नैनीताल समाचार बंद होने की आहट,अब नये सिरे से घर से बेदखली का अहसास हो रहा है।
पलाश विश्वास
मुझे बहुत चिंता हो रही है नैनीताल और नैनीताल समाचार को लेकर।इससे पहले राजीव नयन बहुगुणा ने नैनीताल समाचार बंद होने की आहट लिखकर चेतावनी के साथ इसे बचाने की अपील भी की है।अब डीएसबी कालेज में हिंदी विभाग के अद्यक्ष रहे प्रख्यात साहित्यकार बटरोही जी ने फिर नैनीताल समाचार पर लिखा है।
मुझे बहुत चिंता हो रही है नैनीताल और नैनीताल समाचार को लेकर।इससे पहले राजीव नयन बहुगुणा ने नैनीताल समाचार बंद होने की आहट लिखकर चेतावनी के साथ इसे बचाने की अपील भी की है।अब डीएसबी कालेज में हिंदी विभाग के अद्यक्ष रहे प्रख्यात साहित्यकार बटरोही जी ने फिर नैनीताल समाचार पर लिखा है।
नैनीताल समाचार न होता तो अंग्रेजी माध्यम से बीए पास करने वाला मैं अंग्रेजी साहित्य से एमए करते हुए हिंदी पत्रकारिता से इसतरह गूंथ न जाता।
यह सही है कि गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी की प्रेरणा से हाई स्कूल पास करते ही मैं बांग्ला के साथ हिंदी में भी लिखने लगा था।लेकिन तब मैं कविताएं और कहानियां लिख रहा था।दैनिक पर्वतीय में भी मैं कविताएं ज्यादा लिखा करता था और कभी कभार पन्ना भरने के मकसद से धीरेंद्र शाह के कहने पर टिप्पणी वगैरह कर देता था।
जनपक्षधर पत्रकारिता की दीक्षा मेरी नैनीताल समाचार में ही हुई।शेखर पाठक और गिरदा से मैंने रपटें लिखनी सिखी।
कितने लोग उस टीम में थे।विपिन त्रिपाठी और निर्मल जोशी,जो बाद में हाईकोर्ट के वकील बने,दिवंगत हो गये।भगत दाज्यू दिवंगत हो गये।षष्ठीद्तत भट्ट नहीं रहे।शेरदा अनपढ़ नहीं रहे।उप्रेती जी नहीं रहे।गोविंद पंत राजू बड़े पत्रकार बन गये।तो धीरेंद्र अस्थाना बड़े सहित्यकार।कैलाश पपनै भी नैनीताल समाचार से जुड़े थे तो दिवंगत सुनील साह और प्रमोद जोशी भी ।वाया गिरदा देशभर के रंगकर्मी भी हमसे जुड़े रहे हैं।शेखर जोशी से लेकर शैलेश मटियानी तक सारे लोगं से नैनीतास समाचार की वजह से घरेलू संबंध बने।नैनीताल समाचार की वजह से महाश्वेता देवी हमें कुमायूंनी बंगाली कहती लिखती रहीं।
हरीश पंत और वपवन राकेश नैनीताल में और लखनऊ से नवीन जोशी व्यवस्था की कमान संबाले रहते थे।सुंदरलाल बहुगुणा,चंडी प्रसाद भट्ट,ज्ञान रंजन,वीरेन डंगवाल,देवेन मेवाडी,पंतज बिष्ट सेलेकर हिंदी साहित्य के तमाम लोग और हिमालय से हर शख्स नैनीताल समाचार से जुड़ा था।उमा भट्ट से लेकरउत्तराखंड की कितनी महिला कार्यक्रता,शमशेर सिंह बिष्ट की अगुवाई में उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के तमाम कार्यकर्ता जिनमें मौजूदा मुख्यमत्री हरीश रावत,सांसद प्रदीप टमटा,राजनेता राजा बहुगुणा और पीसी तिवारी किसका नामोल्लेख करुं और किसका न करुं।
