Friday, June 17, 2016

Satya Narayan संघियों के माता-पिता (पिताओं की संख्‍या ही ज्‍यादा है) गांव के किसानों की फसलें बर्बाद करने के अपने अगले कार्यक्रम के लिए सुस्‍ताते हुए, कुछ वैसे ही जैसे संघी गुजरात, मुजफ्फरनगर, बाबरी आदि करने के बाद थोड़े दिन के लिए सुस्‍ताते हैं।

संघियों के माता-पिता (पिताओं की संख्‍या ही ज्‍यादा है) गांव के किसानों की फसलें बर्बाद करने के अपने अगले कार्यक्रम के लिए सुस्‍ताते हुए, कुछ वैसे ही जैसे संघी गुजरात, मुजफ्फरनगर, बाबरी आदि करने के बाद थोड़े दिन के लिए सुस्‍ताते हैं। 
अपने राजस्‍थान प्रवास के दौरान कम से कम पांच छह गांवों में इस भयानक समस्‍या से रूबरू हुआ। हर जगह गांव के किसान जहां भी थोड़ी देर के लिए इकट्ठे होते हैं, उनकी चर्चाओं का एकमात्र केन्‍द्र बिन्‍दु ये आवारा गोवंश ही रहता है। अपनी राजनीतिक पक्षधरता केकारण सैद्धांतिक रूप से ये बात तो पहले ही समझ में आ ही रही थी कि हाफपैण्टियों द्वारा गांव गांव में खड़े किये जा रहे गोरक्षा दल व अलग अलग राज्‍यों में गोवंश कत्‍ल विरोधी कानून किसानो के आर्थिक रूप से कमरतोड़क सिद्ध होंगे। पर गांव में इस चीज का ओर खतरनाक पहलू देखने में आया। एक गांव में तो लोगों ने बताया कि वहां करीबन 150 आवारा गायों का एक खूंखार झुण्‍ड ऐसा है जो बिना हथियार (पटाखा, बारूद) आदि के रखवाली करने पर रखवाले किसानो को मार भी सकता है। एक गांव के किसानों ने 1.5 लाख रूपये इकट्ठा करके एक ट्रक वाले को ठेका दिया है कि वो उस गांव के सारे आवारा गोवंशो को कहीं ठिकाने लगायेगा। जिन गोवंशो को बेचकर कुछ पैसे लोगों को मिल सकते थे, अब उसकी जगह किसानों को पैसे देने पड़ रहे हैं, ये कृपा हाफपैण्टिया गोरक्षक दलों की है। उनके आतंक से बहुत ही कम लोग अब गोवंश को कत्‍लखानों तक पहूँचाने का काम कर पा रहे हैं। जो कर भी रहे हैं, वो अपनी जान जोखिम पर रखकर कर रहे हैं व इसीलिए ज्‍यादा पैसा चार्ज कर रहे हैं।
आगे आने वाले वर्षों में ये गोरक्षक दल भारत के तालिबानी आतंकी सिद्ध होंगे, ये शायद शहरी मध्‍यम वर्ग को तुरंत समझ में नहीं आयेगा पर गांव के लोगों को ये समझ आने लगा है। दिक्‍कत बस ये है कि उनको राजनीतिक रूप से संगठित करने वाली कोई सही ताकत यहां मौजूद नहीं है। अगर होती तो गोरक्षक दलों के प‍िछवाड़े पर सारे किसान मिलकर इतने डण्‍डे मारते कि वो अपनी रक्षा भी नहीं कर पाते।

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