Monday, June 20, 2016

सुखिया सब संसार है खावै और सोवै। दुखिया दास कबीर है जागै अरू रोवै।।

   
Jeevesh Prabhakar
June 20 at 11:06am
 
आज बहुत याद आ रहे हैं कबीर...........
कबीर जयंती पर सभी को शुभकामनाएं
कबीर -जन्म : 1398 लहरतारा ताल, काशी निधन 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश

संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ झलकती है। लोक कल्याण हेतु ही मानो उनका समस्त जीवन था। । कबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता और पाखण्ड के विरुद्ध स्पष्ट दृष्टी थी । समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। कबीर ने धर्म की कुरीतियों के खिलाफ उस युग में समाज को जगाने का प्रयास किया जब समाज घोर धार्मिक अंधविश्वास और आडम्बरों से पूरी तरह जकड़ा हुआ था। आज भी कबीर उतने ही प्रासंगिक हैं।
डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि साधना के क्षेत्र में वे युग - युग के गुरु थे, उन्होंने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर साहित्य क्षेत्र में नव निर्माण किया था।

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥

तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥

गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥

कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय।
ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय।।

सुखिया सब संसार है खावै और सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागै अरू रोवै।।

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