Thursday, June 30, 2016

जल-जंगल-जमीन-जनतंत्र की रक्षा में जनसंघर्षों का राष्ट्रीय सम्मेलन; गुजरात 16 से 18 जुलाई 2016_ संघर्ष संवाद

जल-जंगल-जमीन-जनतंत्र की रक्षा में जनसंघर्षों का राष्ट्रीय सम्मेलन; गुजरात 16 से 18 जुलाई 2016_

संघर्ष संवाद



जनसंघर्षों का राष्ट्रीय सम्मेलन  
भूमि अधिकार आंदोलन तमाम अन्य जनवादी संगठनों तथा जनता के हकों के लिए लड़ रहे जनसंघर्षों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है।
दिनांक : 16, 17, 18 जुलाई 2016 
स्थान : गुजरात विद्यापीठ
निकट- इनकम टैक्स सर्किल, 
आश्रम रोड अहमदाबाद-380014, गुजरात
नोट 
गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से लगभग 6 कि.मी. दूर है यहाँ के लिए बहुत आसानी से ऑटो और बस हर समय उपलब्ध रहते हैं । गुजरात विद्यापीठ के लिए ऑटो का 60-70 रूपये लगता हैं ।
अहमदाबाद एअरपोर्ट से गुजरात विद्यापीठ की दूरी लगभग 10 किलोमीटर की है। 
स्थानीय संपर्क 
मुजाहिद 09328416230
हिरेन गाँधी 09426181334
उम्मीद है कि आप सभी इस सम्मेलन में शामिल होकर एक साॅझा संघर्ष की रणनीति तय करने में अपनी पूरी भागीदारी निभाएगे।
भूमि अधिकार आंदोलन तमाम अन्य जनवादी संगठनों तथा जनता के हकों के लिए लड़ रहे जनसंघर्षों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन गुजरात में  कर रहा है। हम देश के सभी क्रांतिकारी तथा जनवाद पसंद ताकतों से अपील करते हैं कि वे देश व गुजरात की आम जनता के अधिकारों, पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधन व जमीन को बचाने के लिए एक होकर आगे की रणनीति तय करने के लिए इस राष्ट्रीय सम्मेलन में भागीदारी करें। पेश है भूमि अधिकार आंदोलन का आमंत्रण; 

साथियों,
मौजूदा दौर देश के मजदूरों, किसानों और समस्त मेहनतकश जनता के लिए एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण दौर है। भारतीय राजसत्ता बहुत ही मुखर रूप से तमाम पूंजीवादी कॉर्पोरेट घरानों के साथ मिलकर मेहनतकश जनता का शोषण-उत्पीड़न कर रही है। देशी-विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए आम जनता के जल-जंगल-जमीन और प्राकृतिक संसाधनों को अत्यंत ही सस्ते और सुलभ तरीके से उन्हें उपलब्ध करवाया जा रहा है।

देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनिया देश के कोने-कोने में जाकर वहां निहित प्राकृतिक संसाधनों, कोयला, यूरेनियम इत्यादि, पर अपना कब्जा जमा रही हैं। ज्यादातर खनन के क्षेत्र आदिवासी बहुल इलाकों में पड़ते हैं। इन आदिवासियों का अपने जंगल और जमीन पर सार्वभौमिक अधिकार है, लेकिन उन्हें अपनी विरासत से वंचित कर अब बहुराष्ट्रीय कंपनियां उन पर अपना कब्जा जमा रही हैं और इसमें मदद कर रही हैं देश की केंद्र तथा राज्य सरकारें।

केंद्र में भाजपा नीत मोदी सरकार के आने के बाद से स्थिति बद से बदतर ही हुई है। जहां एक तरफ इस सरकार ने इन तमाम नीतियों के क्रियान्वयन में तेजी दिखाई है तो वहीं दूसरी तरफ इस उत्पीड़न और लूट का विरोध करने वाले जनवादी-क्रांतिकारी संगठनों और उनके कार्यकर्ताओं का देश-द्रोह के नाम पर बर्बर दमन किया है।

मोदी सरकार जमीन की लूट को और सुलभ बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक, 2015 लेकर आई। किंतु जब केंद्र सरकार व्यापक जन विरोध के बाद संशोधनों को अमल में नहीं ला सकी तो उसने राज्यों को अपने हिसाब से कानून बनाने का अधिकार दे दिया। यह राज्य के कानून ठीक वही हैं जो कि अध्यादेश लाकर पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए मोदी सरकार ने प्रयास किया था।
गुजरात में पिछले विधानसभा सत्र में कानून पास कर पूंजीपतियों को जनता की जमीन देने के लिए कानूनी जामा पहना दिया गया है और इसी गुजरात के विकास मॉडल को पूरे देश में लागू करने के पुरजोर प्रयास किए जा रहे हैं।

