ईद , रोजा , इफ्तार , टोपी वगैरह वगैरह सब विदेश के लिए है ।इसलिए नये निजाम का फैसला है कि इन सब का मुबारकवाद पाकिस्तान , ईरान वगैरह को दे दो फर्सी सलाम के साथ । लेकिन अपने मुल्क के इस्लाम से कोइ रिश्ता मत बांधो। इसे अलग थलग रखो । समाज से इसे काटो । इसी लिए तो जिल्ले सुब्हानी ने अपने मुल्क में कभी टोपी नही पहनी । किसी को मुबारकवाद नहीं दिया । इफ्तार में शामिल नही हुए । महामहिम राष्ट्रपति के भी आयोजन में नही गये । क्यों कि इन्हें यह बताना है कि ये असल हिन्दू हैं । बाद बाकी हिन्दू थे लेकिन असल नही थे , जिन्होंने गंगा जमुनी तहजीब को न केवल बचाया बल्कि जान तक दे गए । वो हिन्दू नही थे । आज ईद की ख़ुशी में जली कटी सुनाने का मन नहीं था , लेकिन निजाम ने मन खट्टा करदिया । बादल से घिरा सूरज मुस्कुरा कर कह रहा है , बापू की रवायत का एक भी कतरा ज़िंदा रहा तो यह जमीन अपने आँचल की आड़ में सभी धर्मों को फलने फूलने का संरक्षण देती रहेगी । उठो चलो उमर दरजी को गले लगा कर ईद की मुबारक दो । फातिमा से इदी लेकर रब्बन को गुब्बारा खरीददो उसकी रोती हुयी आँखे हंस पड़ेगी । आज की शाम बच्चे मुंशी प्रेमचंद की कहानी सुनेगें ईदगाह ।
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