इंद्रेश मैखुरी
गोपेश्वर.1 जुलाई को घाट क्षेत्र में बादल फटने और नदी में पानी बढ़ने के चलते भारी तबाही हुई .लगभग पांच लोग मारे गए,दो अभी भी लापता है और दर्जन भर मकान,दूकान क्षतिग्रस्त हो गए या नदी में समा गए. घाट चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर से 43 किलोमीटर की दूरी पर है और नंदप्रयाग से 18 किलोमीटर.नंदप्रयाग से घाट जाने वाली एकमात्र संकरी सी सड़क कभी भी अच्छी नहीं थी.अब तो आपदा का समय है.सारी सडक में जगह-जगह गड्ढे हैं और पत्थर भी.घाट कस्बे से कुछ पांच-सात किलोमीटर पहले सेरा नामक जगह है,जो गाँव भी,कुछ दुकानें भी यहाँ हैं.सेरा की दुकाने और आबादी क्षेत्र जैसे ही समाप्त होता है,वैसे ही दिखता है कि सड़क और जिस चट्टान को काट कर सडक बनायी गई थी,उसका भी अच्छा-ख़ासा हिस्सा नंदाकिनी नदी के प्रचंड वेग में समा गया है.यहाँ लगभग 100 मीटर सड़क गायब है.आगे सडक मार्ग से जाना संभव नहीं है.सेरा से मोख जाने वाली सडक पर कुछ पचास मीटर जाकर एक पहाड़ चढ़ना है,तब जा कर दूसरी तरफ पहुंचा जा सकता है.100 मीटर सडक बह गयी है,इसलिए तीन किलोमीटर चढ़ाई चढ़नी पड रही है,जिसमे एक हिस्सा तो काफी तीखी चढ़ाई वाला है.यह तीन किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ कर वापस नीचे सडक पर उतरना है,जहां से छोटे वाहन आपको घाट पहुंचा देते हैं,जो यहाँ से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है.
घाट के लिए वाहन पर चढ़ने से पहले ही सामने नदी के दूसरे छोर पर जाखणी गाँव दिखाई देता है.इस गाँव के बगल से गुजर रहे गदेरे में बेहद कम पानी बहता दिखाई दे रहा है.लेकिन उस गदेरे में आये बड़े-बड़े बोल्डर और उसका चौड़ा पाट देखर उस कहर का अंदाजा लगाया जा सकता है,जो 1 जुलाई को इसने बरपाया होगा.150 परिवारों का इस गाँव में संपर्क मार्ग पूरी तरह ध्वस्त हो गए हैं.
जीप में बैठ कर हम घाट पहुंचे.नंदाकिनी और चुफ्ल्यागाड़ में अभी भी पानी काफी आवेग से बह रहा है. मलबे से भरी दुकानें,आधे बह चुके और आधे नदी में लटक रहे मकान और सिर्फ थोड़े से मलबे के ढेर के रूप में बचे मकान-दुकानों के ध्वंसावशेष विनाश की कहानी आप बयान करते प्रतीत होते हैं.नंदाकिनी और चुफ्ल्यागाड़ दोनों में पानी का आवेग और इनके किनारे बसी सारी बसासत,(जिनमे से कईयों के घरों के पिछले दरवाजे सीधे नदी में ही खुलते हैं),इस बात का संकेत हैं कि बढ़ा हुआ पानी या भारी बरसात अथवा बादल फटना फिर किसी बड़ी आफत का सबब बन सकता है.
