Tuesday, June 21, 2016

छत्तीसगढ़ के आदिवासी जनता पर बढ़ता राजकीय दमन सुनील कुमार

छत्तीसगढ़ के आदिवासी जनता पर बढ़ता राजकीय दमन
सुनील कुमार
भारत अपने को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है और इसी वर्ष भारत ने अपना67 वां गणतंत्र दिवस मनाया। लोकतंत्र-गणतंत्र पर नेतामंत्रीअधिकारी बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं जो सुनने में बहुत अच्छी लगती है और हमें गर्व महसूस होता है कि हम लोकतांत्रिक देश में जी रहे हैं। यह गर्व और खुशफहमी तभी तक रहती है जब तक हम अपनी स्वतंत्रता और संविधान में दिये हुये अधिकार की बात न करें। 67 वें गणतंत्र  दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा कि ‘‘हमारी उत्कृष्ट विरासत लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिये न्यायसमानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती है।’’ राष्ट्रपति की यह बात क्या भारत जैसेलोकतांत्रिक’, ‘गणतांत्रिक’ देश में लागू होती हैभारत का संविधान अधिकार यहां के प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार देता है कि वह अपनी पसंद से विचारधाराधर्मभारत में रहने का जगहव्यवसाय को चुन सकता है। क्या भारतीय संविधान लागू होने के 67साल बाद भी यह अधिकार भारत की आम जनता को मिला हैयह हम सभी के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है। आज भी दलितोंअल्पसंख्यकोंमहिलाओंआदिवासियोंपर हमले हो रहे हैं। दलितों के आज भी हाथ-पैर काटे जा रहे हैंरोहित वेमुला जैसे होनहार छात्र को आत्महत्या करने की स्थिति में पहुंचा दिया जाता है। होनहार अल्पसंख्यक नौजवान को आतंकवाद के नाम पर पकड़ कर जेलों में डाल दिया जा रहा है। महिलाओंयहां तक कि छोटी-छोटी बच्चियों को रोजाना बलात्कार का शिकार होना पड़ रहा है। आईएएसपीसीएस महिलाओं को भी मंत्रियों और सीनियर के हाथों खुलेआम शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है। उन्हें उनके ईशारों पर चलना होता है और ऐसा नहीं होने पर उनको ट्रांसफर से लेकर कई तरह की जिल्लत झेलने पड़ती हैं। इस तरह की खबरें शहरी क्षेत्र में होने के कारण थोड़ी-बहुत मीडिया या सोशल मीडिया में आ जाती हंै।
इस देश के मूलवासी आदिवासी को छत्तीसगढ़ सरकार और भारत सरकार लाखों की संख्या में अर्द्धसैनिक बल भेजकर प्रतिदिन मरवा रही है। उनकी बहु-बेटियों के साथ बलात्कार तो आम बात हो गई है। अर्द्धसैनिक बलों द्वारा उनके घरों के मुर्गेबकरे,आनाजखाना और पैसे-गहने लूट कर ले जाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। यह सब करने के बाद उनको पुरस्कृत भी किया जाता हैजैसे सोनी सोढी के गुप्तांग में पत्थर डालने वाले अंकित गर्ग को 2013 में राष्ट्रपति द्वारा वीरता पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। छत्त्ीासगढ़ में आदिवासियों पर हो रहे जुल्म की खबरें शायद ही कभी समाचार पत्रों में छपती हैं। थोड़ी-बहुत खबर तब बनती है जब समाज के प्रहरी मानवाधिकारसामाजिक कार्यकर्तापत्रकार उस ईलाके में जाकर कुछ खोज-बीन कर पाते हैं। लेकिन यह खबर मीडिया के टीआरपी बढ़ाने के लिये नहीं होती है इसलिए उसे