बहन जी , छह साल पहले दयाशंकर की ही तरह एक बिगडै़ल पुलिसिया साहित्यकार और कुलपति ने लेखिकाओं को वेश्या और कामदग्ध कुतिया कहा था। वह आप से भी नफरत करता था, आपके खिलाफ विश्वविद्यालय की गोष्ठियों में भाषण देता था। उसके द्वारा वेश्या कहे जाने पर खूब बवाल मचा था, लेकिन दक्षिण- वाम के ' राय साहबों' ने खुलकर, तथा साहित्य के नामवरों ने छिपकर उसकी मदद की, पालकी- ढोई। कई लेखिकायें भी धीरे- धीरे उसके साथ ठहाके लगाने लगीं। यह निर्लज्ज पुरूष दंभ से भरा समाज है। आजकल सुना है अति पुरानी वामपंथी पार्टी का वह सदस्य हो गया है! लगता है आपका राजनीतिक गलियारा ज्यादा साफ है, नैतिक दंभ से भरे साहित्यिक गलियारा से।
संजीव चंदन
संजीव चंदन
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