ग्राउंड दलित रिपोर्ट- 4
(बाघई)
जहां आज भी दलितों की बारात नहीं निकलने दी जाती
राजस्थान का जिला भरतपुर जो कि उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ है, यहां के पुलिस थाना चिकसाना के तहत ग्राम पंचायत जाटौली रथवान के गांव बाधई जिला मुख्यालय से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर बसा है। इस गांव में गुर्जर समाज के 55 परिवार तथा दलित जाटब समुदाय अनुसूचित जाति के 50 परिवार हैं। यहां गुर्जर समाज के लोगों का दबदबा है। इस समाज के लोग लम्बे समय से अवैध शराब निकालने व बेचने का धन्धा कर रहे हैं और इन्हें पुलिस की सह मिली हुई है। बताया जाता है कि चिकसाना पुलिस थाने के तहत पीपला पुलिस चौकी में तैनात कॉन्सटेबल विष्णु गुर्जर भी इस धन्धे का पार्टनर है। इसी लिए पुलिस इनका कुछ भी नहीं बिगाड पायी है। इस गांव के गुर्जर समुदाय के लोग जब-तब विधान सभा क्षेत्र नगर की विधायक श्रीमती अनिता सिंह गुर्जर का रौब भी दिखाते रहते हैं।
भरतपुर जिले के दलित जागरूक होने के कारण गरिमा की जिन्दगी जीना चाहते हैं जो यहां की सामान्य जाति के लोगों को बरदास्त नहीं होती। जिले में दलितों की बारात को रोकना, दलित दूल्हे को घोडी पर नहीं बैठने देना तथा बैंड बाजे के साथ बिंदोरी निकालने पर अक्सर झगडे होते रहते हैं।
इस गांव में दिनांक 9 मई 2016 को मोहन सिंह जाटब की बेटी की शादी थी और बारात की चढाई हो रही थी तो गुर्जर जाति के समाज कंटकों ने शराब पीकर बारातियों के साथ गाली गलौंच कर मारपीट करना शुरू कर दिया। पीडित दलितों ने जैसे तैसे शादी की रस्में अदा करवाई और दूसरे दिन दिनांक 10 मई को पुलिस चौकी पीपला में तैनात कॉन्सटेबल विष्णु गुर्जर को गुर्जर समाज के लोगों ने बुला लिया और गुर्जर समाज की पंचायत बैठ गई। पंचायत में फैसला लिया कि दलितों को सबक सिखाना पडेगा। इस प्रकार पूर्व निर्धारित योजना के तहत गुर्जरों ने जाटब बस्ती पर हमला बोल दिया। और जब पीडित इस घटना की रिपोर्ट दर्ज करवाने जाने लगे तो उनका रास्ता रोक लिया। जैसे तैसे थाने पर सूचना दी और पुलिस के आने पर आरोपी भाग निकले या यह कहें कि उनको पुलिस द्वारा ही सूचना दी गई। इसमें पुलिस की मिली भगत सामने आने लगी है कि कैसे पुलिस आरोपियों का ही साथ देती है।
पीडितों को जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया, तब पुलिस अधीक्षक के हस्तक्षेप से उनके पर्चा बयान लिए और उसी आधार पर रिपोर्ट तो दर्ज हो गई लेकिन पुलिस अभी तक एक भी आरोपी को नहीं पकड पायी है जबकि आरोपी खुले आम घूम रहे हैं।
यह केवल एक घटना नहीं है, दलितों की हर गांव में कमोबेश यही कहानी है। आखिर बाबा साहेब के रचित संविधान का कब सही रूप में सदुपयोग हो पाऐगा, कब पुलिस प्रशासन दलितों के प्रति संवेदनशील हो पाएगा, राजनेता कब जाति की राजनीति छोडकर सच्चे रूप में जन प्रतिनिधि बन पायेंगे। दलितों के अच्छे दिन कब आयेंगे।
(बाघई)
जहां आज भी दलितों की बारात नहीं निकलने दी जाती