सरकार कॉर्पोरेट पक्षधर नीतियों को बनाने व लागू करने में जिस तरह की तेजी दिखा रही है उससे उनके अच्छे दिन के नारे व लोगों की अपेक्षाएं पूरी न होना स्पष्ट दिख रहा है। यह सरकार खुदरा क्षेत्र में ही नहीं बल्कि रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देकर पूंजीपतियों के लिए इन क्षेत्रों के दरवाजे भी खोल रही है। पूंजीपतियों को कोई सामाजिक जिम्मेदारी न उठानी पड़े उसके लिए श्रम कानूनों में सुधार, पर्यावरणीय कानूनों को खत्म करना और किसी भी कीमत पर भूमि देने के लिए कानून बनाना, इस सरकार का मुख्य एजेंडा हो गया है।

प्रधानमंत्री और उनकी सरकार सांप्रदायिक दंगों पर तो खामोश रहती है लेकिन जमीन की लूट को कानूनी जामा पहनाने में सबसे आगे रहती है। प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट इस देश के लोकतंत्र के लिए व इन पर निर्भर समुदायों के लिए गंभीर खतरा है। समुदायों द्वारा समय-समय पर आंदोलनों के जरिए इस अन्याय का कड़ा प्रतिरोध किया है।

गुजरात देश के सबसे बड़े समुद्र तटीय क्षेत्र वाले राज्यों में से एक है। इस पूरे तटीय क्षेत्र में थर्मल पावर प्लांट व रसायनिक संयंत्र को मंजूरी देकर इस क्षेत्र के पर्यावरण व मछुआरा समुदाय की आजीविका को समाप्त कर दिया गया है। वनाधिकार अधिनियम के तहत राज्य में सामुदायिक वनाधिकार दावों की स्थिति शून्य जैसी ही है।

गुजरात में देश के दो बड़े कॉरिडोर के नाम पर लाखों हेक्टेयर भूमि को जबरन छीनने का प्रयास जारी है।

देश के तमाम मेहनतकश किसान, मजदूर, कर्मचारी, लघुउद्यमी, छोटे व्यापारी, दस्तकारों, मछुवारे, रेहड़ी-पटरी वाले और इनके समर्थक प्रगतिशील तबकों के लिए यह अत्यंत चुनौतीपूर्ण दौर है। अब शासकीय कुचक्रो के खिलाफ संघर्ष के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। जनसंघर्षों से लंबे समय से जुड़े हुए संगठन ऐसी परिस्थिति में स्वाभाविक रूप से करीब आ रहे हैं, और सामूहिक चर्चा की प्रक्रिया शुरु हो गई है। इसी क्रम में 16, 17, 18 जुलाई 2016 को गुजरात के अहमदाबाद शहर में भूमि अधिकार आंदोलन तमाम अन्य जनवादी संगठनों तथा जनता के हकों के लिए लड़ रहे जनसंघर्षों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है।

हम देश के सभी क्रांतिकारी तथा जनवाद पसंद ताकतों से अपील करते हैं कि वे देश व गुजरात की आम जनता के अधिकारों, पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधन व जमीन को बचाने के लिए एक होकर आगे की रणनीति तय करने के लिए इस सम्मेलन में भागीदारी करें।

सह आयोजक
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), अखिल भारतीय किसान सभा (36 केनिंग लेन), अखिल भारतीय वन श्रमजीवी यूनियन, अखिल भारतीय किसान सभा (अजॉय भवन), भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक असली), अखिल भारतीय कृषक खेत मजदूर संगठन, जन संघर्ष समन्वय समिति, इन्साफ, अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन, किसान संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन, माइन मिनरल एंड पीपुल्स (एमएमपी), मध्य प्रदेश आदिवासी एकता महासभा, समाजवादी समागम, किसान मंच, विन्ध्य जन आन्दोलन समर्थक समूह, लोक संघर्ष मोर्चा, संयुक्त किसान संघर्ष समिति, दर्शन, गुजरात सोशल वाच, पर्यावण मित्र, गुजरात किसान संगठन, आदिवासी एकता विकास आंदोलन, लोक कला मंच, स्वाभिमान आंदोलन, गुजरात लोक समिति, और अन्य जन संगठन

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