Saturday, June 18, 2016

भाजपा के नकली "धम्म यात्रा" के जवाब में बसपा भी असली "सचेत यात्रा" निकालेगी.. [?]उत्तरप्रदेश के चुनावी समर में सियासी दलों में बौद्धों के वोट प्राप्त करने की होड़ मची है. [?]बहन मायावतीजी द्वारा बुद्धिस्ट कल्चर को बढावा देने से पहली बार हिंदूत्ववाद की धार कम होने लगी है.. [?]खुशी की बात है की इस देश के सबसे बड़े राज्य में पहली बार हिंदूत्ववाद-रामंदिर का मुद्दा पिछे छुटा और बौद्धवाद के मुद्दे को बढ़ावा मिल रहा है

   
निर्वाण बोधी
June 18 at 4:35pm
 
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[?]भाजपा के नकली "धम्म यात्रा" के जवाब में बसपा भी असली "सचेत यात्रा" निकालेगी..
[?]उत्तरप्रदेश के चुनावी समर में सियासी दलों में बौद्धों के वोट प्राप्त करने की होड़ मची है.
[?]बहन मायावतीजी द्वारा बुद्धिस्ट कल्चर को बढावा देने से पहली बार हिंदूत्ववाद की धार कम होने लगी है..
[?]खुशी की बात है की इस देश के सबसे बड़े राज्य में पहली बार हिंदूत्ववाद-रामंदिर का मुद्दा पिछे छुटा और बौद्धवाद के मुद्दे को बढ़ावा मिल रहा है..[?]
(निर्वाण बोधी, नागपुर)
[?]बाबासाहब ने सही कहा था, *इस देश में जो भी संघर्ष हुआ है वह बौद्धवाद और ब्राम्हणवाद के बीच ही हुआ है* इस देश में अगर आधुनिक भारत में बौद्ध धम्म को किसीने पुनरजिवित किया है तो वह एकमात्र महान उपासक डॉ.बाबासाहब आंबेडकरजी है. बाबासाहब ने 1956 तक एकमात्र सपना देखा था की *पुरा भारत बौद्धमय होना चाहिए* बाबासाहब ने भी शायद ही सोचा होगा की, आने वाले समय में इस देश के चुनावों में बौद्ध धम्म के विचारों पर वोट मांगे जाएंगे. आखिर यह बदलाव कैसे हुआ. क्यों आज हिंदूत्ववादी भाजपा, गांधीवादी काँग्रेस, लोहियावादी समाजवादी पार्टी को बौद्ध वोटों को अपनी तरफ खिचने के लिये बौद्ध धम्म के कार्यक्रमों का आयोजन करना पड़ रहा है.. इसकी एकमात्र वजह है *महान बौद्ध उपासिका बहन मायावतीजी.* बहन मायावतीजी को जब जब भी उत्तरप्रदेश जैसे बड़े ब्राम्हणवादी राज्य में शासन करने का और चलाने का मौका मिला तब तब महान बौद्ध उपासिका बहन मायावतीजी अपने बौद्ध शासन में बुद्धिस्ट कल्चर को बड़ै पैमाने पर बढ़ावा दिया.. चूंकी तथागत बुद्ध का धम्म यह संसार के सभी मनुष्य प्राणियों के लिये है. बुद्ध की नजर में सर्व मनुष्य जाती एक ही परिवार के लोग है.. इसी विचारों को बढ़ावा देने के लिये बहन मायावतीजी ने अपने शासन को *सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय* के मुद्दे पर चलाया.. जिसके कारण राज्य में मनुष्य के आपसी भेदभाव में गिरावट आयी,सांप्रदायिक हिंसा में काफी गिरावट आई, जातीयों के अंतर्गत भाईचारे को बढावा मिल रहा है.. चाहे ब्राम्हण हो, चाहे वैश्य क्षत्रिय हो, चाहे पिछड़े वर्ग के लोग हो. यह लोग समय के साथ साथ बड़े पैमाने पर बुद्धिस्ट कल्चर के तरफ आकर्षित हो रहे है. यादवों में भी बड़े पैमाने पर बौद्ध भंते बनने की चाहत पैदा होती चली गई.
