Monday, June 20, 2016

Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna कभी देखी न सुनी ऐसी तिलिस्मात की रात --------------------------------------------------- यारो , ध्यान से सुनो और समझो । यह नरेंद्र नगर है । टिहरी ज़िला । उत्तरखण्ड । यहाँ स्वाधीनता संग्राम में मेरे पिता क़ैद रहे , 1944 में । संयोग् यह हुआ कि आज से 15 साल पूर्व हम दोनो बाप बेटे इस डाक बंगले में पुनः क़ैद रहे । टिहरी बाँध के कारण । तब हम वी आई पी कैदी थे । जब मेरे पिता 1944 में क़ैद रहे , तब वह अपराधी थे । राजद्रोही , लेकिन राष्ट्र द्रोही नहीं । अब यहां रुकता हूँ , तो डिप्टी कलेक्टर को बोलता हूँ - मैं तुम्हारा कैदी हूँ यार । मेरा खाना पीना तुम्हारे ज़िम्मे ।

कभी देखी न सुनी ऐसी तिलिस्मात की रात
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यारो , ध्यान से सुनो और समझो । यह नरेंद्र नगर है । टिहरी ज़िला । उत्तरखण्ड । यहाँ स्वाधीनता संग्राम में मेरे पिता क़ैद रहे , 1944 में । संयोग् यह हुआ कि आज से 15 साल पूर्व हम दोनो बाप बेटे इस डाक बंगले में पुनः क़ैद रहे । टिहरी बाँध के कारण । तब हम वी आई पी कैदी थे । जब मेरे पिता 1944 में क़ैद रहे , तब वह अपराधी थे । राजद्रोही , लेकिन राष्ट्र द्रोही नहीं । अब यहां रुकता हूँ , तो डिप्टी कलेक्टर को बोलता हूँ - मैं तुम्हारा कैदी हूँ यार । मेरा खाना पीना तुम्हारे ज़िम्मे ।


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