Friday, June 3, 2016

गांधी-नेहरू जिस तरह संघियों के कलेज़े में हूक मारकर हर क्षण उठते रहते हैं, गांधी ग़र 1948 में नहीं मारे जाते, 1950 में मार दिए जाते, 51, 52, 58 में मार दिए जाते, पर मार पक्का दिए जाते. गोडसे नहीं मारता कोई खड़से मारता, पर मारता ज़रूर. संघियों के रहते उन्हें मलेरिया, कैंसर, टीबी या प्राकृतिक मौत से तो नहीं ही मरना था.

Mithilesh Priyadarshy
गांधी-नेहरू जिस तरह संघियों के कलेज़े में हूक मारकर हर क्षण उठते रहते हैं, गांधी ग़र 1948 में नहीं मारे जाते, 1950 में मार दिए जाते, 51, 52, 58 में मार दिए जाते, पर मार पक्का दिए जाते. गोडसे नहीं मारता कोई खड़से मारता, पर मारता ज़रूर.
संघियों के रहते उन्हें मलेरिया, कैंसर, टीबी या प्राकृतिक मौत से तो नहीं ही मरना था.

"जी अब अंतिम सवाल. आप इतना तटस्थ कैसे रह लेते हैं?"

शाखा मांगोगे, खीर देंगे
लाइब्रेरी मांगोगे, चीर देंगे.
तो एबीवीपी और बजरंगियों ने जता दिया है कि अब 24 घन्टे लाइब्रेरी नहीं, शाखा खुलेगी, जिसको पढ़ना है, शाखा आए.
(और आप हमेशा जानना चाहते थे न कि हत्यारे, बलात्कारी कैसे होते हैं, कौन होते हैं? बीएचयू गेट पर 24 घन्टे लाइब्रेरी की मांग करते लड़कियों-महिलाओं को बेहद क्रूरता से मारते ऐसे ही लोग हत्यारे-बलात्कारी होते हैं. बस थोड़ा सुनसान, थोड़ा दुःसाहस आते ही इनकी नफ़रत, इनकी क्रूरता बलात्कार और हत्या की कार्रवाई में बदल जाती है. सांप्रदायिक हमलों के दौरान इसी मानसिकता से ये बलात्कार और हत्याओं को अंज़ाम देते हैं. इसकी बानगी देखिये कि JNU में जब नारे लगते थे, 'गुजरात के रेपिस्टों को....एक धक्का और दो' तो एबीवीपी वाले जवाबी नारे में कहते थे, 'गुजरात के रेपिस्टों को..एक मौका और दो.' तो अब जब हत्यारे-बलात्कारियों की बात आये तो ऐसे तमाम चेहरों को याद कर लीजियेगा. गांधी से लेकर दाभोलकर, कलबूर्गी, पानसारे आदि की हत्या में और सांप्रदायिक हमलों के दौरान हुए असंख्य बलात्कारों में ऐसे ही लोग शामिल थे.)

मोदी जी संघर्ष करो, हम तोके साथ हैं.

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