Dilip C Mandal
मुजफ्फरनगर दंगों के बारे में माना जाता है कि वह मीडिया प्रायोजित दंगा था. उस समय कई अखबारों और चीवी चैनलों ने दंगाई वाली भूमिका निभाई थी. खूब भड़काऊ और आग लगाने वाली खबरें छापी और दिखाई थीं...अगर उन अखबारों और चैनलों को मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सरकारी विज्ञापन मिलने बंद हो गए होते तो वे कैराना को "कश्मीर" बताने जैसी सांप्रदायिक हरकत न करते.
दंगे नहीं होंगे, अगर सरकार दंगाई मीडिया को दंडित करना शुरू कर दे. दंडित भी क्या करना, सिर्फ सरकारी विज्ञापन की मलाई बंद कर दें.
सरकार सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारा कायम करने वाली मीडिया को पुरस्कृत भी कर सकती है.
मिसाल के तौर पर, अमर उजाला की यह खबर देखें.
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