Friday, July 1, 2016

Indresh Maikhuri उत्तराखंड में मानसून, आपदा जैसे विस्फोट के साथ आया है.पहली बारिश में चमोली जिले के घाट और पिथौरागढ़ जिले के बस्तडी समेत कई क्षेत्रों में कई लोगों के बहने और जिन्दा दफ़न की दुखद खबरें दिन भर से प्राप्त हो रही हैं.लगभग 30 के करीब लोग अब तक बरसात का ग्रास बन चुके हैं.

Indresh Maikhuriउत्तराखंड में मानसून, आपदा जैसे विस्फोट के साथ आया है.पहली बारिश में चमोली जिले के घाट और पिथौरागढ़ जिले के बस्तडी समेत कई क्षेत्रों में कई लोगों के बहने और जिन्दा दफ़न की दुखद खबरें दिन भर से प्राप्त हो रही हैं.लगभग 30 के करीब लोग अब तक बरसात का ग्रास बन चुके हैं. यह बेहद दुखद है,जिनपर यह कहर टूटा,उनकी पीड़ा को कोई संवेदना,कोई मुआवजा नहीं भर सकता है.उनकी जीवन में ऐसी रिक्तता पैदा हो गयी है,जिसे भरा जाना बेहद मुश्किल है.बारिश द्वारा लील लिए जाने वालों के प्रति श्रद्धांजलि और उनके परिजन के प्रति हार्दिक संवेदना के अतिरिक्त अभी और दिया भी क्या जा सकता है-सो श्रद्धांजलि एवं संवेदना.
जिस समय आपदा का कहर टूटता है,उस समय कोई कुछ नहीं कर सकता.कोई सरकार नहीं,ओई प्रशासन नहीं.लेकिन उसके आगे-पीछे जरुर कदम उठाये जा सकते हैं,उठाये जाने चाहिए.यह स्पष्ट हो चुका है कि हमारे यहाँ बारिश तबाही ले कर ही आ रही है.हम बारिश पर काबू नहीं कर सकते.उससे उफनते नदी-नालों,गाड़-गदेरों पर भी काबू नहीं कर सकते. लेकिन हम अपनी आबादी के बड़े हिस्से को उनका ग्रास बनने के लिए भी नहीं छोड़ सकते.जिस समय बारिश का कहर टूटे,वह सोचने का समय नहीं है.सोचने का सही समय उससे पूर्व है.बारिश को होने से नहीं रोका जा सकता,लेकिन उससे होने वाले जान और माल के नुकसान को न्यूनतम करने के रास्ते तो निकालने ही होंगे.प्राकृतिक जल निकासी के अवरोध जितने कम किये जा सकेंगे,हम उतने आपदाओं के कम शिकार होंगे.गाड़-गदेरों से लेकर नदियों के मुहानों तक बसासत जितनी कम होगी,आपदा के शिकार भी हम उतना ही कम होंगे.मकान आदि बनाने की तकनीक पर भी विचार करने की जरुरत है.सीमेंट-कंक्रीट के बजाय ऐसी तकनीक और सामग्री के मकान जिनका बोझ जमीन पर कम-से-कम हों,जो पहाड़ की जमीन की भार वहन क्षमता(carrying capacity) के अनुरूप हों,वे भी आपदा की मार की तीव्रता को कुछ कम कर सकते हैं.विकास के नाम पर पहाड़ तोड़ने,पहाड़ खोदने और पहाड़ उजाड़ने को भी रोकना ही होगा.जिन क्षेत्रों/गाँवों नष्ट होने के कगार पर हैं,उन्हें तत्काल विस्थापित किया जाना चाहिए.हमारे यहाँ 90 के दशक से विस्थापन के लिए चिन्हित गाँव हैं,जो किसी भी क्षण आपदा का ग्रास बन सकते हैं.ऐसे बहुत सारे उपाय किये जाने की जरुरत है जो प्राकृतिक आपदाओं के कहर को न्यूनीकृत कर सके.
यह सब सिर्फ लोगों के चाहने मात्र से नहीं होगा बल्कि सरकार के स्तर पर ठोस नीति और दूरदृष्टि की,इस काम के लिए अत्याधिक आवश्यकता है.यही सबसे दुष्कर चीज है,जो हासिल की जानी है.
जिस समय आपदा का कहर टूटता है,उस समय कोई कुछ नहीं कर सकता.कोई सरकार नहीं,ओई प्रशासन नहीं.लेकिन उसके आगे-पीछे जरुर कदम उठाये जा सकते हैं,उठाये जाने चाहिए.यह स्पष्ट हो चुका है कि हमारे यहाँ बारिश तबाही ले कर ही आ रही है.हम बारिश पर काबू नहीं कर सकते.उससे उफनते नदी-नालों,गाड़-गदेरों पर भी काबू नहीं कर सकते. लेकिन हम अपनी आबादी के बड़े हिस्से को उनका ग्रास बनने के लिए भी नहीं छोड़ सकते.जिस समय बारिश का कहर टूटे,वह सोचने का समय नहीं है.सोचने का सही समय उससे पूर्व है.बारिश को होने से नहीं रोका जा सकता,लेकिन उससे होने वाले जान और माल के नुकसान को न्यूनतम करने के रास्ते तो निकालने ही होंगे.प्राकृतिक जल निकासी के अवरोध जितने कम किये जा सकेंगे,हम उतने आपदाओं के कम शिकार होंगे.गाड़-गदेरों से लेकर नदियों के मुहानों तक बसासत जितनी कम होगी,आपदा के शिकार भी हम उतना ही कम होंगे.मकान आदि बनाने की तकनीक पर भी विचार करने की जरुरत है.सीमेंट-कंक्रीट के बजाय ऐसी तकनीक और सामग्री के मकान जिनका बोझ जमीन पर कम-से-कम हों,जो पहाड़ की जमीन की भार वहन क्षमता(carrying capacity) के अनुरूप हों,वे भी आपदा की मार की तीव्रता को कुछ कम कर सकते हैं.विकास के नाम पर पहाड़ तोड़ने,पहाड़ खोदने और पहाड़ उजाड़ने को भी रोकना ही होगा.जिन क्षेत्रों/गाँवों नष्ट होने के कगार पर हैं,उन्हें तत्काल विस्थापित किया जाना चाहिए.हमारे यहाँ 90 के दशक से विस्थापन के लिए चिन्हित गाँव हैं,जो किसी भी क्षण आपदा का ग्रास बन सकते हैं.ऐसे बहुत सारे उपाय किये जाने की जरुरत है जो प्राकृतिक आपदाओं के कहर को न्यूनीकृत कर सके.यह सब सिर्फ लोगों के चाहने मात्र से नहीं होगा बल्कि सरकार के स्तर पर ठोस नीति और दूरदृष्टि की,इस काम के लिए अत्याधिक आवश्यकता है.यही सबसे दुष्कर चीज है,जो हासिल की जानी है.

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