Thursday, June 2, 2016

भंवर मेघवंशी ग्राउंड दलित रिपोर्ट -3 ( जयनगर ) जहाँ दमन के विरुद्ध दो दलित वीरांगनाएँ संघर्षरत है !

ग्राउंड दलित रिपोर्ट -3
( जयनगर )
जहाँ दमन के विरुद्ध दो दलित वीरांगनाएँ संघर्षरत है !
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राजस्थान में साम्प्रदायिकता की प्रयोगशाला कहा जाने वाला जिला भीलवाड़ा दलित अत्याचार के मामलों में भी अव्वल है ,जितना जालिम जुल्म करने में आगे है ,उतनी है यहाँ पर प्रतिरोध की आवाजें भी मुखर है .विगत एक दशक से कई अभियानों, संगठनों और मुद्दा आधारित आंदोलनों ने भीलवाड़ा जिले की सरजमीं पर विस्तार पाया है .जैसे जैसे प्रतिरोध के स्वर तेज हुये है ,अन्यायकारी ताकतें भी दुगने वेग से दलित दमन में सलंग्न हुई है ,पर अब हम देखते है कि भीलवाड़ा के कोने कोने से आवाज़ आती है –देखना है जोर कितना बाजू –ए –कातिल में है !
प्रतिरोध की ये आवाजें अब छोटे छोटे गांवों ,बाड़ियों ,खेड़ों ,फलों और कस्बों ,नगरों से भी उठ रही है ,अनुसूचित जाति की विभिन्न जाति समुदाय मिलकर अन्याय का प्रतिकार कर रहे है .कुछ ऐसा ही नजारा आप देख सकते है ,भीलवाड़ा के आसींद पंचायत समिति क्षेत्र के शम्भुगढ़ पंचायत के जयनगर गाँव में .जहाँ पर दो बहादुर दलित महिलाएं दलित दमन के विरुद्ध उठ खड़ी हुई है और वो जमकर लौहा ले रही है .
यह अद्भुत संयोग ही कहा जायेगा कि पहली संघर्षकर्ता श्रीमती तारा देवी जीनगर सन 1956 में बाबा साहब के महापरिनिर्वाण के वर्ष में जन्मी, अब उसकी उम्र 60 की हो चुकी है ,मगर होंसला कायम है. इस साल 9 मार्च को निकटवर्ती बालाजी का खेड़ा के बालू गुर्जर ने एक जमीन के टुकड़े पर अधिकार को लेकर तारा देवी पर हमला किया और उसके वस्त्र तार तार कर लज्जा भंग की .बालू गुर्जर की पत्नी कमला गुर्जर ने भी अपने पति की हरकत में सहयोग दिया तथा जातिगत गालीगलौज करते हुए मारपीट की .तारा देवी को जान से मारने की धमकी भी दी गई ,मगर वह नहीं डरी ,उसने डटकर मुकाबला किया और थाना शम्भुगढ़ में जा कर अत्याचारियों के खिलाफ दलित प्रताड़ना का मामला दर्ज करवाया . तारा देवी ने तो हिम्मत रखी ,मगर पुलिस एवं जाँच अधिकारी की ओर से कोई सहयोग नहीं मिला ,घटना के तीन माह बाद भी अब तक कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं की गई है ,फिर भी तारा देवी और उनके परिवार ने न्याय की प्रत्याशा को बरक़रार रखा है और वह लड़ने को तैयार है .
इसी जयनगर गाँव की दूसरी संघर्षशील दलित महिला है माया बलाई .माया के खेत के ठीक नीचे शम्भुगढ़ की नदी है ,माया के कब्जे और स्वामित्व वाली जमीन में निकटवर्ती गजसिंहपूरा के भेरू लाल गुर्जर ने जबरन बोरवेल खोद दिया और पानी का उपयोग करने लगा ,जब इस बात का विरोध माया बलाई ने किया तो भेरू गुर्जर ने चालाकी करते हुए माया के पति नारायण को यह झांसा दे कर अपनी तरफ करने में कामयाबी हासिल कर ली कि इस बोरवेल में आधा हिस्सा तुम्हारा होगा ,हम पानी का मिलजुलकर उपयोग उपभोग करेंगे .
आदतन सज्जन व्यक्ति नारायण बलाई तो भेरू गुर्जर की मीठी मीठी बातों में आ गया मगर माया बलाई उसकी चाल को समझ गई और उसने भेरूलाल गुर्जर द्वारा करवाये गए बोरवेल को लेकर सवाल उठाना जारी रखा .राजस्थान के सामन्ती परिवेश में परम्परागत रूप से स्त्रियाँ अक्सर चुप रहती आई है ,उनके निर्णय सदैव ही मर्द लोग करते आये है ,उन्हें लम्बें लम्बें घूँघट में रखा जाता रहा है तथा बोलने की आज़ादी नहीं के बराबर है .ऐसे रुढ़िवादी समाज में माया बलाई जैसी होंसलेमंद महिला जो अपने भू अधिकार के लिए खुलकर बोलती है ,वह कब बर्दाश्त की जा सकती है ,इसलिए माया भी सदैव ही अन्यायकारी व्यक्तियों और समूहों के निशाने पर रही है .
इसी साल 12 अप्रैल को माया जब खेत पर नितांत अकेली थी ,तब मौका पा कर भेरू गुर्जर के पुत्र सांवर ,कमला तथा सायरी गुर्जर सहित चार लोगों ने माया पर हमला करके सबक सिखाने की योजना को अंजाम दिया .
गुर्जर परिवार के चार स्त्री पुरुषों ने माया पर प्राणघातक हमला किया ,उसका हाथ तोड़ दिया गया ,ओढ़नी फाड़ दी और एक आरोपी सांवर ने उसकी लज्जा भंग करने का दुस्साहस भी किया ,अंततः जब माया बेहोश हो कर गिर पड़ी तो आततायी उसे मरी हुई समझ कर भाग गये ,बाद में भेरू गुर्जर भी मौके पर पंहुचा और उसने कहा कि इसे केवल घायल करके क्यों छोड़ दिया .फावड़ा ले कर आओ ,इस नीच जात बलाटी को नदी की रेत में जिंदा ही दफ़न कर देते है ,ताकि सदा सदा के लिए समस्या खत्म हो जाएगी .त भेरू गुर्जर कुछ कर पाता उससे पहले ही माया का बेटा मौके पर आ गया और वह अपनी घायल माँ को लेकर शम्भुगढ़ अस्पताल और पुलिस थाने में पंहुचा ,जहाँ पर घटना के मुख्य आरोपी भेरू गुर्जर आलरेडी मौजूद था .
इसके बाद दलित उत्पीडन की धाराओं में मामला दर्ज हो गया .मेडिकल भी करवा दिया गया है ,मगर पीड़ित पक्ष को कोई राहत नहीं मिल सकी है .दोनों जांबाज़ दलित महिलाएं माया और तारा अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ झंडा उठाये हुए है ,वे अंतिम साँस तक लड़ना चाहती है ,इन दलित वीरांगनाओं का हौंसला हमें भी हिम्मत देता है .जल्द ही भीलवाडा के साथी माया और तारादेवी के साथ मिलकर इस लडाई को बड़े पैमाने पर लड़ेंगे .और जब लड़ेंगे तो उन्हें जीतना ही है .
- भंवर मेघवंशी
( लेखक राजस्थान में दलित एवं मानवाधिकार के प्रश्नों पर काम कर रहे है .)

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