Sunday, July 10, 2016

एक थी डेल्टा -2 - भंवर मेघवंशी

एक थी डेल्टा -2
- भंवर मेघवंशी 
राजस्थान के सीमावर्ती बाड़मेर जिले का क़स्बा गडरारोड कभी पाकिस्तान का हिस्सा हुआ करता था ,नाम था गडरा .विभाजन के बाद निरंतर युद्धों की विभीषिका झेलने के कारण पाकिस्तानी सीमा में स्थित गडरा उजड़ गया तथा वहां के ज्यादातर नागरिक गडरारोड आ कर बस गये .स्थानीय निवासी रमेश बालाच बताते है कि तारबंदी होने से पहले तक सीमापार से लोग आ कर कभी भी यहाँ पर लूटपाट कर लेते थे ,जिंदगी बहुत दूभर थी .लोग घर बनाते थे और सेना उजाड़ देती थी .अक्सर गाँव खाली करना पड़ता था .जिसके चलते सब कुछ अनिश्चित सा था .लोग पक्के घर बनाने से भी हिचकते थे ,पढाई ,व्यापार आदि पर भी इसका असर पड़ता था .
इसी गडरा रोड से दो किलोमीटर पाकिस्तान सीमा की तरफस्थित है त्रिमोही गाँव .भारत का आखिरी गाँव ,जहाँ से आप सरहद को अपनी आँखों से देख सकते है .तारबंदी साफ दिखलाई पड़ती है. सीमापार की एक मस्जिद भी दिखती है ,जहाँ से दिन में कई बार अजान की आवाज भी सुनाई देती है .हालाँकि तारबंदी के चलते सीमापार से होने वाली लूटपाट से तो राहत है ,मगर हर वक़्त फौजी बूटों की आवाज़ अब भी यहाँ के लोगों को असहज रखती है .सामरिक महत्व के इस इलाके में सेना ,पुलिस तथा कई प्रकार की गुप्तचर एजेंसियां अपनी मुस्तैद निगाहें जमाये रहती है .सरहदी गाँव होना ही चुनौती से भरा होता है ,ऊपर से थार के रेगिस्तान का हिस्सा होना जीवन को और विकट बनाता है. ऐसे दुर्गम गाँव त्रिमोही में साठ फीसदी आबादी मेघवाल अनुसूचित जाति की है ,दो परिवार भील जनजाति के है और लगभग चालीस प्रतिशत लोग अल्पसंख्यक समुदाय के है .दलित आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यहाँ पर बेहद भाईचारे से रहते है तथा एक दुसरे के सुख दुःख में सहभागी बनते है .
त्रिमोही के अधिकतर मकान कच्चे या अधपके हैतो कुछेक पक्के भी ,पर भव्य और विशाल मकान इस गाँव में नहीं मिलते .सरकारी सुविधाओं के नाम पर आंगनबाड़ी है और एक राजकीय प्राथमिक पाठशाला भी .इसी विद्यालय में कार्यरत शिक्षक है महेंद्रा राम मेघवाल .42 वर्षीय महेंद्रा राम मेघवाल त्रिमोही के इसी विद्यालय ,जिसे पहले राजीव गाँधी स्वर्णजयंती पाठशाला कहा जाता था ,में बतौर शिक्षा सहयोगी नियुक्त हुए थे ,उन्हें सिर्फ 1200 रुपये मानदेय दिया जाता था .इतने अल्प मानदेय पर उन्होंने वर्ष 1999 से काम शुरू किया तथा 2007 तक प्रबोधक के नाते काम किया ,वेतन फिर भी मात्र 4,200 रूपये ही था .बाद में उन्हें तृतीय श्रेणी शिक्षक के रूप में इस स्कूल में ही नियुक्ति मिल गई .अभी भी वेतनमान कोई बहुत अधिक नहीं है .सब कटने के बाद उनके हाथ में महज़ 13 हजार रूपये आते है .इतने कम वेतनमान के बावजूद शिक्षक महेंद्रा राम का सोच बहुत विस्तृत रहा ,उन्होंने सदैव अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाने की सोच रखी .
