक समेत दिया है,उनके शौचालयों के गंध से बजबजाते सीवरों के अंदर घुस कर उन्हें साफ़ करने का जिम्मा, इसी तबके का है.ज़रा खुद को इनकी जगह पर रख कर देखिये और सोचिये क्या बीतेगी जब मल-मूत्र से भरे गड्ढे में उतरना पड़े.सोच कर ही उबकाई आने लगती है.लेकिन भयानक कार्य भी इस तबके को करना होता है.सिर पर मैला ढोने जैसी अमानवीय प्रथा का निबाह भी यही तबका कर रहा है.ये तबका यदि गंदगी को साफ़ न करे तो,आप नारा भले ही “जहाँ सोच वहां शौचालय” का लगा लें पर शौचालय जाने की सोच भी नहीं पायेंगे.
एक तरक्कीपसंद,आधुनिक देश में होना तो यह चाहिए था कि समाज के किसी हिस्से को ऐसे नारकीय काम न करने पड़ें,इसकी व्यवस्था हो.आखिरकार हम अपने समाज के एक हिस्से को गंदगी में लिथड़ा हुआ छोड़ कर कैसे आगे बढ़ रहे हैं?आदमी आज भी गाय का चमडा निकालने और सीवर में उतरने को अभिशप्त है और आप नारा लगा रहे हैं कि देश बदल रहा है !
शहरों में गायें सड़कों पर पॉलिथीन खाती हुई आवारा घूमती रहती हैं.गाय के नाम पर इंसानों का क़त्ल करने वाले स्वयंभू गौ रक्षको,जरा ये तो बताओ कि शहरों में आवारा फिरती पॉलिथीन खाती ये गाय किसकी माता है?कौन इन्हें सुबह शाम दुहने के बाद सडक पर छोड़ जाता है?ये सब वही धर्मपरायण लोग हैं,जो गाय को माता कहते हैं !गुजरात में गाय का चमड़ा निकालने वाले दलितों को गाडी के पीछे घसीटने वाले बर्बर गुंडों क्या पॉलिथीन खाती,आवारा फिरती गाय को देख कर भी तुम्हारी भुजाएं फड़फड़ाती हैं?गाय के नाम पर इंसानों का कत्ल करने वालो जरा ये बताओ तो गौमांस के कारोबार में तुम्हारे बंधू-बांधव भी क्यूँ शामिल हैं?संगीत सोम जैसे स्वयंभू धर्मध्वजा धारी जब गौमांस का कारोबार करते हैं,तब तुम्हारी वीरता कहाँ उड़नछू हो जाती है ?जरा किसी दिन संगीत सोम जैसों को भी गौमांस का कारोबार करने के लिए घसीटो तो अपनी गाडी के पीछे बाँध कर ! तुम ऐसा नहीं कर सकते क्यूंकि तुम गुंडा प्रवृत्ति के लोग हो.गुंडों का ही यह चरित्र होता है कि वह कमजोर पर वार करके स्वयं को गुंडे या दादा के रूप में स्थापित करता है.
लेकिन गुजरात में दलितों ने इस गुंडई की सारी हेकड़ी निकाल दी है.वे ठीक कह रहे हैं कि तुम्हारी गौ माता है तो करो उसका अंतिम संस्कार.कुछ तथाकथित उच्च वर्णीय लोगों को नौकरियों में आरक्षण से बड़ी दिक्कत है.मल-मूत्र से बजबजाते सीवर में उतरने के मामले में जो आरक्षण है,आईये पहले उसे समाप्त करें.सिर्फ दालित का बेटा ही क्यूँ झाड़ू उठाये,वो ही गंदगी भरे जहरीले सीवर में क्यूँ उतरे?यहाँ भी तो बराबरी करने उतरिये.सीवर में उतरने का जो आरक्षण इन्हें हासिल है,उसे समाप्त करने उतरिये.उतर पायेंगे ?
सैकड़ों वर्षों से ये दलित अपने झाड़ू से समाज में फैली हुई गंदगी साफ़ करते रहे हैं.परंतु दिमागों में बसी नकली श्रेष्ठता बोध और जातीय घृणा की गंदगी को इनका झाड़ू नही बुहार सका.शौचालय की गंदगी से अधिक गंदगी में लिथड़ी हुई सोच को शौचालय की गंदगी से बाहर निकालो प्यारे !
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