गुंडा प्रभारी प्राचार्य चंद्रभूषण श्रीवास्तव को प्रशासन ने एक महीने की छुट्टी पर भेज दिया और उसकी जगह कवि अरुण कमल को प्राचार्य बनाकर कला महाविद्यालय में बिठा दिया। नए प्राचार्य की राह आसान करने के लिए कई दिन पहले से वहां कुछ लोग आन्दोलन का नेतृत्व हाथ में लिए बैठे थे ताकि जब वे आएं तो छात्रों के बीच से रास्ता निकाल कर उनको प्राचार्य की कुर्सी तक पहुंचाया जा सके। खुद को क्रांतिकारी कहने वाली एक पार्टी इस बात के लिए छात्रों का मान-मनौव्वल करती दिखी कि जब नया प्राचार्य आए तो उनके स्वागत में इंकलाब जिन्दाबाद के नारे लड़के लगाएं। कुल मिलाकर कोशिश यह दिखी कि आज ही के दिन ५५ दिनों से चले आ रहे आंदोलन को एक झटके में खत्म कर दिया जाए। लेकिन छात्रों के खून से भीगा कोई आन्दोलन बिचौलियों की कारगुजारियों से थम नहीं सकता। वे अपनी कोशिश में असफल हुए जो उनको होना ही था। कल एक बड़ा कन्वेंसन होने जा रहा है, २९ को एक रैली निकलेगी जिसमें छात्र नेता कन्हैया भी होंगे और तीस को कविता पाठ का कार्यक्रम होना तय हुआ है। आन्दोलन के कवि आएंगे यह उम्मीद है। आज आन्दोलन के कवि होते भी हैं क्या, मन में यह सवाल भी है।
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