मराठवाड़ा में सूखा सबसे ज्यादा दलितों के हिस्से आ रहे हैं. छूआछूत भरे समाज में जीने भर का पानी हासिल करना दिन भर का सबसे बड़ा संकट है. राजधानी में पैदा हो रहे विमर्श में "हाशिए के लोग" जैसे शब्द ठेले जाते हैं. वो हाशिया आखिर कहाँ है? ये बुद्धिजीवी धोखाधड़ी है जो टर्म कोइन करने के नाम पर पूरी बहस को शब्द मीमांसा में तब्दील कर दिया गया है.
ये सिर्फ मराठवाड़ा की बात नहीं है. देश के हर हिस्से में, देश में आने वाली हर आपदा को सबसे ज्यादा जो लोग भुगत रहे हैं वो जाती की संस्था के सबसे निचले पायदान से आते हैं. आप चाहे जिस नाम से उन्हें पुकारे, ये उनकी पीड़ा में कोई ख़ास असर नहीं डालने वाला.
ये सिर्फ मराठवाड़ा की बात नहीं है. देश के हर हिस्से में, देश में आने वाली हर आपदा को सबसे ज्यादा जो लोग भुगत रहे हैं वो जाती की संस्था के सबसे निचले पायदान से आते हैं. आप चाहे जिस नाम से उन्हें पुकारे, ये उनकी पीड़ा में कोई ख़ास असर नहीं डालने वाला.
No comments:
Post a Comment