Sunday, June 12, 2016

यह कविता नहीं है... ------------------------- "नदी किनारे अकेले मत जाना! माँ ने कहा था- अकेले में नदी खींच लेती है। माँ नहीं रही तो मैं नदी के पास गया। नदी में पांव रखते ही नदी का सम्मोहन खींचता है। पहली डुबकी के बाद ही मन नदी का हिस्सा बन जाता है। साफ धुले पत्थरों से गंगा की धवल लहरें खेल रही हैं। पांव के नीचे गीली मिट्टी के साथ जैसे जैसे सदियों पुरानी स्मृतियाँ मेरे अस्तित्व को छू रही हैं। पहली बार ससुराल आते हुए माँ ने यहीं नदी पार किया होगा। नानी ने बताया था वह बहुत उदास थी कि बेटी को नदी पार ब्याहना पड़ा! माँ बताती थी कि हर बार नदी पार करते हुए छूटता था माँ का घर! वही नदी जिसे हर बार पुकारता रहा माँ कहकर वहीं माँ ठहर गयी है अपने सारे दुख और अकेलेपन के साथ! नदी पर सूरज की किरणें पड़ती हैं तो चांदी चमकता है। यह सच नहीं जादू है! जादू है उस जल में जो भिगो रहा है अंतर को! गंगा तट पर खड़ा कोई पुकारता है मुझे! अकेला नहीं हूँ मैं! किनारे पर कोई नहीं होता तो क्या नदी खींच लेती मुझे?" - Rakesh Rohit

यह कविता नहीं है...
-------------------------
"नदी किनारे अकेले मत जाना!
माँ ने कहा था- अकेले में नदी खींच लेती है।
माँ नहीं रही तो मैं नदी के पास गया।
नदी में पांव रखते ही नदी का सम्मोहन खींचता है।
पहली डुबकी के बाद ही मन नदी का हिस्सा बन जाता है।
साफ धुले पत्थरों से गंगा की धवल लहरें खेल रही हैं।
पांव के नीचे गीली मिट्टी के साथ जैसे जैसे सदियों पुरानी स्मृतियाँ मेरे अस्तित्व को छू रही हैं।
पहली बार ससुराल आते हुए माँ ने यहीं नदी पार किया होगा। नानी ने बताया था वह बहुत उदास थी कि बेटी को नदी पार ब्याहना पड़ा!
माँ बताती थी कि हर बार नदी पार करते हुए छूटता था माँ का घर!
वही नदी जिसे हर बार पुकारता रहा माँ कहकर वहीं माँ ठहर गयी है अपने सारे दुख और अकेलेपन के साथ!
नदी पर सूरज की किरणें पड़ती हैं तो चांदी चमकता है। यह सच नहीं जादू है! जादू है उस जल में जो भिगो रहा है अंतर को!
गंगा तट पर खड़ा कोई पुकारता है मुझे! अकेला नहीं हूँ मैं!
किनारे पर कोई नहीं होता तो क्या नदी खींच लेती मुझे?"
Rakesh Rohit

No comments:

Post a Comment