कर्णप्रयाग नगरपालिका के अध्यक्ष सुभाष गैरोला( Subhash Gairola),परिवर्तन यूथ क्लब के संयोजक अरविन्द चौहान (Arvind Singh Chauhan),हर्षवर्द्धन थपलियाल,ईश्वर नेगी और मैं, जिस दिन घाट गए उससे पहले मुख्यमंत्री हरीश रावत,उनके सलाहकार रणजीत रावत और कांग्रेसी विधायक, घाट का दौरा करके लौट चुके थे.गढ़वाल सांसद भुवन चन्द्र खंडूड़ी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट भी यहाँ का मुआयना करके जा चुके थे.लेकिन हालात में कोई बहुत बदलाव नजर नहीं आ रहा था.घाट बाजार में मुरझाई हुई सब्जियां इस बात का संकेत दे रही थीं कि यदि शीघ्र सड़क नहीं खुली तो आने वाले दिनों में खाद्यान्न,सब्जियों एवं अन्य जरुरी चीजों की भारी किल्लत होने वाली है.आलू काफी मात्रा में बाजारों में नजर आता है,जो कि स्थानीय तौर पर होता है.लोग बताते हैं कि गाड़ियों के लिए तेल से लेकर जरुरी चीजें नेपाली मजदूरों से मंगवाई जा रही हैं और लगभग सभी शिकायत के अंदाज में कहते हैं कि नेपाली सामान लाने के लिए 300 रूपया ले रहे हैं.जिस चढ़ाई पर अपने शरीर का बोझ भी कमर को दोनों हाथों से थामने के बावजूद हद से ज्यादा मालूम पड़े,उस चढ़ाई पर सिर और पीठ में बोझा ढोह करके लाने वाला नेपाली की मजदूरी यदि कम नहीं है तो बहुत ज्यादा भी नहीं है.बंद रास्तों के बीच किसी को उपचार की जरूरत हो तो वह भी बेहद मुश्किल है.घाट में सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है,जिसमे एक एलोपैथिक और एक आयुर्वेदिक डाक्टर है और एक फार्मासिस्ट भी है.पर जब पहाड़ में जिला अस्पताल से लेकर मेडिकल कॉलेज तक से मरीज देहरादून रेफर हो जाता है तो फिर इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से उपचार की अपेक्षा कैसे करें?
घाट के लिए वाहन पर चढ़ने से पहले ही सामने नदी के दूसरे छोर पर जाखणी गाँव दिखाई देता है.इस गाँव के बगल से गुजर रहे गदेरे में बेहद कम पानी बहता दिखाई दे रहा है.लेकिन उस गदेरे में आये बड़े-बड़े बोल्डर और उसका चौड़ा पाट देखर उस कहर का अंदाजा लगाया जा सकता है,जो 1 जुलाई को इसने बरपाया होगा.150 परिवारों का इस गाँव में संपर्क मार्ग पूरी तरह ध्वस्त हो गए हैं.
जीप में बैठ कर हम घाट पहुंचे.नंदाकिनी और चुफ्ल्यागाड़ में अभी भी पानी काफी आवेग से बह रहा है. मलबे से भरी दुकानें,आधे बह चुके और आधे नदी में लटक रहे मकान और सिर्फ थोड़े से मलबे के ढेर के रूप में बचे मकान-दुकानों के ध्वंसावशेष विनाश की कहानी आप बयान करते प्रतीत होते हैं.नंदाकिनी और चुफ्ल्यागाड़ दोनों में पानी का आवेग और इनके किनारे बसी सारी बसासत,(जिनमे से कईयों के घरों के पिछले दरवाजे सीधे नदी में ही खुलते हैं),इस बात का संकेत हैं कि बढ़ा हुआ पानी या भारी बरसात अथवा बादल फटना फिर किसी बड़ी आफत का सबब बन सकता है.
कर्णप्रयाग नगरपालिका के अध्यक्ष सुभाष गैरोला( Subhash Gairola),परिवर्तन यूथ क्लब के संयोजक अरविन्द चौहान (Arvind Singh Chauhan),हर्षवर्द्धन थपलियाल,ईश्वर नेगी और मैं, जिस दिन घाट गए उससे पहले मुख्यमंत्री हरीश रावत,उनके सलाहकार रणजीत रावत और कांग्रेसी विधायक, घाट का दौरा करके लौट चुके थे.गढ़वाल सांसद भुवन चन्द्र खंडूड़ी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट भी यहाँ का मुआयना करके जा चुके थे.लेकिन हालात में कोई बहुत बदलाव नजर नहीं आ रहा था.घाट बाजार में मुरझाई हुई सब्जियां इस बात का संकेत दे रही थीं कि यदि शीघ्र सड़क नहीं खुली तो आने वाले दिनों में खाद्यान्न,सब्जियों एवं अन्य जरुरी चीजों की भारी किल्लत होने वाली है.आलू काफी मात्रा में बाजारों में नजर आता है,जो कि स्थानीय तौर पर होता है.लोग बताते हैं कि गाड़ियों के लिए तेल से लेकर जरुरी चीजें नेपाली मजदूरों से मंगवाई जा रही हैं और लगभग सभी शिकायत के अंदाज में कहते हैं कि नेपाली सामान लाने के लिए 300 रूपया ले रहे हैं.जिस चढ़ाई पर अपने शरीर का बोझ भी कमर को दोनों हाथों से थामने के बावजूद हद से ज्यादा मालूम पड़े,उस चढ़ाई पर सिर और पीठ में बोझा ढोह करके लाने वाला नेपाली की मजदूरी यदि कम नहीं है तो बहुत ज्यादा भी नहीं है.बंद रास्तों के बीच किसी को उपचार की जरूरत हो तो वह भी बेहद मुश्किल है.घाट में सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है,जिसमे एक एलोपैथिक और एक आयुर्वेदिक डाक्टर है और एक फार्मासिस्ट भी है.पर जब पहाड़ में जिला अस्पताल से लेकर मेडिकल कॉलेज तक से मरीज देहरादून रेफर हो जाता है तो फिर इस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से उपचार की अपेक्षा कैसे करें?
