क्यों मेरा दिल शाद नहीं है
क्यों खामोश रहा करता हूँ...!
क्यों खामोश रहा करता हूँ...!
Kamal Joshi
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नाम अरुण, उम्र ११ साल, हाल निवासी कोटद्वार.......पेशा : रद्दी बीनना.
सुबह सवेरे अरुण से मुलाक़ात ,. पूछने पर भी बात ना करने वाला अरुण अक्सर खामोश ही रहता है. पिछले कई दिनों से उसे देखता हूँ,
जब वो रद्दी (प्लास्टिक और पॉलिथीन ) बीन रहा था तो बगल में ही बच्चे हॉबी क्लास के लिए बने ठने जा रहे थे.. और बस में बैठाने से पहले एक अभिभावक ने कंडक्टर से पूछा: उमस बहुत हो रही है, क्या हॉबी रूम में AC अब तक लगवाया की नहीं?...कंडक्टर के मना करने पर सब अभिभावक उखड गए. हम सब अपने बच्चो के प्रति इतने ही संवेदनशील और भावुक होते है, होने भी चाहिए.
बात अरुण की चल रही है...एक दिन मैंने उसकी दिनचर्या का पीछा भी किया जब तक वो एक थैला भर कर रद्दी वाले के पास तक नहीं गया.
११ साल के अरुण की दुनिया दूसरी है., वहाँ बचपन नहीं होता. बस ज़िंदा रहने की कशमकश होती है. सर्वाइवल के लिए संघर्ष. ११ साल का अरुण ये सीख चुका है की बिना मेहनत के शाम की रोटी नहीं ही मिलेगी. एक बार थैला भर रद्दी के ४० से ५० रुपये तक मिलते हैं और दिन में दो चक्कर लगाने होते है उसके दिन भर के चक्कर १२ से १५ किलोमीटर तक हो जाते है. साथ बीनी गयी रद्दी भरे थैले का बोझ .
अरुण के हाथ में डिजिटल वाच है जो उसने अपनी "कमाई" से खरीदी पर इसके लिए बाद में उसकी पिटाई भी हुई कि क्यों फालतू चीज में एक दिन की कमाई खर्च की. उसने अपने माँ बाप के बारे में कोई जानकारी नहीं दी पर एक छोटी बहिन है जिसके लिए वो कभी कभी बिस्कुट ले जाता है जो वो खुद भी खाता है. माँ बाप को इनके बिस्कुट खाने की कोई जानकारी नहीं.
अरुण पर किसी बैंक का कोई कर्जा नहीं है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बगल में ही रेलायेंस कंपनी का विज्ञापन देखा. कई ख़बरों के अनुसार वो भारत के सबसे बड़ी क़र्ज़ खोर हैं और कर्जा वापस करने की नीयत भी नहीं दिखती. मुझे मुकेश अंबानी के बेटे की याद आई, जो स्पेशल VIP क्लास में क्रिकेट देखता है. पता नहीं क्रिकेट देखते और ताली बजाते वक्त उसे याद आता है की नहीं की वो जो लक्सरी कर रह है उसमे देश की गरीब जनता के जन धन योजना से जमा किये पैसों से लिया गया उधार भी है. जिसे उसके पिता की वापस करने की मंशा भी है की नहीं..
नाम अरुण, उम्र ११ साल, हाल निवासी कोटद्वार.......पेशा : रद्दी बीनना.
सुबह सवेरे अरुण से मुलाक़ात ,. पूछने पर भी बात ना करने वाला अरुण अक्सर खामोश ही रहता है. पिछले कई दिनों से उसे देखता हूँ,
जब वो रद्दी (प्लास्टिक और पॉलिथीन ) बीन रहा था तो बगल में ही बच्चे हॉबी क्लास के लिए बने ठने जा रहे थे.. और बस में बैठाने से पहले एक अभिभावक ने कंडक्टर से पूछा: उमस बहुत हो रही है, क्या हॉबी रूम में AC अब तक लगवाया की नहीं?...कंडक्टर के मना करने पर सब अभिभावक उखड गए. हम सब अपने बच्चो के प्रति इतने ही संवेदनशील और भावुक होते है, होने भी चाहिए.