[?]गौतम बुद्ध की जयंती पर उत्तर प्रदेश के सियासी दलों में होड़ मची है[?]
[?]बहुजन समाज पार्टी पहले से ही महात्मा बुद्ध को अपना प्रेरक मानती है, बल्कि बसपा की नीव ही तथागत बुद्ध के मानवी सिद्धांत पर बनी है.. बहन मायावतीजी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बुद्ध की जगह-जगह प्रतिमाएं लगवाई थीं, बौद्ध वास्तू स्थापत्य कला के आधार पर विशाल स्मारक बनवाये.. यह बात बौद्ध मतावलंबी अच्छे से जानते है. बौद्ध धर्म में समाजवादी पार्टी समाजवाद तलाश रही है, तो भारतीय जनता पार्टी को बौद्ध धम्म के सहारे चुनावी नाव पार होने की संभावना दिख रही है, तो काँग्रेस भी इस होड में पिछे नहीं है. इस साल में संपन्न हुए गौतम बुद्ध की जयंती से ही उत्तर प्रदेश के ब्राम्हणवादी दलों में होड़ मची है. सब अपने-अपने तरीके से गौतम बुद्ध को याद कर रहे हैं. सबकि नजर चुनाव पर टिकी है. सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बौद्ध मतावलंबियों को लुभाने के लिए अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान में संगोष्ठी और भजन संध्या का आयोजन करवा रहे हैं. यह संदेश देने की कोशिश है कि समाजवादियों को बौद्ध धर्मावलंबियों और गौतम बुद्ध की फिक्र है. साल भर में एक शाम ही सही बुद्ध के नाम का जाप तो हो रहा है. भाजपा भी पीछे-पीछे लगी हुई है. बाकायदा बौद्ध भिक्षुओं की टोली बनाकर भाजपा उन्हें पूरे प्रदेश में घुमा रही है. घर-घर बुद्ध के नाम की अलख जगाई जा रही है. धम्म चेतना यात्रा के जरिए संदेश दिया जा रहा है कि नरेंद्र मोदी देश के ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सबसे पहले जापान, चीन, कोरिया, श्रीलंका और भूटान जैसे बौद्ध बहुल देशों की यात्रा की. वहां को मठों में गए और माथा टेका. इससे देश-विदेश के बौद्ध अनुयायियों का मान बढ़ा.
[?] *धोकेबाज शील रक्षित भिक्षु निकाल रहे धम्म यात्रा* - उत्तर प्रदेश की 19 करोड़ से भी अधिक की आबादी में सरकारी आंकडे के अनुसार बौद्ध धर्मावलंबी एक प्रतिशत से भी काफी कम यानी 0.64 प्रतिशत हैं. लेकिन जब मनुवादि पार्टियों को यह लगा की उत्तरप्रदेश में बुद्धिस्ट कल्चर को बड़े पैमाने पर बढ़ावा मिल रहा है. पिछड़े वर्ग के लोग बड़े पैमाने पर बौद्ध धम्म के तरफ आकर्षित हो रहे है.. तो भाजपा ने राममंदिर और हिंदूत्ववाद के मुद्दे को छड़कर बौद्ध धम्म का मुद्दा चुनाव के प्रचार में झोंकने का इरादा बनाया.. 2017 के विधानसभा चुनावों में यहां पार्टियां कोई मौका चूकना नहीं चाहती हैं. लिहाजा एक-एक बौद्धों के मत की मारामारी चल रही है, सभी ब्राम्हणवादी दल इसके लिए जूझ रहे हैं.
[?]फिलहाल उत्तरप्रदेश के बौद्धों को लुभाने के अभियान में भाजपा आगे दिख रही है. वह बता रही है कि बुद्ध और राम एक हैं. बौद्धों और वैष्णव को जोड़ने का नया फार्मूला उत्तर प्रदेश में तैयार किया गया है. इसके लिए सारनाथ से धम्म यात्रा शुरू की गई है. इसका समापन 14 अक्टूबर को लखनऊ में होगा. चार चरणों की यात्रा उप्र की 300 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी. यात्रा के मुख्य समन्वयक शील रक्षित भिक्षु है. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं. यात्रा में ये बता रहे हैं कि मोदी के नेतृत्व में देश का मान-सम्मान बढ़ रहा है. रक्षित बहन मायावतीजी का नाम लिये बिना यह बता रहे हैं कि वंचित समाज,जाति व धर्म के नाम पर धोखा देने वालों से सावधान रहे.
