Asf Wardha
किसी गरीब मजदूर के जान की क्या कीमत है ! 20 साल का एक नौजवान मजदूर देश के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में निर्माणाधीन छात्रावास में काम करते हुए मौत का शिकार बन जाता है और किसी को कानोंकान ख़बर तक नहीं होती। ठेकेदार मामले को दबाने में लग जाते हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन भी इसकी कोई परवाह नहीं करता है और हरकत में नहीं आता। जब यह बात हमें पता चली तो तुरंत ही ASF की टीम घटनास्थल पर पहुँची। हमने बाकी मजदूरों से पूछताछ की। लेकिन कोई कुछ बोलने-बताने को तैयार नहीं। साफ है कि इस दुर्घटना के जिम्मेदार पूंजीपतियों ने सबका मुँह बंद रखने का निर्देश दिया होगा। बहुत मुश्किल से हमें पता चला कि लालू नामक यह नौजवान मजदूर बालाघाट, मप्र का रहने वाला था और कैंपस में ही झोंपड़ी बनाकर रहता था। हम उसकी झोंपड़ी में भी गए। इसके पूर्व ‘’वामपंथी’’ कुलपति विभूति नारायण राय के कार्यकाल में भी मजदूरों की मौत हुई और मामले को दबा दिया गया। बहरहाल, ASF की तरफ से हम विवि के कुलपति और कुलसचिव से मिलकर पत्र दे रहे हैं और वर्धा के ज़िलाधिकारी को भी ज्ञापन देंगे कि इस मामले की जाँच कराई जाए, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए और दिवंगत मजदूर के परिवार को 5 लाख मुआवज़ा राशि दी जाए। हमें यह भी पता चला कि हिंदी विश्वविद्यालय परिसर में काम कर रहे किसी भी मजदूर का बीमा नहीं कराया गया है। जिन छात्रावासों-सड़कों-भवनों का निर्माण ये मजदूर हमारे लिए करते हैं, वे खुद कितने शोषण के शिकार होते हैं- यह हम सब के लिए बहुत शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है। हम सभी छात्र-छात्राओं का आह्वान करते हैं कि इस लड़ाई में हमारे साथ आएँ।जय भीम ! हूल जोहार !
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