Girija Pathak
कैसा दुर्भाग्य है गरमियों में पहाड़ आग से झुलस रहे थे और बरसात शुरू होते ही पानी से. मुख्यमंत्री हमेशा की तरह दुख और अफसोस से भरे बयान जारी करते हुए इस संकट का मुकाबला करने के लिए सरकार और जनता से आहवान कर रहे हैं. जनता हमेशा की तरह इन तथाकथित दैवीय आपदाओं का सामना करते हुए स्वयं मुकाबला कर रही है और जी रही है उसके लिए न पहले कोई सहारा था न अब कोई सहारा है.1 तारीख की सुबह जब लोग घरों में ही सोये थे तो बस्तड़ी और नौलेरा गांव (यह नाम आज उत्तराखंड के मौत के मुहाने में बैठे दर्जनों गांवों में से किसी भी गांव के हो सकते हैं ) के पीछे मौजूद पहाड़ी ने गांव को अब गोद में लेने से इंकार कर दिया और लगातार अपने ऊपर एक के बाद एक हो रहे घावों के सामने हार मानकर अपने आप को ही समाप्त कर अपना अस्तित्व मिटाया तो अपने गोद में बैठे पूरे गांव की जिंदगी और उसके सुख दुखों को हमेशा हमेशा के लिए मिटा दिया. सरकार ने कहा दैवीय आपदा, कारिंदों ने कहा दैवीय आपदा, सरकार से भोग पा रहे चमचों ने कहा दैवीय आपदा और कलमकारों ने भी कहा दैवीय आपदा. गीत गाए जाने लगे राहत के, जवान कैसे कैसे खतरे उठाकर लाशें खोज ला रहे है बता रहे हैं चैंबीसों घंटे घरों में मौजूद सरकार के प्रवक्ता, इस दुख और क्षोभ की घड़ी में जनता से एकजुटता से मुकाबला करने की वकालत करता राज्य का मुखिया. इस जयकारे के बीच अगर कोई सिरफिरा प्रश्न करना शुरू कर दे कि देवता तो इस राज्य में हर मानसून में क्रोधित हो पूरे राज्य का भूगोल ही बिगाड़ दे रहें हैं और तुम्हारे सुर संकल्प तो वही हैं जो पिछली बार थे, पृकृति तो लंबे समय से चेतावनी दे रही है संभलने की और तुम बातों और योजनाओं के बयान के अलावा कभी बदले नहीं. तुम्हीं तो बता रहे हो कई वर्षों से 100 से अधिक पहाड़ों ने तुम्हारे विकास के चलते अपने को ध्वस्त करने का संकल्प ले लिया है, और हमेशा के मानसून के बाद तुम्हें याद आता है कि राहत - बचाव - संकटग्रस्त जनता के लिए वैकल्पिक व्यवस्था और मानसून बीता नहीं कि फिर राजनेता - भ्रष्ट नौकरशाह -माफिया और विकास का पैसा हजम कर रहे विकास ऐजेटों के चौगुटे के आगे पूरे पहाड़ को परोस दिया जाएगा. राज्य बनने के बाद क्या कांग्रेस और क्या भाजपा दोनों ही पार्टियों ने पूरे मनोयोग से पहाड़ में मौजूद हर संसाधन जल - जंगल - जमीन -मानव - जीविका और संस्कृति को लूटा है. यह जो दोनों पार्टियों ने पहाड़ पर खर्च किया है अब साल दर साल प्रकृति वसूली कर रही है. लेकिन दुर्भाग्य यही है शासक वर्ग (राज्य में अभी तक सत्ता में काबिज रही सरकारें हों ) का प्रहार हो या फिर प्रकृति का शिकार आम लोगों को ही बनना है.
No comments:
Post a Comment