जरूरत है आज बिरसा के विस्तार की....
वह मूलनिवासी योद्धा, जिसने ब्राह्मणवादी व्यवस्था के ख़िलाफ उलगुलान का बिगुल फूंका था... जिसने अपने आदिवासी शूरवीरों को साथ लेकर तत्कालीन सत्ता की चूलें हिला दी थीं। तब देश ग़ुलाम था, लेकिन आज के आज़ाद भारत में आदिवासी ग़ुलाम-सा जीवन जी रहे हैं। प्रकृति की रक्षा करती आई यह कौम आज उसी से जबरन बेदखल की जा रही है। एक बार फिर वही ब्राह्मणवादी व्यवस्था मूलनिवासियों के अस्तित्व को ही ख़त्म करने के लिए तुली हुई है...तो अब जरूरी है बिरसा के विस्तार की...उलगुलान के आह्वान करने का समय अब आ गया है...
वह मूलनिवासी योद्धा, जिसने ब्राह्मणवादी व्यवस्था के ख़िलाफ उलगुलान का बिगुल फूंका था... जिसने अपने आदिवासी शूरवीरों को साथ लेकर तत्कालीन सत्ता की चूलें हिला दी थीं। तब देश ग़ुलाम था, लेकिन आज के आज़ाद भारत में आदिवासी ग़ुलाम-सा जीवन जी रहे हैं। प्रकृति की रक्षा करती आई यह कौम आज उसी से जबरन बेदखल की जा रही है। एक बार फिर वही ब्राह्मणवादी व्यवस्था मूलनिवासियों के अस्तित्व को ही ख़त्म करने के लिए तुली हुई है...तो अब जरूरी है बिरसा के विस्तार की...उलगुलान के आह्वान करने का समय अब आ गया है...

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