नैनीताल के तमाम रंगकर्मी जहूरआलम की अगुवाई में नैनीताल से जुड़े थे तो डीएसबी कालेज के हर अध्यापक का जुड़ाव नैनीताल समाचार से था।इनमें से चंद्रेश शास्त्री तो दिवंगत हो गये।फेड्रिक स्मैटचेक भी नहीं रहे।बटरोही जी हैं।अजय रावत जी से अब बहुत दिन हुए हमारा संपर्क नहीं रहा।नैनीताल समाचार हर मायने में नैनीताल,उत्तराखंड और हिमालय का प्रतिनिधित्व करता रहा है।उसके बिना न मैं नैनीताल और न हिमालय की कोई कल्पना कर सकता हूं।
नैनीताल समाचार को हम गिरदा जैसे लोगों की विरासत कह सकते हैं लेकिल इसे संपादक राजीव लोचन शाह का निजी उद्यम न माने तो बेहतर हो।चिपको ांदोलन से लेकर पहाड़ के जीवन मरण के हर मसले को लगातार संबोधित करने का यह सिलसिला बंद हो जायेगा तो यह न सिर्फ हिमालयी जनता का,बल्कि हिंदी पत्रकारिता का भारी अपूरणीय नुकसान होगा।
हम नैनीताल समाचार के माध्यम से ही लघु पत्रिका आंदोलन होकर समयांतर और समकालीन तीसरी दुनिया से जुड़े।
राजीवदाज्यू को मैं किशोर वय से जानता रहा हूं और वे सचमुच मेरे बड़े भाई रहे हैं।उनका परिवार मेरा परिवार रहा है और उनका घर मेरा घर रहा है।मैं जब भी पिछले 36 साल की पत्रकारिता में बसंतीपुर अपने घर गया तो नैनीताल हर हाल में जाता रहा है क्योंकि नैनीताल समाचार की वजह से हमेशा नैनीताल मेरा घर रहा है।
अब नये सिरे से घर से बेदखली का अहसास हो रहा है।
आदरणीय बटरोही जी ने लिखा हैः
क्षेत्रीय पत्रकारिता का प्रतिमान 'नैनीताल समाचार'
=================================
=================================
चार-पांच दिन से मैं भाई साहब की बरसी की वजह से गाँव में था. परसों पंकज बिष्ट जी का हैरानी भरा फोन आया कि क्या 'नैनीताल समाचार' बंद हो रहा है ? मैं खुद भी इस खबर को सुन कर हैरान हुआ. नैनीताल लौटकर फेसबुक टटोला तो काफी बाद में महेश जोशी की खबर के साथ एक बहुत अशिष्ट भाषा में लिखी पोस्ट पर नजर पड़ी.
मुझे लगता है, यह पोस्ट एकदम व्यक्तिगत दुराग्रहों के आधार पर लिखी गयी है, ठीक ही हुआ कि इसे व्यापक प्रचार नहीं मिला.
जहाँ तक 'नैनीताल समाचार' और राजीव लोचन साह का प्रश्न है, आज के दिन इन दोनों के बिना नैनीताल ही नहीं, उत्तराखंड की जागरूक पत्रकारिता की कल्पना नहीं की जा सकती. इसके शुरुआती दिनों से ही मैं राजीव को सताता रहा हूँ, बल्कि कहना चाहिए, उकसाता रहा हूँ. एक अंक तो इसका मैंने भी सम्पादित किया है. मुझे हमेशा लगता रहा है कि एक क्षेत्रीय अख़बार के रूप में ही नहीं, एक जागरूक पत्रकारिता के प्रतिमान के रूप में यह अख़बार हिंदी पत्रकारिता में याद किया जायेगा. (राजेन्द्र यादव का जब भी फोन आता था, वे 'नैनीताल समाचार' का जरूर जिक्र करते थे.) एक छोटी जगह से, जहाँ हर छोटी-सी बात को भी व्यक्तिगत आक्षेप के रूप में लिया जाता हो, इतना जिंदादिल और निष्पक्ष समाचार-पत्र निकाल ले जाना छोटी बात नहीं है.