प्रमुखता नहीं दी जाती है। राष्ट्रीय मीडिया में यह खबर तब आती है जब 28 जून, 2012 की रात बीजापुर के सरकिनागुड़ा जैसी घटना होती है जिसमें 17 ग्रामीणों को (इसमें 6 बच्चे थे) मौत की नींद सुला दी जाती है। इस खबर पर रायपुर से लेकर दिल्ली तक यह कह कर खुशियां मनाई जाती है कि बहादुर जवानों को बड़ी सफलता मिली है। ऐसी ही कुछ घटनाएं हाल के दिनों में लगातार हो रही है जो कुछ समाचार पत्रों और मीडिया मंे आ पायी हैं। लेकिन इस तरह की खबरें भी आम जनता तक पहुंच नहीं पातीं।
30 अक्टूबर, 2015 को रष्ट्रीय स्तर की महिलाओं का एक दल जगदलपरु और बीजापुर गया था। इस दल को पता चला कि 19/20 से 24 अक्टूबर, 2015 के बीच बासागुडा थाना अन्तर्गत चिन्न गेल्लूरपेदा गेल्लूरगंुडुम और बुड़गी चेरू गांव में सुरक्षा बलों ने जाकर गांव की महिलाओं के साथ यौनिक हिंसा और मारपीट की। पेदा गेल्लूर और चिन्ना गेल्लूर गांव में ही कम से कम 15 औरतें मिलींजिनके साथ लैंगिक हिंसा की वारदातें हुई थीं। इनमें से 4 महिलायें जांच दल के साथ बीजापुर आईं और कलेक्टर,पुलिस अधीक्षक व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के समक्ष अपना बयान दर्ज कर्राइं। इन महिलाओं में एक 14 साल की बच्ची तथा एक गर्भवती महिला थींजिनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। गर्भवती महिला के साथ नदी में ले जाकर कई बार सामूहिक बलात्कार किया गया। महिलाओं के स्तनों को निचोड़ा गयाउनके कपड़े फाड़ दिये गये। जांच दल की टीम ने कई महिलाओं पर चोट के निशान देखेकई महिलाएं ठीक से चल नहीं पा रही थीं। मारपीटबलात्कार के अलावा इनके घरों के रुपये-पैसों को लूटा गयाउनके चावलदालसब्जी व जानवरों को खा लिए गये और जो बचा वह साथ में ले गये। घरों में तोड़-फोड़ किया गया और उनके टाॅर्चचादरकपड़े भी लूटे गये। यह टीम समय की कमी के कारण सभी गांवों में नहीं जा पाई थी। इन महिलाओं के बयान दर्ज कराने के बावजूद अभी तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इस बीच में काफी फर्जी मुठभेड़ और बलात्कार की घटनाएं हुईं। 15 जनवरी, 2106 को सीडीआरओ (मानवाधिकार संगठनों का समूह) और डब्ल्यूएसएस (यौन हिंसा और राजकीय दमन के खिलाफ महिलाएं) की टीम छत्तीसगढ़ गई थी। इस टीम का अनुभव भी अक्टूबर में गई टीम जैसा ही था। 11 जनवरी, 2016 को सुकमा जिले के कुकानार थाना के अन्तर्गत ग्राम कुन्ना गांव के पहाड़ियों पर ज्वांइट फोर्स (सी.आर.पी.एफ.,कोबराडीआरजीएसपीओ) के हजारों जवानों (लोकल भाषा में बाजार भर) ने डेरा डाल रखा था। कुन्ना गांव में पेद्दापाराकोर्मा गोंदीखास पारा जैसे दर्जन भर पारा (मोहल्ला) हैं। यह गांव मुख्य सड़क से करीब 15-17 कि.मी. अन्दर है और गांव के लोगों को सड़क तक पहुंचने के लिए 3 घंटे लगते हैं। 12 जनवरी, 2016 को सुरक्षा बलोंएसपीओ और जिला रिजर्व फोर्स के जवानों ने गांव को घेर लिया। पेद्दापार के ऊंगा खेती करते हैं और आंध्रा जाकर ड्राइवर का काम भी करते हैं। फोर्स ने उनके घर का दरवाजा तोड़ दियाघर में रखे 500 रुपये ले लिये और 10 किलो चावल, 5 किलो दाल और 5 मुर्गे खा लिये। उनकी पत्नी सुकुरी मुसकी के अन्डर गारमेंट जला दिये और उनके घर के दिवाल पर यह लिख दिये -‘‘फोन कर 9589117299 आप का बलाई सतडे कर।’’ ऊंगा का आधार कार्ड भी फोर्स वाले लेकर चले गये। इसी तरह गांव के अन्य घरों में तोड़-फोड़ की। चावलदालसब्जीमुर्गेबकरी खाये और मरक्का पोडियामी के घर में लगे केले के पेड़ से केले काट कर ले गये। मुचाकी कोसीकरताम हड़मेकरतामी गंगीहड़मी पेडियामीकारतामी कोसीपोडियामी जोगी व हिड़मे भड़कामी सहित कई महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार व लैंगिक हिंसा किया। महिलाओं ने सोनी सोढी के नेतृत्व में बस्तर संभाग के कमिश्नर के पास शिकायत की। इन महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और उनके स्तन को निचोड़ा गया। कुंआरी लड़कियां अपने बहनों के मंगलसूत पहन कर अपने को विवाहित बतायी,क्योंकि गांव में 17-18 साल की लड़की अगर शादी-शुदा नहीं है तो उसको माओवादी मान लिया जाता है। इस गांव के 29 लोगों (24 पुरुष, 5 महिला) को पकड़ कर पुलिस ले गईजिनमें से तीन पर फर्जी केस लगा कर जेल भेज दिया गया। गांव वालों को ले जाते समय रास्ते में बुरी तरह मारा-पीटा गयामहिलाओं के कपड़े फाड़े गये।
कोर्मा गोंदी में 13 जनवरी, 2016 को यही सुरक्षा बल गये और अन्दावेटी का मोबाईल फोन और 500 रुपये  छीन लिये। इसी तरह गांव के अन्य लोगों के साथ मारपीट किये और खाद्य सामग्री सहित मुर्गे खा गये। इसी गांव के लालू सोडी (21), पुत्र सोडी लक्कमा को पुलिस ने पकड़ा और बुरी तरह पीटा। इस पिटाई से उसकी 14 जनवरी को मृत्यु हो गईजिसका एफआईआर दर्ज नहीं हुआ। इसी पारा के योगा सोरीपुत्र सोरी लक्का को फोर्स के तीन लोगों ने सुबह 9 बजे घर से खींच लिया और उसे गांव से एक किलोमीटर दूर ले जाकर मारा। उसके पैरों में काफी चोट आईजिससे वह दो दिन तक चल नहीं पाया। इसी पारा के इरम्मादेवाश्रम और सोमा को 12 जनवरी को पकड़ कर कुकानार थाने ले गये और पांच-पांच पुलिस वालों ने उनके साथ रास्ते में मारपीट की। 15 तारीख को सादे कागज पर हस्ताक्षर लेकर उनको छोड़ दिया गया। 
पेद्दापारा से कुछ दूर गोटेकदम गांव के योगिरापारा में फोर्स गई और उसने फायरिंग करना शुरू की। उस समय लोग बांध निर्माण का कार्य कर रहे थेजो मनरेगा द्वारा 9लाख रुपये में बन रहा है। फोर्स की फायरिंग की आवाज सुनकर लोग काम छोड़ कर भाग गये। फोर्स ने घरों में घुसकर तलाशी लेनी शुरू की और महिलाओं के साथ छेड़खानी की। घरों में तलाशी के दौरान अरूमा के घर पर एक जवान बोरे (जिसमें समान रखा था) पर लात मार रहा था तो वह फिसल कर गिर गया। उसकी अपनी बंदूक से गोली चल गई जो उसके पैर में लगी और वह घायल हो गया। भीमा की मोटर बाईक से घायल जवान को ईलाज के लिए दो जवान लेकर गये और उसको बाईक वापस नहीं किये। अखबार में सुबह छपा कि माओवादी-पुलिस मुठभेड़ में एक जवान घायल हो गया। पुलिस 14 तारीख तक गांव में रही और तब तक गांव के पुरुष जंगल में भूखे-प्यासे छिपे रहे।
