Ak Pankaj
आपने आसपास देखिए और सोचिए, क्या आपके समाज में बाँसुरी है? कला या कृष्ण की अलौकिक बाँसुरी के तौर पर नहीं. नैसर्गिक आनन्द और प्रेम के रूप में. आदिवासी समाज में हर कोई बाँसुरी बजाता है. पर कोई कृष्ण नहीं है. क्योंकि प्रेम उनके जीवन का हिस्सा है. इन दिनों ऐतिहासिक आदिवासी प्रेम कहानियों के बीच रह रहा हूं. अभी आखिरी कहानी के पात्रों के साथ हूं और एक सलोने आदिवासी युवक की बाँसुरी सुन रहा हूं. आज की रात उसकी पूरी प्रेम कहानी सुन लूंगा. आप सब भी तब तक चान्हो, रांची के सोमा टाना भगत की बाँसुरी सुनिए और सोचिए आपके समाज में बाँसुरी क्यों नहीं है.
No comments:
Post a Comment