Friday, June 3, 2016

राजस्थान के भोइरा ( या इससे कुछ मिलता जुलता नाम बताया था) क्षेत्र से ये यात्री हरिद्वार पहुंचे रेल से.और स्नान कर बद्री केदार की यात्रा पर चल पड़े पैदल.! पूरा गाँव साथ है. ...!

Kamal Joshi
तीर्थ यात्री.1
राजस्थान के भोइरा ( या इससे कुछ मिलता जुलता नाम बताया था) क्षेत्र से ये यात्री हरिद्वार पहुंचे रेल से.और स्नान कर बद्री केदार की यात्रा पर चल पड़े पैदल.! पूरा गाँव साथ है. ...!
रास्ते में जहां पानी मिलता है नहाते धोते हैं खाना पकाते हैं. और फिर चल देते है.
मुझे लगता है की ये ही असली यात्री है जिनकी यात्रा को भगवान् सफल बनाता होगा. अभी गौचर यात्रा में मुझे राजस्थान के और महाराष्ट्र के बहुत सारे यात्री इसी तरह पैदल यात्रा करते मिले.
, इन्होने बताया की फिलहाल तो ये पेड़ों के नीचे सो लेते हैं पर बारिश में परेशान होते है. "अतिथि देवो भवों" का मंत्रोच्चारण करने वाले हमारे पर्यटन विभाग ने ऐसे यात्रियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की है. कहीं कोई रेन बसेरे नहीं हैं . अगर सरकारी कागजों और आंकड़ों में हैं तो मुझे दिखे नहीं...!
मुझे चिंता है की अभी श्रीनगर के आसपास तो बारिश झेली जा सकती है पर जैसे जैसे ये उपरी क्षेत्र में जायेंगे इनकी रातें कैसे कटेंगी. और मौसम का मिजाज़ भी ठीक नहीं.
सबसे दुखद ये है की इन लोगों के साथ स्थानीय होटेल और धरमशाला वालों का व्यवहार उत्साहजनक नहीं रहता...और कभी कभी अपमानजनक भी .......क्यों की ये मुह माँगा पैसा खर्च करने की स्थिति में नहीं रहते.
जब मैंने इनसे बात की तो इन्हें कोई शिकायत या गुस्सा नहीं था. बस ये तो प्रभू यात्रा पर थे और ये कष्ट इनकी यात्रा की परीक्षा थे.
इनसे बात कर मुझे बहुत अच्छा लगा. और मुझे ये भ्रम भी हुआ की इन यात्रियों को भी अच्छा लगा की मैंने गाडी रोक कर इनसे बात की....! इन लोगों ने मुझसे उत्तरखंड को जानने बारे में उत्सुक्त्रा दिखाई...
अनुरोध: अगर आप को भी ऐसे यात्री मिलें तो तो दो मिनट रूक कर उनसे बातें ज़रूर करें..., मेरा अनुभव है की वे भी चाहते हैं की को स्थानीय उनसे बात करें.
सिर्फ जय उत्तराखंड , या भारत माता की जय कहने बेहतर है की इस तरह के असली हिन्दुस्तानी से दो मिनट रूक कर बात की जाए और अपने उत्तराखंड के बारे में थोड़ी सी जानकारी दें.
मेरी इस पोस्ट पर कमलेश जोशी जी ने एक बात की और इशारा किया है ....."दूसरा पहलू यह है कि गंदगी बहुत करते हैं।जैसे खुलें में शौच,झूठन वहीं छोड़ जाना..इस पर भी विचार किया जाना चाहिए"
मैं उनके विचार से सहमत हूँ लिकिन उनसे इस गुज़ारिश के साथ की
शायद उन्होंने मेरी पोस्ट की इस बात पर ध्यान नहीं दिया की हमारे धर्मस्थ व पर्यटन विभागों ने इस तरह के यात्रियों के लिए कोई इंतज़ाम नहीं किये. वे तो बस होटलों या ज्यादा से ज्यादा होम स्टे तक ही सिमित हैं और वो भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े हैं. (हाल में एक पयटन विभाग के अधिकारी की घूस लेते हुए ग्रिफ्तारी तो icebarg का टिप ही है)
और जो यात्री समूह में ऋषिकेश से में बस से ठूंस ठूंस कर लाये जाते हैं वो बस ड्राईवर की कृपा पर निर्भर होते हैं , जहां वो रोकता है उस जगह का इस्तेमाल ये करते हैं , इसके लिए बस ड्राईवर को निदेशित किया जाना चाहिए की वो उन जगहों पर बस रोकी जहां सुविधाएं है.
हम भी ज़रूर कभी सड़क के किनारे खड़े होकर पेशाब करते ही हैं क्यों की आस पास जन सुविधा नही रही होगी.... कुछ कुछ यही बात इन पर भी लागू है..

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