कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
-----------------------------------
तमाम बाबाओं ने प्रायः ऐसे लोगों को अपना शिकार बनाया , जिनमे तर्क बुद्धि का अभाव था । ऐसे " आँख के अंधे और गाँठ के पूरे " मनुष्यों को ठग बाबाओं ने नर्क , परलोक आदि का भय दिखा कर धन दोहन किया । कोई भी बाबा अपने भक्त की मति हर लेता है । भक्त फिर बन्दर की तरह बाबे की टेक पर नाचने लगता है । रजनीश चन्द्र जैन इन तमाम बाबाओं में सर्वाधिक घातक इसलिए है , क्योंकि उसने हमारे देश के मेधावी और बुद्धिमान लोगों को अपना शिकार बनाया , और उन्हें बौद्धिक रूप से बधिया कर दिया ।
चूँकि रजनीश चन्द्र जैन अत्यधिक बुद्धिमान , तर्कशील और बहु पठित पुरुष था , इस लिए ईरान तुरान की हांकने में भी बे जोड़ था । उसने भारतीय वाङ्गमय का मन चाहा भाष्य किया । उसकी विलक्षण मेधा के कारण उसके भक्त उसे ग्यानी समझ बैठते हैं । लेकिन वह ग्यानी नहीं , अपितु जानकार था । सूक्ति है -विद्या या सा विमुक्तये । अर्थात ज्ञान मुक्त करता है । जबकि रजनीश कभी भी मुक्त नहीं हुआ , अपितु अपनी लालसाओं मे उलझता चला गया । उसे विश्व के एक मंहगे और आधुनिक स्यंदन रॉल्स रॉयस की सनक सवार हुयी । उसने प्रण किया कि वह 364 रॉल्स खरीदेगा , और हर दिन नई पर चढ़ेगा । न खरीद सका । 90 तक ही जुटा पाया था , कि अमेरिका ने चहेट दिया । हांफता हुआ अपनी मातृ भूमि भारत पंहुचा , जिसे भिख मङ्गों का मुल्क कह कर कोसता था । 90 के दशक में रोता बिसूरता यह गन्जा अधेड़ जब दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरा , तो भारत भूमि को माँ माँ कह कर चिल्ला रहा था ।
उसकी चटपटी बातों से उसके भक्त उसे ज्ञानी समझ बैठते है। वस्तुतः वह सलीम - जावेद की कोटि का एक डायलॉग बाज़ था । निसन्देह , सलीम जावेद से कुछ अधिक पढ़ा लिखा ।
-----------------------------------
Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
--तमाम बाबाओं ने प्रायः ऐसे लोगों को अपना शिकार बनाया , जिनमे तर्क बुद्धि का अभाव था । ऐसे " आँख के अंधे और गाँठ के पूरे " मनुष्यों को ठग बाबाओं ने नर्क , परलोक आदि का भय दिखा कर धन दोहन किया । कोई भी बाबा अपने भक्त की मति हर लेता है । भक्त फिर बन्दर की तरह बाबे की टेक पर नाचने लगता है । रजनीश चन्द्र जैन इन तमाम बाबाओं में सर्वाधिक घातक इसलिए है , क्योंकि उसने हमारे देश के मेधावी और बुद्धिमान लोगों को अपना शिकार बनाया , और उन्हें बौद्धिक रूप से बधिया कर दिया ।
चूँकि रजनीश चन्द्र जैन अत्यधिक बुद्धिमान , तर्कशील और बहु पठित पुरुष था , इस लिए ईरान तुरान की हांकने में भी बे जोड़ था । उसने भारतीय वाङ्गमय का मन चाहा भाष्य किया । उसकी विलक्षण मेधा के कारण उसके भक्त उसे ग्यानी समझ बैठते हैं । लेकिन वह ग्यानी नहीं , अपितु जानकार था । सूक्ति है -विद्या या सा विमुक्तये । अर्थात ज्ञान मुक्त करता है । जबकि रजनीश कभी भी मुक्त नहीं हुआ , अपितु अपनी लालसाओं मे उलझता चला गया । उसे विश्व के एक मंहगे और आधुनिक स्यंदन रॉल्स रॉयस की सनक सवार हुयी । उसने प्रण किया कि वह 364 रॉल्स खरीदेगा , और हर दिन नई पर चढ़ेगा । न खरीद सका । 