आज के दिन पर घाट की प्राथमिक जरुरत यही है कि रास्ता खुले.मुख्यमंत्री हरीश रावत आये.उन्होंने आपदा प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया,मंदिर में पूजा की,मोटरसाइकिल पर बैठ कर लोगों की बात सुनी,अपने समधी के यहाँ खाना खाया.इस तरह की ख़बरें सृजित करवाने में हरीश रावत काफी माहिर हैं.इससे दूर बैठे लोगों को मुख्यमंत्री के जमीनी होने का आभास बना रहता है पर जमीन पर कुछ नहीं बदलता.
प्रशासनिक अमला अपनी मंथर गति से चलता रहता है.कोई आपात स्थिति सरकारी अमले की गति को नहीं बढ़ा सकती है.100 मीटर सड़क बही है,वे अपनी गति से सडक काट रहे हैं.4 जुलाई को गढ़वाल आयुक्त सी.एस.नपलच्याल का बयान था कि इसे बनने में बीस दिन लगेंगे.इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त चमोली के जिलाधिकारी विनोद कुमार सुमन का बयान अखबारों में है कि 7 दिन में सडक खुलेगी.मुख्यमंत्री और अन्य नेतागण चूँकि हेलीकाप्टर से आये,इसलिए सडक वाला विभाग यानि लोकनिर्माण विभाग ज्यादा चिन्तित भी नहीं होता.सेरा में जहाँ पर सडक बही है,वहां पर एक चमचमाता हुआ ब्रांड न्यू कम्प्रेसर खड़ा है.पूछने पर पता चला कि ये लोकनिर्माण विभाग का है.पर पहाड़ में सुराख करने का काम, एक राजस्थान नम्बर वाले पुराने काल बाह्य होने की ओर अग्रसर निजी ट्रेक्टर में लगे कम्प्रेसर से लिया जा रहा है.दो मजदूर बेहद खतरनाक स्थिति में चट्टान पर लगभग चिपके हुए से काम कर रहे हैं.चट्टान कटेगी तो सड़क के लिए रास्ता बनेगा,वो चाहे जब कटे !घाट से लौट कर जब हम वापस सेरा पहुंचे तो देखा कि एक दूकान में लोकनिर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता और अधीक्षण अभियंता बैठे हैं,चाय पी रहे हैं,काजू-बादाम खा रहे हैं. “साहब” लोगों का रूटीन है ऐसा,बिना काजू-बादाम से चाय उनके हलक से नीचे ही नहीं उतरती.आपदा है तो क्या,सडक काट रहे हैं,कट ही जायेगी !हमारे साथी कर्णप्रयाग नगरपालिका के अध्यक्ष सुभाष गैरोला इन अफसरान से कहते हैं कि कुछ वैकल्पिक रास्ता अपनाईये.नदी के दूसरे छोर पर भी एक जे.सी.बी. है, उसे भी उपयोग में लाईये.अफसरान हामी तो भरते हैं पर सड़क अभी भी उसी गति से बन रही है.साहब लोग काजू बादाम टूंग रहे हैं, ‘आपदा पर्यटन’ कर रहे हैं.