[?]बौद्धों को लुभाने के अभियान में वे यात्रा के जरिए धार्मिक, आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक चेतना पैदा करने का दावा करते हैं. जनता को बता रहे हैं कैसे कुछ लोग दलितों, शोषितों व पिछड़ो का नाम लेकर उनके वोट के लिए उन्हें ठग रहे है. शील रक्षित के मुताबिक धर्म का भ्रम छोड़ना होगा लोगों को. सबको बराबरी का दर्जा देने का काम करने वाले प्रधानमंत्री के साथ खड़े होना ही विकल्प है. हालांकि भाजपा इस यात्रा से खुद को अलग बता रही है. उसका कहना है कि धम्म यात्रा से पार्टी का कोई मतलब नहीं लेकिन धोखेबाज शील रक्षित और भाजपा के संबंध जगजाहिर हैं.
[?] *बौद्ध उपासिका बहन मायावतीजी भी डंटके मैदान में खड़ी है* बहन मायावतीजी दलितों को, पिछड़ों को बौद्ध बनने के लिए हमेशा प्रेरित करती रही हैं. दलितों के बौद्ध धर्म ग्रहण करने का पुराना इतिहास है. बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था. धम्म यात्रा में भले ही भाजपा का झंडा और बैनर नहीं है, लेकिन बहन मायावतीजी को पता है कि इससे भाजपा मिडिया के माध्यमसे अपने पक्ष में माहौल बना रही है. इसलिए बहन मायावतीजी ने भी भीम और बुद्ध के संदेशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए बसपा का स्थानीय कैडर बौद्धों और दलितों के बीच सक्रिय कर दिया गया है. सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में बसपा शून्य पर पहुंच गई थी. 33 लोकसभा सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों ने दूसरा स्थान हासिल किया था. एक लिहाज से बसपा 165 विधानसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. बहन मायावतीजी का फोकस इन सीटों पर ज्यादा है. इन सीटों पर बौद्ध गुरुओं और प्रवर्तकों को पार्टी से जोड़ने का काम तेज कर दिया गया है. बसपा का आधार दलित वोट बैंक है जो 22 से 24 प्रतिशत है. इसमें 15 प्रतिशत जाटव है. बीएसपी के ये ठोस वोट बैंक हैं. पार्टी की कोशिश है जहां-जहां से भाजपा की धम्म यात्रा निकल रही है उसके पीछे सचेत यात्रा निकाली जाएगी. कुल मिलाकर अपने वोट बैंक को सहेजने की रणनीति पर बसपा काम कर रही है.
[?] *सपा का समाजवादी बौद्ध धर्म*- धम्म यात्रा की काट में सपा भी कार्यक्रम कर रही है. सरकारी संगठन अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, लखनऊ को इस काम में लगाया गया है. बुद्ध जयंती के अवसर पर संस्थान ने बौद्ध धर्म एवं समाजवाद नाम से सेमिनार का आयोजन किया. इसमें बौद्ध धर्म के चिंतकों और विचारकों के बीच चर्चा आयोजित की गई. भजन संध्या की भी व्यवस्था है. इन सबका मकसद सिर्फ एक है बुद्ध से नजदीकी जताकर बौद्धों के वोट हासील करना.. काँग्रेस के नेता भी महाराष्ट्र में और कर्नाटक में किये गये बौद्ध धम्म के कार्यों का वास्तो देकर वोटरों को लुभाने में पिछे नहीं.. चाहे यह मनुवादी दल बौद्धवाद को चुनाव प्रचार में कितना भी भूनाने की कोशीश करे लेकिन बौद्धों का वोट यह विचारधारा के आधार पर निर्माण हुआ है.. यह वोट बसपा के अलावा किसी को जाएगा नहीं..
*जयभीम-नमो बुद्धाय..*
(NBMC)

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