Sri Bhavya
साढ़े बारह बजे थे. फ़ोन बजा। दो बजे की एक ख़ास बैठक के लिए फ़ोन था। समय कम था, तो सोचा चलो मेट्रो से निकल लेते हैं। वैशाली मेट्रो स्टेशन पर अचानक देखा कि एक नेत्रहीन लड़का एस्केलेटर पर ग़लत दिशा से चढ़ने की कोशिश कर रहा है, यानि जहाँ से लोग उतरते हैं। दौड़कर उसकी बाँह थामकर उसे पीछे खींचा। उसकी प्लास्टिक की छड़ी एस्केलेटर के खाँचों में फँस गई थी, उसे खींचकर निकाला। उसे सही एस्केलेटर पर लेकर ऊपर की ओर बढ़ा तो पता चला कि वो विश्वविद्यालय में बीए प्रथम वर्ष में अंग्रेज़ी का पेपरदेने जा रहा था, सवा एक बज रहे थे और उसे ढाई बजे तक प्रवेश करके परीक्षा टिकट भी लेना था। उसका पहला पेपर था आज। समय कम था। नेत्रहीनों को परीक्षा देने के लिए एक लेखक का इंतज़ाम खुद से करना होता है, जिसका भाड़ा तीन सौ रुपया उन्हें देना होता है। बहरहाल, राकेश ने बीस का एक नोट निकालते हुए कहा कि आप मेरा टिकट ले लो। मेट्रो के टिकट काउंटर पर बड़ी लाइन लगी थी। मैनें उसके साथ सुरक्षा जाँच करवा के तुरन्त दो मेट्रो कार्ड बनवाए और डेढ बजे हम राजीव चौक वाली मेट्रो में संग संग बैठे थे। एक बजकर सैंतालीस मिनट पर हम पहुँचे और भागे भागे समयपुर बादली वाली मेट्रो में सवार हुये। दो बजकर सत्रह मिनट पर विश्वविद्यालय स्टेशन आया। टार्गेट ढाई बजे में केवल तेरह मिनट बचे थे। एक शेयरिंग थ्रीव्हीलर में हम आर्ट्स फैकेल्टी की और दौड़ रहे थे। ठीक ढाई बजे गेट पर। उसका राइटिंग मैन पाँच मिनट बाद आया, पर हमारे पास समय था। राकेश अब परीक्षा दे रहा होगा और मेरे मन में अजीब सी ख़ुशी है। मीटिंग तो फिर हो जाएगी। राकेश एक बडा ही होनहार लड़का है, उसने नेत्रहीनों के लिए ब्रेल कैलेंडर से लेकर रेल की समय सारणी तक बना रखा है, इसे समाचारों में जगह भी मिली है, पर वो अपने शहर सागर में नेत्रहीनों को मिलने वाली असुविधा से परेशान है। इस कारण उसे ओपन लर्निग से यहाँ से ग्रेजुएशन करना पड रहा है। उसने पहले सागर में ही दाख़िला करवाया था. पर वहाँ नेत्रहीनों के लिए क्लास ही नही चलती थी। राकेश को परीक्षा में सफलता मिले. मेरी प्रार्थना है।
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