बात अरुण की चल रही है...एक दिन मैंने उसकी दिनचर्या का पीछा भी किया जब तक वो एक थैला भर कर रद्दी वाले के पास तक नहीं गया.
११ साल के अरुण की दुनिया दूसरी है., वहाँ बचपन नहीं होता. बस ज़िंदा रहने की कशमकश होती है. सर्वाइवल के लिए संघर्ष. ११ साल का अरुण ये सीख चुका है की बिना मेहनत के शाम की रोटी नहीं ही मिलेगी. एक बार थैला भर रद्दी के ४० से ५० रुपये तक मिलते हैं और दिन में दो चक्कर लगाने होते है उसके दिन भर के चक्कर १२ से १५ किलोमीटर तक हो जाते है. साथ बीनी गयी रद्दी भरे थैले का बोझ .
अरुण के हाथ में डिजिटल वाच है जो उसने अपनी "कमाई" से खरीदी पर इसके लिए बाद में उसकी पिटाई भी हुई कि क्यों फालतू चीज में एक दिन की कमाई खर्च की. उसने अपने माँ बाप के बारे में कोई जानकारी नहीं दी पर एक छोटी बहिन है जिसके लिए वो कभी कभी बिस्कुट ले जाता है जो वो खुद भी खाता है. माँ बाप को इनके बिस्कुट खाने की कोई जानकारी नहीं.
अरुण पर किसी बैंक का कोई कर्जा नहीं है!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
बगल में ही रेलायेंस कंपनी का विज्ञापन देखा. कई ख़बरों के अनुसार वो भारत के सबसे बड़ी क़र्ज़ खोर हैं और कर्जा वापस करने की नीयत भी नहीं दिखती. मुझे मुकेश अंबानी के बेटे की याद आई, जो स्पेशल VIP क्लास में क्रिकेट देखता है. पता नहीं क्रिकेट देखते और ताली बजाते वक्त उसे याद आता है की नहीं की वो जो लक्सरी कर रह है उसमे देश की गरीब जनता के जन धन योजना से जमा किये पैसों से लिया गया उधार भी है. जिसे उसके पिता की वापस करने की मंशा भी है की नहीं..
निराशा के बावजूद मुझे अरुण पर गर्व है.
अरुण की जिंदगी को ना तो बुलेट ट्रेन का इंतज़ार है, ना उसे भारत के मंगल तक यान पहुंचाने की ख़ुशी है. बाल अधिकार और शिक्षा का अधिकार उसकी ज़िन्दगी में बेमानी है. उसकी जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण है आपके द्वारा लापरवाही से फेंका गया पॉलिथीन का बेकार थैला जिसके लिए वो दर दर भटकता है.
मेरे फोटोग्राफर दोस्त बहुत अच्छी अच्छी फोटो खींचते हैं..मैं उतनी अच्छी नहीं खींच पाता क्यों की मुझे अरुण जैसे भी दिख जाते है, जब मैं उनके बारे में बात करता हूँ तो कहा जाता है की बहुत नेगेटीव सोच है मेरी..भारत का विकास और बढ़ता सम्मान देखो. पर...
अरुण की जिंदगी को ना तो बुलेट ट्रेन का इंतज़ार है, ना उसे भारत के मंगल तक यान पहुंचाने की ख़ुशी है. बाल अधिकार और शिक्षा का अधिकार उसकी ज़िन्दगी में बेमानी है. उसकी जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण है आपके द्वारा लापरवाही से फेंका गया पॉलिथीन का बेकार थैला जिसके लिए वो दर दर भटकता है.
मेरे फोटोग्राफर दोस्त बहुत अच्छी अच्छी फोटो खींचते हैं..मैं उतनी अच्छी नहीं खींच पाता क्यों की मुझे अरुण जैसे भी दिख जाते है, जब मैं उनके बारे में बात करता हूँ तो कहा जाता है की बहुत नेगेटीव सोच है मेरी..भारत का विकास और बढ़ता सम्मान देखो. पर...
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा.
और भी गम हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा.
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