90 तक ही जुटा पाया था , कि अमेरिका ने चहेट दिया । हांफता हुआ अपनी मातृ भूमि भारत पंहुचा , जिसे भिख मङ्गों का मुल्क कह कर कोसता था । 90 के दशक में रोता बिसूरता यह गन्जा अधेड़ जब दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरा , तो भारत भूमि को माँ माँ कह कर चिल्ला रहा था ।
उसकी चटपटी बातों से उसके भक्त उसे ज्ञानी समझ बैठते है। वस्तुतः वह सलीम - जावेद की कोटि का एक डायलॉग बाज़ था । निसन्देह , सलीम जावेद से कुछ अधिक पढ़ा लिखा ।
आज से क़रीब पैंतीस साल पहले , जब अभिनेता विनोद खन्ना और पाखण्डी रजनीश मोहन जैन दोनों का कैरियर उत्कर्ष पर था , खन्ना ने रजनीश से सन्यास की दीक्षा ले ली । गुरुडम फैलाने वाले तमाम बाबाओं में रजनीश अब तक सर्वाधिक सुपठित , सुचिंतित , लेकिन उतने ही धूर्त और लालची भी थे । विनोद खन्ना को कुछ ही समय बाद सन्यास का आडम्बर समझ में आ गया , और वह सामान्य जीवन में लौट आये । जबकि भारत को जी भर गरियाने वाले रजनीश को अमेरिका से लतियाया गया , और अंततः उन्हें भारत में ही शरण मिली । लोगों को पीड़ा से मुक्ति दिलाने का दम भरने वाला यह मायावी 56 साल की उम्र में ही दमे और पीठ दर्द की पीड़ा से छटपटा कर मरा ।
कई साल पहले , एक दिन विनोद खन्ना अचानक एक समारोह में आ गए । वहां गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी मेरे पिता को कोई अवार्ड देने वाले थे । पूरे वक़्त मेरे मन में यह आशंका बनी रही कि यह पगला ( खन्ना ) मेरे पिता या किसी अन्य के सर पर मेज़ पर रखा गमला उठा कर न मार दे । क्योंकि गुरुओं के चक्कर में पड़नेवाले ज़्यादातर मनुष्य गम्भीर मनो रोगी होते हैं । लेकिन कार्यक्रम समाप्ति के बाद विनोद मुझे मिले और मैंने उन्हें सभ्य , शालीन और शांत पाया । अपने पूर्व जन्मों के किसी कृत्य के फलस्वरूप बाबाओं के फेर में पड़ चुके हर मनुष्य को गुरुडम का जुआ उतार फेंक कर विनोद की तरह ही पुनः सामान्य मनुष्य बन जाना चाहिए
कई साल पहले , एक दिन विनोद खन्ना अचानक एक समारोह में आ गए । वहां गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी मेरे पिता को कोई अवार्ड देने वाले थे । पूरे वक़्त मेरे मन में यह आशंका बनी रही कि यह पगला ( खन्ना ) मेरे पिता या किसी अन्य के सर पर मेज़ पर रखा गमला उठा कर न मार दे । क्योंकि गुरुओं के चक्कर में पड़नेवाले ज़्यादातर मनुष्य गम्भीर मनो रोगी होते हैं । लेकिन कार्यक्रम समाप्ति के बाद विनोद मुझे मिले और मैंने उन्हें सभ्य , शालीन और शांत पाया । अपने पूर्व जन्मों के किसी कृत्य के फलस्वरूप बाबाओं के फेर में पड़ चुके हर मनुष्य को गुरुडम का जुआ उतार फेंक कर विनोद की तरह ही पुनः सामान्य मनुष्य बन जाना चाहिए
No comments:
Post a Comment