आपदा प्रबन्धन बेहद प्रचलित शब्द है,उत्तराखंड में तो गाहे-बगाहे सुनाई देता है.पर यह आपदा प्रबन्धन होता कैसे है,इसकी एक बानगी घाट में भी देखी जा सकती है.2013 की आपदा के बाद अन्य जगहों की तरह ही घाट में चूँकि नंदाकिनी और चुफ्ल्यागाड़ से कटाव हुआ था,इसलिए तटबंध बनाए जाने थे.सिंचाई विभाग ने तटबंध बनाने तो शुरू किये लेकिन उस तरफ बनाए,जहां आबादी नहीं थी.सिंचाई विभाग के इस कारनामे के खिलाफ इस वर्ष के शुरुआत में लोगों ने आन्दोलन भी किया.तब उन्हें आश्वासन दिया गया कि 15 दिन के भीतर आबादी क्षेत्र की तरफ भी तटबंध बना दिए जायेंगे.लेकिन 6 महीने बाद भी वे तटबंध नहीं बने.माकपा के चमोली जिला मंत्री भूपाल सिंह रावत, डी.वाई.ऍफ़.आई. के प्रांतीय महामंत्री मदन मिश्रा (Madan Mishra) और माकपा नेता ज्ञानेंद्र खंतवाल आरोप लगाते हैं कि सिंचाई विभाग की लापरवाही ने लोगों के जीवन को संकट में डाला.वे कहते हैं कि यदि समय पर तटबंध बन गए होते तो जन-माल के नुकसान को कम किया जा सकता था. घाट क्षेत्र के निवासी अखिल भारतीय किसान सभा के नेता मोहन सिंह ने तो चमोली कोतवाली में सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता और कनिष्ठ अभियंता के विरुद्ध नाम और पदनाम सहित तहरीर देकर भारतीय दंड सहिंता की धारा 188 के तहत मुक़दमा दर्ज करने की मांग की है.कामरेड भूपाल सिंह रावत बताते हैं कि जिलाधिकारी,चमोली ने दो बार सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता को घाट में आबादी क्षेत्र की तरफ तटबंध बनाने का निर्देश दिया था और उसके बाद भी उन्होंने ऐसा नहीं किया.यह भारतीय दंड सहिंता की धारा 188 के तहत दंडनीय अपराध है.धारा 188 में इस बात का प्रावधान है कि लोकसेवक के आदेशों की उपेक्षा करने और यदि ऐसी उपेक्षा से मनुष्य के जीवन,स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा पहुँचता है तो ऐसा कृत्य करने वाला जेल और अर्थदंड का भागी होगा.लोगों का जीवन,स्वास्थ्य,सुरक्षा सब कुछ सिंचाई विभाग की अकर्मण्यता के चलते दांव पर लग गया,सजा तो होनी चाहिए.पर सरकारी तंत्र अपने लोगों के खिलाफ कहाँ कदम उठाता है.इसलिए उक्त तहरीर की पावती हासिल करने के लिए भी कामरेड मोहन सिंह को पर्याप्त जद्दोजहद करनी पड़ी.
हर आपदा की तरह घाट में आई आपदा भी बेहतर नियोजन,आपदा से निपटने की पूर्व तैयारी,बसासतों के द्वारा नदियों को अतिक्रमित न किये जाने की चेतावनी लिए हुए है पर प्रश्न फिर वही कि क्या जन-गण के भाग्य विधाता इसे सुनेंगे?
प्रशासनिक अमला अपनी मंथर गति से चलता रहता है.कोई आपात स्थिति सरकारी अमले की गति को नहीं बढ़ा सकती है.100 मीटर सड़क बही है,वे अपनी गति से सडक काट रहे हैं.4 जुलाई को गढ़वाल आयुक्त सी.एस.नपलच्याल का बयान था कि इसे बनने में बीस दिन लगेंगे.इन पंक्तियों के लिखे जाते वक्त चमोली के जिलाधिकारी विनोद कुमार सुमन का बयान अखबारों में है कि 7 दिन में सडक खुलेगी.मुख्यमंत्री और अन्य नेतागण चूँकि हेलीकाप्टर से आये,इसलिए सडक वाला विभाग यानि लोकनिर्माण विभाग ज्यादा चिन्तित भी नहीं होता.सेरा में जहाँ पर सडक बही है,वहां पर एक चमचमाता हुआ ब्रांड न्यू कम्प्रेसर खड़ा है.पूछने पर पता चला कि ये लोकनिर्माण विभाग का है.पर पहाड़ में सुराख करने का काम, एक राजस्थान नम्बर वाले पुराने काल बाह्य होने की ओर अग्रसर निजी ट्रेक्टर में लगे कम्प्रेसर से लिया जा रहा है.दो मजदूर बेहद खतरनाक स्थिति में चट्टान पर लगभग चिपके हुए से काम कर रहे हैं.चट्टान कटेगी तो सड़क के लिए रास्ता बनेगा,वो चाहे जब कटे !घाट से लौट कर जब हम वापस सेरा पहुंचे तो देखा कि एक दूकान में लोकनिर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता और अधीक्षण अभियंता बैठे हैं,चाय पी रहे हैं,काजू-बादाम खा रहे हैं. “साहब” लोगों का रूटीन है ऐसा,बिना काजू-बादाम से चाय उनके हलक से नीचे ही नहीं उतरती.आपदा है तो क्या,सडक काट रहे हैं,कट ही जायेगी !हमारे साथी कर्णप्रयाग नगरपालिका के अध्यक्ष सुभाष गैरोला इन अफसरान से कहते हैं कि कुछ वैकल्पिक रास्ता अपनाईये.नदी के दूसरे छोर पर भी एक जे.सी.बी. है, उसे भी उपयोग में लाईये.अफसरान हामी तो भरते हैं पर सड़क अभी भी उसी गति से बन रही है.साहब लोग काजू बादाम टूंग रहे हैं, ‘आपदा पर्यटन’ कर रहे हैं.