वेतन के अलावा आय का कोई जरिया तो घर में है नहीं ,पिताजी के पास थोड़ी बहुत जमीन है ,जिसपर सिर्फ बरसाती फसल होती है ,जिससे घर का कुछ महीने खाने पीने का काम चल जाता ,बाकि घर खर्च और पढाई का सारा भार महेंद्रा राम मेघवाल के ही कन्धों पर रहा है .महेंद्रा राम के पास दो छोटे छोटे कमरे ही है ,उन्होंने अपना सर्वस्व अपनी संतानों को पढ़ाने में लगाने की ठान रखी थी .
उनकी पत्नी लहरी देवी एक सुघड़ गृहिणी और खेती व् पशुपालन में मनोयोग से जुटी रहने वाली कर्मयोगिनी है ,जिसका ख़्वाब भी अपने बच्चों को आगे बढ़ाने का ही रहा है .महेंद्रा राम के परिवार में उनके बुजुर्ग पिता राणा राम सहित कुल 6 लोग अब बचे है .महेंद्रा राम ,उनकी पत्नी लहरी देवी ,दो बेटे प्रभुलाल व अशोक कुमार और छोटी बेटी नाखू कुमारी .दोनों बेटे पी एम टी की तैयारी के लिए कोटा और बीकानेर में रह कर पढ़ रहे थे ,छोटी बेटी नाखू ग्यारहवीं कक्षा उत्तीर्ण कर चुकी है .इसी हंसते खेलते परिवार की प्रिय बेटी थी डेल्टा .सरहदी गाँव त्रिमोही की प्रथम बालिका जिसने आज़ादी के बाद बारहवीं कक्षा तक पढाई करने का गौरव हासिल किया था .
शिक्षक महेंद्रा राम मेघवाल का एक ही जूनून था कि वह अपने बच्चों को ऊँची से ऊँची शिक्षा दिलाना चाहते थे ,उनकी इच्छा थी कि डेल्टा पढ़ लिख कर एक दिन आई पी एस बने ,बेटे डॉक्टर बने और छोटी बेटी भी अपनी रूचि के मुताबिक उच्च शिक्षा हासिल करें. इसके लिए उनकी अल्प आय काफी नहीं थी ,इसलिए महेंद्रा राम ने कई प्रकार के लोन ले रखे है ,उन्होंने ढाई लाख रुपये का सरकारी तथा तक़रीबन 18 लाख रुपये साहूकारी ब्याज पर ले कर अपने बच्चों का भविष्य बनाने के सपने बुने और रात दिन इसी उधेड़बुन में लगे रहे .जिंदगी अच्छे से चल रही थी .बच्चे भी पढाई लिखाई में होशियार साबित हो रहे थे ,पर उनको सबसे ज्यादा नाज़ अपनी लाडली बेटी डेल्टा पर था ,जो बचपन से ही होनहार थी और अपनी प्रतिभा के चलते पुरे गाँव ,परिवार तथा समाज की लाड़ली बेटी बनी हुई थी .महेंद्रा राम उम्मीदों से भरे हुए थे ,पर भारत जैसे जातिवादी देश में किसी दलित पिता को इतना खुश होने की कोई जरुरत नहीं है ,क्योँकि यहाँ पग पग पर ऐसी क्रूर सामाजिक व्यवस्था बनी हुई है ,जो कभी भी इस देश के मूलनिवासियों के चेहरे की मुस्कान छीन सकती है
..और अंततः महेंद्रा राम के साथ भी वही हुआ जो एकलव्य के साथ हुआ ,जो निषाद के साथ हुआ ,जो रोहित वेमुला के साथ हुआ .महेंद्रा राम के जीवन भर की तपस्या एक ही दिन में भंग कर दी गई .जिस लाडली बेटी डेल्टा को वो आईपीएस देखना चाहते थे ,उसका मृत शव देखना पड़ा और जिन बेटों को डॉक्टर बनाना चाहते थे ,वो पढाई अधूरी छोड़ कर घर लौट आये .जिस छोटी बिटिया नाखू को वो खूब पढाना चाहते थे ,वह अपनी पढाई छोड़ कर घर बैठी हुई है .अपनी लाड़ली बेटी खो चुके महेंद्रा राम कहते है कि- “ हम नहीं चाहते है कि नाखू भी डेल्टा की तरह छोटी जिंदगी जिए ,हम अपने बच्चों को नहीं खोना चाहते है “.....( जारी )
- भंवर मेघवंशी
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है,सम्पर्क सूत्र - bhanwarmeghwanshi@gmail.com ,मोबाईल-9571047777 )

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