बीजापुर के बासागुडा थाना अन्तर्गत बेलम नेन्द्रा व गोटुम पारा में 12 जनवरी, 2016को सुरक्षा बल के ज्वांइट फोर्स गांव में तीन दिन तक रूकी रही। इन तीन दिनों में वे गांव के मुर्गेबकरे को बनायेखाये या और दारू भी पिये। कराआईती के घर में 7जगहों पर खाना बनाये और दारू पिये। कराआईती के घर के 40 मुर्गे, 105 कि.ग्रा. चावल, 2 किलो मूंग दालबरबटी खाये और दो टीन तेल (एक टीन कोईना का और एक सरसों का) खत्म कर दिये। घर में रखे 10 हजार रू. भी ले गये। कराआईती के घर में खाने के साथ दारू भी पियेजिसके बोतल आस-पास पड़े हुये थे।
मारवी योगा के घर के 14 मुर्गे, 10 किलो चावलमूंग दालसब्जी और टमाटर खा गयेजिन्हंे वे शनिवार को बाजार से लाये थे। वे अपने साथ बड़े भाई की बेटी को रखते हैं जिसको फोर्स वाले ने गोंडी में कहा कि सभी औरतंे एक साथ रहोरात में बतायेंगे। यहां तक कि एक घर से काॅपी और पेन भी ले गये। गांव में रूकने के दौरान दर्जनों महिलाओं के साथ बलात्कार और यौनिक शोषण किये। इससे पहले भी 6जनवरी को सुरक्षा बलों के जवान गये थे। तब उन्होंने मरकमनन्दे को पीटा थाउसकी बकरी ले गये थे और लैंगिक इस हिंसा भी की थी। इस गांव को सलवा जुडूम के समय दो बार जला दिया गया था।
जब ये पीड़ित महिलाएं बीजापुर आयीं तो पुलिस अधीक्षक इनकी शिकायत लेने को तैयार नहीं थे। इनको थाने के अंदर डराया-धमकाया गया। दो-तीन दिन बाद देश भर से जब एसपी-डीएम को फोन गया तो इनकी शिकायत सुनी गई।
राष्ट्रपति की यह बात कि हमारी उत्कृष्ट विरासत लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिये न्यायसमानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती है’, आम आदमी पर तो लागू नहीं होती है। हांयह बात जज साहब जैसे लोगों के लिए जरूर है जिनके लिये बकरी पर भी केस दर्ज हो जाता है। राष्ट्रपति इसी सम्बोधन में आगे कहते हैं कि हमारे बीच सन्देहवादी और आलोचक होंगेहमें शिकायतमांगविरोध करते रहना चाहिए -यह भी लोकतंत्र की एक विशेषता है। हमारे लोकतंत्र ने जो हासिल किया हैहमें उसकी भी सरहाना करनी चाहिये।’ भारत सरकार और खासकर छत्तीसगढ़ सरकार पर यह बात लागू नहीं होती है। विनायक सेन को यही सरकार मानवाधिकार के फर्ज अदा करने के जुल्म में जेल में डाल दिया तथा हिमांशु कुमार को सलवा जुडुम में जले हुये गांव को बसाने की सजा उनके आश्रम को तोड़ कर दी। यह वही सरकार है जिसने  असामाजिक तत्वों को लेकर सामाजिक एकता मंच’ बनाया और मानवाधिकार कार्यकर्तापत्रकार मालनी सुब्रमण्यम के घर पर हमला करवाया। यह वही संगठन है जो बेला भाटिया और सोनी सोढी के खिलाफ प्रदर्शन करता है। इसी प्रदेश में 50 से अधिक पत्रकारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं और चार पत्रकार संतोष यादव व सोमारू नाग जेल में बंद हैं। इन पत्रकारों का गुनाह यह है कि वे अपने पत्रकारिता धर्म को निभाते हुये सही बात कहना चाह रहे थेअन्य पत्रकारों जैसा पुलिस की कही बातों को सही मान कर रिर्पोटिंग करने वाले नहीं थे। वे उस तरह के पत्रकार नहीं थे जो गोटेकदम में अपनी पिस्तौल से घायल जवान को मुठभेड़ में घायल की खबर छाप देते और उसी जगह दर्जनों महिलाओं के साथ हुई यौनिक हिंसा पर चुप रहते। राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि आलोचक और विरोध करने वालों की बात सुनी जा रही है। क्या यह सब घटनायें आप तक नहीं पहुंचतींअगर पहुंचती है तो आप चुप क्यों हैं और नहीं पहुंचती तो उसके कारण क्या हैं?