आपदा प्रबन्धन बेहद प्रचलित शब्द है,उत्तराखंड में तो गाहे-बगाहे सुनाई देता है.पर यह आपदा प्रबन्धन होता कैसे है,इसकी एक बानगी घाट में भी देखी जा सकती है.2013 की आपदा के बाद अन्य जगहों की तरह ही घाट में चूँकि नंदाकिनी और चुफ्ल्यागाड़ से कटाव हुआ था,इसलिए तटबंध बनाए जाने थे.सिंचाई विभाग ने तटबंध बनाने तो शुरू किये लेकिन उस तरफ बनाए,जहां आबादी नहीं थी.सिंचाई विभाग के इस कारनामे के खिलाफ इस वर्ष के शुरुआत में लोगों ने आन्दोलन भी किया.तब उन्हें आश्वासन दिया गया कि 15 दिन के भीतर आबादी क्षेत्र की तरफ भी तटबंध बना दिए जायेंगे.लेकिन 6 महीने बाद भी वे तटबंध नहीं बने.माकपा के चमोली जिला मंत्री भूपाल सिंह रावत, डी.वाई.ऍफ़.आई. के प्रांतीय महामंत्री मदन मिश्रा (Madan Mishra) और माकपा नेता ज्ञानेंद्र खंतवाल आरोप लगाते हैं कि सिंचाई विभाग की लापरवाही ने लोगों के जीवन को संकट में डाला.वे कहते हैं कि यदि समय पर तटबंध बन गए होते तो जन-माल के नुकसान को कम किया जा सकता था. घाट क्षेत्र के निवासी अखिल भारतीय किसान सभा के नेता मोहन सिंह ने तो चमोली कोतवाली में सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता और कनिष्ठ अभियंता के विरुद्ध नाम और पदनाम सहित तहरीर देकर भारतीय दंड सहिंता की धारा 188 के तहत मुक़दमा दर्ज करने की मांग की है.कामरेड भूपाल सिंह रावत बताते हैं कि जिलाधिकारी,चमोली ने दो बार सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता को घाट में आबादी क्षेत्र की तरफ तटबंध बनाने का निर्देश दिया था और उसके बाद भी उन्होंने ऐसा नहीं किया.यह भारतीय दंड सहिंता की धारा 188 के तहत दंडनीय अपराध है.धारा 188 में इस बात का प्रावधान है कि लोकसेवक के आदेशों की उपेक्षा करने और यदि ऐसी उपेक्षा से मनुष्य के जीवन,स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा पहुँचता है तो ऐसा कृत्य करने वाला जेल और अर्थदंड का भागी होगा.लोगों का जीवन,स्वास्थ्य,सुरक्षा सब कुछ सिंचाई विभाग की अकर्मण्यता के चलते दांव पर लग गया,सजा तो होनी चाहिए.पर सरकारी तंत्र अपने लोगों के खिलाफ कहाँ कदम उठाता है.इसलिए उक्त तहरीर की पावती हासिल करने के लिए भी कामरेड मोहन सिंह को पर्याप्त जद्दोजहद करनी पड़ी.
हर आपदा की तरह घाट में आई आपदा भी बेहतर नियोजन,आपदा से निपटने की पूर्व तैयारी,बसासतों के द्वारा नदियों को अतिक्रमित न किये जाने की चेतावनी लिए हुए है पर प्रश्न फिर वही कि क्या जन-गण के भाग्य विधाता इसे सुनेंगे?
फोटो क्रेडिट- अरविन्द चौहान, सुभाष गैरोला
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