Tuesday, June 28, 2016

Lalit Sati एक पागलपन में हम जी रहे हैं। बच्चों को टॉप कराएँगे, इंजीनियर बनाएँगे, डॉक्टर बनाएँगे। कंपटीशन की तैयारी के बड़े सेंटर कोटा और सफल प्रोफ़ेशनलों के बड़े सेंटर बंगलौर में हो रही आत्महत्याओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन होना चाहिए। पता चलेगा कि कैसे अपने बच्चों से उनका जीवन छीन रहे हैं हम।

Lalit Satiइंगलिश मीडियम स्कूल में कक्षा 1 में मैथ्स का टेस्ट होता है। बच्चे टेस्ट देते हैं। टीचर टेस्ट-शीट चेक करती है। नंबर नोट कर लेती है रजिस्टर में। फिर टेस्ट-शीट बच्चों को दे दी जाती है पेरेंट्स से साइन कराने के लिए। अगले दिन वापस बच्चे अपनी-अपनी टेस्ट-शीट टीचर के पास जमा करा देते हैं। टीचर को एक मामले में कुछ गड़बड़ लगती है। जिसमें नाम मिटाकर दूसरा नाम लिखा है। टीचर जाँच-पड़ताल करती है। मामला सामने आ जाता है।
दरअसल एक बच्ची जिसके नंबर कम आए थे, उसने सबसे अधिक नंबर वाली बच्ची कीटेस्ट शीट उसके बस्ते से चुराकर उसका नाम मिटाकर अपना नाम लिख लिया था।टीचर ने उस बच्ची से जब प्यार से पूछा तो उसने बताया कि मम्मा ने कहा था कि इस टेस्ट में नंबर कम आए तो मार पड़ेगी।
तो, गिरफ़्तार कर लिया जाए उस बच्ची को?
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यह सच्ची घटना पढ़ने के बाद उस बच्ची की माँ को ही क्यों दोष दें? हम सभी पगलाए हुए हैं अपने बच्चों के करियर को लेकर। बच्चा पेट में ही होता है, उसके करियर को लेकर चिंता शुरू हो जाती है। एक अंधी होड़। एक अंधी दौड़। नैतिकता बघारना बहुत आसान होता है, पर जरा सोचें हम सभी ज़िंदगी की इस आपाधापी में कहीं कुछ जुगाड़ लग जाए, कितनी कोशिश करते हैं। अपने-अपने बच्चा चाचा जुगाड़ते हैं। टॉप नहीं तो कम-से-कम बोर्ड परीक्षा के प्रैक्टिकल में ही नंबर दिलवा दें।
हमारा सिस्टम लोगों को मज़बूर कर रहा है कि जहाँ जुगाड़ बने, बनाओ, दूसरों के कंधों पर चढ़ आगे बढ़ जाओ। एजुकेशन सिस्टम की बुरी हालत है। लेकिन इस देश में धन्नासेठों के कर्ज़ माफ़ हो जाते हैं, पर शिक्षा में पैसा खर्च करने की बारी आती है तो सरकारों के पास खजाने में कमी का रोना होता है।
एक पागलपन में हम जी रहे हैं। बच्चों को टॉप कराएँगे, इंजीनियर बनाएँगे, डॉक्टर बनाएँगे। कंपटीशन की तैयारी के बड़े सेंटर कोटा और सफल प्रोफ़ेशनलों के बड़े सेंटर बंगलौर में हो रही आत्महत्याओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन होना चाहिए। पता चलेगा कि कैसे अपने बच्चों से उनका जीवन छीन रहे हैं हम।

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