महोदयआपने ही अपने पिछले सम्बोधन में कहा था कि भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी से जनता गुस्से में है।’ बिल्कुल सही फरमाया था आपने। छत्तीसगढ में आदिवासियों को इसलिए मारा जा रहा है कि वे जिस जमीन पर रहते हैं और जिस जंगल को उन्होंने बचा कर रखा हैउसके अन्दर अकूत खनिज सम्पदा है। वह खनिज सम्पदा देशी-विदेशी लूटेरों (पूंजीपतियों) को चाहिए। इसके लिए यह सरकार इन आदिवासियों को हटाना चाहती है और वे हटना नहीं चाहते। वे अपनी जीविका के साधनमातृभूमि और अपनी संस्कृति की रक्षा कर अपने तरीके से जीना चाहते हैं। आप जिस देश के महामहिम हैं उस देश की सरकार उनको इस तरह जीने देना नहीं चाहती है। वह उनके उपर हमले करवा रही है। सलवा जुडूम के नाम पर 650 गांवों को जला दिया गयाहजारों लोगों को मारा गयामहिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। खुले में रहने वाले आदिवासी समाज को यह सरकार कैम्पों (इन कैम्पों का खर्च टाटा और एस्सार ने दिया) में डाल दिया। जो कैम्प में नहीं आये उसको माओवादी घोषित कर दिया। सरकार की नजर में आदिवासी गुलाम हैंनहीं तो बागी (माओवादी)। इन बागियों के पास बैंक अकाउंट नहीं हैंन ही इनके पास घर हैं। ये प्रकृति के सहारे जिन्दा रहते हैं। महामहिम जीआपके बहादुर सुरक्षा बल’ सेटेलाइट और यूएवी (मानवरहित एरियल व्हेकल) के सहारे आधुनिक हथियारोंमोर्टारोंहेलीकाप्टरों से लैस होकर छत्तीसगढ़ जनता पर हमले कर रहंे हैं। निहत्थे महिलाओंबच्चे-बूढ़ेनौजवानों पर हमले करना उनके साथ यौनिक हिंसा और फर्जी मुठभेड़ में मारना दिनचर्या बन गई है।
सुरक्षा बल सुकुमा जिले के गोमपाड़ गांव की महिला गोमपाड के साथ बलात्कार करता है और अपने कुकर्मों को छिपाने के लिये उसकी हत्या कर देता है। यह इस तरह का फर्जी इनकांउटर था कि कोई भी उस महिला के लाश को देख कर समझ सकता है। सोनी सोढी इस मामले की जानकारी लेने महिला के गांव तक जाना चाहती है तो उन्हें पुलिस और सलवा जुडूम के गुंडों द्वारा रोका जाता है। इस पर न तो देश का सुप्रीम कोर्टन राष्ट्रपति भवन और न ही गृह मंत्रालय वहां की वास्तविकता को जानना चाहता है। भारत मां के जयकारे लगा कर उन्माद फैलाने वालों के लिये गोमपाड की मौत कोई मौत नहीं है।
इस तरह के फर्जी गिरफ्तारी और इनकांउटर पर अफसरों को फटकार लगाने वाले सुकमा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रभाकर ग्वाल को एसपी के शिकायत पर सस्पेंड कर दिया जात है। इस तरह की खबरें बाहर नहीं आ पायेइसके लिये फैक्ट फाइडिंग (तथ्यपरक खोज) टीम के उपर भी सरकारी दमन किया जा रहा है। अभी हाल ही में जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालयों से प्रोफेसरों की एक टीम गई थीजिनको पुलिस ने फर्जी तरीके से फंसाने का प्रयास किया। इस तरह के फर्जीवाड़े का मास्टर माइंड बस्तर रेंज के आईजी एसआरपी कल्लूरी ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है कि इस तरह के लोगों पर खुफिया विभाग द्वारा नजर रखनी चाहिये। कल्लूरी चाहते हैं कि रायपुर के एयरपोर्टरेलवे स्टेशनबस स्टैण्ड और ट्रेवल एजेंसियों के स्थल पर इस तरह के लोगों की आवाजाही पर नजर रखी जाये।
