संदेश यात्रा
सवांद - 1
प्रिय साथी,
जल और जंगल के साथ मनुष्य व समाज के रिश्ते में आई टूटन ने जंगलों ओर जलस्रोतों के विनाश की तीव्रता बढ़ाई है। मानव की महत्वकांक्षाओं ने प्रकृति में अन्य प्राणियों की हिस्सेदारी पर अतिक्रमण करके उनके जीवन को संकट में डाला है। मानव समाज के जंगल और जल के प्राकृतिक रिश्तों को सरकारों द्वारा विभिन्न कानूनों को बनाकर समाप्त किया गया है।
इन विकट स्थितियों में समाज का सुन्न रहना और जल व जंगल जैसे मूलभूत संसाधनों को सरकारों और माफियाओं के मुनाफा कमाने का साधन बनाये जाने की स्थिति में पहाड़ पर जीवन कितना व्यवहारिक रह पायेगा? यह सवाल आने वाली पीढ़ियां हमें कोसती धिक्कारती हुयी हमसे ही पूछेंगी।
उत्तर भारत का जल स्तभं कहे जाने वाले हिमालय में पानी की पूर्ती प्राकृतिक जलस्रोतों से होती है। प्रायः जलस्रोतों के निकट ही गांवों की बसासत है। जलस्रोतों का उद्गम स्थल अधिकांशतः जंगलों में होता है। जंगलों के ऊपर बढ़ते दबावों एवं वनाग्नि के दुष्प्रभावों का सीधा असर यहां के जल स्रोतों पर पड़ता है। जलस्रोतों के निरंतर घटते स्तर के कारण पहाड़ के गांवों में जीवन दुष्कर हो रहा है। जंगल से निकलने वाली नदियां भी जलस्रोतों से बनती हैं। जलस्रोतों के सूखने और घटने के कारण नदियां भी सूख रही हैं।
जन आन्दोलनों और देव भूमि में कोई जागरी है, जो उजड़ते पहाड़ और बिखरते हिमालय में घंड्याला लगा सके। हमारे जल, जलस्रोत, जंगल, जानवर, जन, और जमीनों को बचाने, सम्हालने के लिये जागर लग सके। आत्ममुग्धता और सुविधाओं के फेर में बंधक समाज और मुनाफे की प्यासी सरकारों व लार टपकाते माफियाओं को जवाब देने के लिये ढंडकों (जन आन्दोलन) को पैदा करने वाले ढंडकी पैदा हो पायेगें?
पहाड़ और पहाड़ के जीवन को बचाने के लिये जरूरी है, कि हमारे जंगल, जल व जलस्रोत हमारे हों। हम इन्हें बचायें, सवांरे और आने वाले भविष्य के लिये सुरक्षित करें। हम एक समाज के रूप में प्रकृति के इन उपहारों के प्रति अपना दायित्व निभायें। हमारे जो अधिकार सरकारों के पास बंधक हैं, उन्हें प्राप्त करने के लिये प्रयास करें। हम संदेश यात्राओं के माध्यम से अपना छोटा सा प्रयास इस बढ़े उद्देश्य के लिये प्रारम्भ कर रहे हैं। आप भी अपने स्थान पर अपने जल जंगल को बचाने व अपने वन और जन अधिकारों के लिये प्रयास करके पहाड़ को बचाने में अपना योगदान दे सकते हैं।
हेंवलघाटी एवं हिमालयी क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता एवं नागर समाज
सम्पर्क- जागृति भवन, खाड़ी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड- sandeshyatra.samvad@gmail.com
सवांद - 1
प्रिय साथी,
जल और जंगल के साथ मनुष्य व समाज के रिश्ते में आई टूटन ने जंगलों ओर जलस्रोतों के विनाश की तीव्रता बढ़ाई है। मानव की महत्वकांक्षाओं ने प्रकृति में अन्य प्राणियों की हिस्सेदारी पर अतिक्रमण करके उनके जीवन को संकट में डाला है। मानव समाज के जंगल और जल के प्राकृतिक रिश्तों को सरकारों द्वारा विभिन्न कानूनों को बनाकर समाप्त किया गया है।
इन विकट स्थितियों में समाज का सुन्न रहना और जल व जंगल जैसे मूलभूत संसाधनों को सरकारों और माफियाओं के मुनाफा कमाने का साधन बनाये जाने की स्थिति में पहाड़ पर जीवन कितना व्यवहारिक रह पायेगा? यह सवाल आने वाली पीढ़ियां हमें कोसती धिक्कारती हुयी हमसे ही पूछेंगी।
उत्तर भारत का जल स्तभं कहे जाने वाले हिमालय में पानी की पूर्ती प्राकृतिक जलस्रोतों से होती है। प्रायः जलस्रोतों के निकट ही गांवों की बसासत है। जलस्रोतों का उद्गम स्थल अधिकांशतः जंगलों में होता है। जंगलों के ऊपर बढ़ते दबावों एवं वनाग्नि के दुष्प्रभावों का सीधा असर यहां के जल स्रोतों पर पड़ता है। जलस्रोतों के निरंतर घटते स्तर के कारण पहाड़ के गांवों में जीवन दुष्कर हो रहा है। जंगल से निकलने वाली नदियां भी जलस्रोतों से बनती हैं। जलस्रोतों के सूखने और घटने के कारण नदियां भी सूख रही हैं।
जन आन्दोलनों और देव भूमि में कोई जागरी है, जो उजड़ते पहाड़ और बिखरते हिमालय में घंड्याला लगा सके। हमारे जल, जलस्रोत, जंगल, जानवर, जन, और जमीनों को बचाने, सम्हालने के लिये जागर लग सके। आत्ममुग्धता और सुविधाओं के फेर में बंधक समाज और मुनाफे की प्यासी सरकारों व लार टपकाते माफियाओं को जवाब देने के लिये ढंडकों (जन आन्दोलन) को पैदा करने वाले ढंडकी पैदा हो पायेगें?
पहाड़ और पहाड़ के जीवन को बचाने के लिये जरूरी है, कि हमारे जंगल, जल व जलस्रोत हमारे हों। हम इन्हें बचायें, सवांरे और आने वाले भविष्य के लिये सुरक्षित करें। हम एक समाज के रूप में प्रकृति के इन उपहारों के प्रति अपना दायित्व निभायें। हमारे जो अधिकार सरकारों के पास बंधक हैं, उन्हें प्राप्त करने के लिये प्रयास करें। हम संदेश यात्राओं के माध्यम से अपना छोटा सा प्रयास इस बढ़े उद्देश्य के लिये प्रारम्भ कर रहे हैं। आप भी अपने स्थान पर अपने जल जंगल को बचाने व अपने वन और जन अधिकारों के लिये प्रयास करके पहाड़ को बचाने में अपना योगदान दे सकते हैं।
हेंवलघाटी एवं हिमालयी क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता एवं नागर समाज
सम्पर्क- जागृति भवन, खाड़ी, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड- sandeshyatra.samvad@gmail.com
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