राजस्थान का जिला भरतपुर जो कि उत्तरप्रदेश की सीमा से लगा हुआ है, यहां के पुलिस थाना चिकसाना के तहत ग्राम पंचायत जाटौली रथवान के गांव बाधई जिला मुख्यालय से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर बसा है। इस गांव में गुर्जर समाज के 55 परिवार तथा दलित जाटब समुदाय अनुसूचित जाति के 50 परिवार हैं। यहां गुर्जर समाज के लोगों का दबदबा है। इस समाज के लोग लम्बे समय से अवैध शराब निकालने व बेचने का धन्धा कर रहे हैं और इन्हें पुलिस की सह मिली हुई है। बताया जाता है कि चिकसाना पुलिस थाने के तहत पीपला पुलिस चौकी में तैनात कॉन्सटेबल विष्णु गुर्जर भी इस धन्धे का पार्टनर है। इसी लिए पुलिस इनका कुछ भी नहीं बिगाड पायी है। इस गांव के गुर्जर समुदाय के लोग जब-तब विधान सभा क्षेत्र नगर की विधायक श्रीमती अनिता सिंह गुर्जर का रौब भी दिखाते रहते हैं।
भरतपुर जिले के दलित जागरूक होने के कारण गरिमा की जिन्दगी जीना चाहते हैं जो यहां की सामान्य जाति के लोगों को बरदास्त नहीं होती। जिले में दलितों की बारात को रोकना, दलित दूल्हे को घोडी पर नहीं बैठने देना तथा बैंड बाजे के साथ बिंदोरी निकालने पर अक्सर झगडे होते रहते हैं।
इस गांव में दिनांक 9 मई 2016 को मोहन सिंह जाटब की बेटी की शादी थी और बारात की चढाई हो रही थी तो गुर्जर जाति के समाज कंटकों ने शराब पीकर बारातियों के साथ गाली गलौंच कर मारपीट करना शुरू कर दिया। पीडित दलितों ने जैसे तैसे शादी की रस्में अदा करवाई और दूसरे दिन दिनांक 10 मई को पुलिस चौकी पीपला में तैनात कॉन्सटेबल विष्णु गुर्जर को गुर्जर समाज के लोगों ने बुला लिया और गुर्जर समाज की पंचायत बैठ गई। पंचायत में फैसला लिया कि दलितों को सबक सिखाना पडेगा। इस प्रकार पूर्व निर्धारित योजना के तहत गुर्जरों ने जाटब बस्ती पर हमला बोल दिया। और जब पीडित इस घटना की रिपोर्ट दर्ज करवाने जाने लगे तो उनका रास्ता रोक लिया। जैसे तैसे थाने पर सूचना दी और पुलिस के आने पर आरोपी भाग निकले या यह कहें कि उनको पुलिस द्वारा ही सूचना दी गई। इसमें पुलिस की मिली भगत सामने आने लगी है कि कैसे पुलिस आरोपियों का ही साथ देती है।
पीडितों को जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया, तब पुलिस अधीक्षक के हस्तक्षेप से उनके पर्चा बयान लिए और उसी आधार पर रिपोर्ट तो दर्ज हो गई लेकिन पुलिस अभी तक एक भी आरोपी को नहीं पकड पायी है जबकि आरोपी खुले आम घूम रहे हैं।
यह केवल एक घटना नहीं है, दलितों की हर गांव में कमोबेश यही कहानी है। आखिर बाबा साहेब के रचित संविधान का कब सही रूप में सदुपयोग हो पाऐगा, कब पुलिस प्रशासन दलितों के प्रति संवेदनशील हो पाएगा, राजनेता कब जाति की राजनीति छोडकर सच्चे रूप में जन प्रतिनिधि बन पायेंगे। दलितों के अच्छे दिन कब आयेंगे।
गोपाल राम वर्मा
(लेखक सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव है)
(लेखक सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव है)
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