ये सारे हथकंडे इसलिये अपनाये जा रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में जो अकूत खनिज सम्पदा है उसको लूटा जाये। छत्तीसगढ़ में कोयला 52,533 मिलियन टनलौह अयस्क 2,731मिलियन टनचूना पत्थर 9,038 मिलियन टनबाक्साईट 148 मिलियन टनहीरा 13लाख कैरेट की खनिज सम्पदा है। इसके अलावा और भी खनिज सम्पदा छत्तीसगढ़ में है। इस खनिज सम्पदा को देशी-विदेशी धन पिपाशु लूटना चाहते हैंजिसके लिये सितम्बर 2009 तक 4 बड़ी कम्पनियों को बिलासपुररायपुरराजानन्दगांव और रायगढ़ में 6,836 हेक्टेअर जमीन देने का निश्चय किया था। टाटा कोे बस्तर में  5.5मिलियन टन का स्टील प्लांट लागने के लिए 2,044 हेक्टेअर भूमि चाहिएजिसके लिए 6 जून 2005 में छत्तीसगढ़ सरकार के साथ इकरारनामा हुआ है। इसके अलावा और सैकड़ों इकरारनामें हुये हंै जिसमें छत्तीसगढ की लाखों हेक्टेअर जमीन जानी है। इस लूट को पूरा करने में अमेरिका और इस्राईल जैसे देशों की भी भागीदारी रही है। वे यहां के आदिवासियों को खत्म करने के लिये हथियारों से लेकर ट्रेनिंग तक दे रहे हैं। वे अपने एक्सपर्ट को छत्तीसगढ़ भेजते हैं ताकि आदिवासियों के संघर्ष को समाप्त कर पूंजीवादी-साम्राज्यवादी लूट को बढ़ाया जा सके।
रोज-रोज के फर्जी मुठभेड़ और गिरफ्तारियों से आदिवासियों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है। आदिवासी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संगठित होकर लड़ रहे हैंचाहे आप इनके संघर्ष को जिस नाम से पुकारें। इस लूट को बनाये रखने के लिये भारत सरकारछत्तीसगढ सरकार जितना भी फर्जी मुठभेड़ में लोगों को मारे,महिलाओं के साथ बलात्कार करेशांतिप्रिय-न्यायपसंद लोगों को धमकाये और उन पर हमले करायेलेकिन वह शांति स्थापित नहीं कर सकती है। राष्ट्रपति जीआपने पूछा था किशांति प्राप्त करना इतना दूर क्यों हैटकराव का समाप्त करने से अधिक शांति स्थापित करना इतना कठिन क्यों रहा है?’ जब तक मुट्ठी भर धन पिपाशुओं के लिए आम जनता की जीविका के साधन (जल-जंगल-जमीन) छिनते जायेंगेतब तक यह टकराव रहेगा। जब तक विकास के नाम पर विनाश का खेल चलता रहेगातब तक शांति स्थापित नहीं हो सकती है। यही आपके प्रश्नों के उत्तर हैं।
कब तक देश की शोषित-पीड़ित जनतादलितआदिवासीअल्पसंख्यकमहिला मुद्दों पर अलग-अलग लड़ती रहेगीक्या हम सब की लड़ाई एक नहीं हैक्या हमारा साझा दुश्मन सामंतवादपूंजीवादसाम्राज्यवाद नहीं हैक्या हमारी अलग-अलग लड़ाई इन ताकतों के लिए फायदेमंद नहीं हैदलितआदिवासीअल्पसंख्यकमहिलाएंमजदूर,किसान एक होकर लड़ें यही समय का तकाजा है।

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