Raja Bahuguna
आठ जून को नैनीताल पहुंचते ही नैनी झील को देख मैं सन्न रह गया।देखते ही लगा कि क्या मेरा प्यार शहर एक खूबसूरत झील के मौत का गवाह बनना चाहता है।क्या यह झील अपने प्राकृतिक वजूद को खो चुकी है ? मेरा तो स्पष्ट मानना है कि यह झील पिछले चार दशक में हुए निर्माण कार्यों के चलते जमा मलवे से अपने सदाबहार स्रोत खो चुकी है और अब इसका भविष्य मुख्यतया वर्षात पर निर्भर करेगा।एक प्राकृतिक झील अप्राकृतिक झील में तब्दील हो चुकी है ? इस वर्ष जिला प्रशासन ने बडे पैमाने पर मलवा साफ किया है और अच्छे मानसून पर उसकी निगाह टिकी है ? लेकिन इतने बडे पैमाने पर मलवे की सफाई कहीं शहर के अस्तित्व को ही खतरा पैदा न कर दे।सेट हुए मलवे को निकालना मकान की बुनियाद कुरेदने जैसा तो नहीं ?बहरहाल मेरी जन्म भूमि मेरे प्यारे शहर की उम्र तेजी से कम हो रही है।शासकों की अदूरदर्शिता ने इस शहर की बिमारी को लाइलाज बना दिया है।वन आंदोलन के दौर में हमने बहुत चेताया था।अफसोस कि सब नक्कारखाने में तूती साबित हुआ।



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