मुझे इस अख़बार की सबसे बड़ी बात यह लगती है कि इसके संपादक ने कभी भी इसे अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल नहीं किया. (अगर मैं गलत नहीं हूँ तो यह बात उन्होंने निश्चय ही शैलेश मटियानी से सीखी होगी) हाल के अंकों में संपादक के नाम से टिप्पणियां दिखाई देने लगी हैं, पहले तो वह अपनी बात छद्म नाम से या दूसरों के नाम से लिखा करते थे. यह इस अख़बार की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता ही है कि किसी ज़माने में इस अख़बार को लोग शेखर पाठक और गिर्दा का अख़बार समझते थे. आज इन दोनों बड़ी प्रतिभाओं की जो राष्ट्रीय स्तर की पहचान बनी है, उसमें इस समाचार पत्र के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. नैनीताल के रहने वाले हम सब जानते हैं कि इस अख़बार के लिए किस तरह राजीव ने मांग-मांग कर पैसा एकत्र किया है. ऐसे व्यक्तित्व के लिए ओछी बातें शोभा नहीं देतीं, बल्कि ये खुद की ही संस्कारहीनता दर्शाती हैं.
मुझे एक बात और कहनी है. फेसबुक का Like बटन दबाने से पहले सम्बंधित पोस्ट ठीक से पढ़ ली जानी चाहिए.
मुझे लगता है, यह पोस्ट एकदम व्यक्तिगत दुराग्रहों के आधार पर लिखी गयी है, ठीक ही हुआ कि इसे व्यापक प्रचार नहीं मिला.
जहाँ तक 'नैनीताल समाचार' और राजीव लोचन साह का प्रश्न है, आज के दिन इन दोनों के बिना नैनीताल ही नहीं, उत्तराखंड की जागरूक पत्रकारिता की कल्पना नहीं की जा सकती. इसके शुरुआती दिनों से ही मैं राजीव को सताता रहा हूँ, बल्कि कहना चाहिए, उकसाता रहा हूँ. एक अंक तो इसका मैंने भी सम्पादित किया है. मुझे हमेशा लगता रहा है कि एक क्षेत्रीय अख़बार के रूप में ही नहीं, एक जागरूक पत्रकारिता के प्रतिमान के रूप में यह अख़बार हिंदी पत्रकारिता में याद किया जायेगा. (राजेन्द्र यादव का जब भी फोन आता था, वे 'नैनीताल समाचार' का जरूर जिक्र करते थे.) एक छोटी जगह से, जहाँ हर छोटी-सी बात को भी व्यक्तिगत आक्षेप के रूप में लिया जाता हो, इतना जिंदादिल और निष्पक्ष समाचार-पत्र निकाल ले जाना छोटी बात नहीं है.
मुझे इस अख़बार की सबसे बड़ी बात यह लगती है कि इसके संपादक ने कभी भी इसे अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल नहीं किया. (अगर मैं गलत नहीं हूँ तो यह बात उन्होंने निश्चय ही शैलेश मटियानी से सीखी होगी) हाल के अंकों में संपादक के नाम से टिप्पणियां दिखाई देने लगी हैं, पहले तो वह अपनी बात छद्म नाम से या दूसरों के नाम से लिखा करते थे. यह इस अख़बार की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता ही है कि किसी ज़माने में इस अख़बार को लोग शेखर पाठक और गिर्दा का अख़बार समझते थे. आज इन दोनों बड़ी प्रतिभाओं की जो राष्ट्रीय स्तर की पहचान बनी है, उसमें इस समाचार पत्र के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. नैनीताल के रहने वाले हम सब जानते हैं कि इस अख़बार के लिए किस तरह राजीव ने मांग-मांग कर पैसा एकत्र किया है. ऐसे व्यक्तित्व के लिए ओछी बातें शोभा नहीं देतीं, बल्कि ये खुद की ही संस्कारहीनता दर्शाती हैं.
मुझे एक बात और कहनी है. फेसबुक का Like बटन दबाने से पहले सम्बंधित पोस्ट ठीक से पढ़ ली जानी चाहिए.
No comments:
Post a Comment