Saturday, June 25, 2016

स्त्री की आजादी को हवा में नहीं खड़े कर सकते !

Rajneesh Kumar Ambedkar
आज स्त्री अध्ययन विभाग (म.गां.अं.हिं.वि.,वर्धा) में “साहित्य में स्त्री दृष्टि का रूपायन” विषय पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से आई प्रो. चंद्रकला त्रिपाठी (हिंदी विभाग, BHU) ने अपने वक्तव्य में कहा कि शास्त्रों व धर्म में महिला का महिला मंडन बहुत किया गया है। वहीं साहित्य में भारतेंदु की दृष्टि में पिछड़ापन के बारे में बात की है। उन्होंने कहा आज जो स्त्री महिला मंडित है वही सबसे ज्यादा गुलाम भी है। भाग्यवती का जिक्र करते हुए परिवार में स्त्री को सीमित अधिकार दिए गए हैं। अस्मिता का अर्थ अस्मत से है। जिन उपन्यासों में स्त्रियां लिखी गई हैं प्रेमचंद्र ने लिखा मालती के बारे में तितली कहते हैं, धनिया के बारे में प्रेमचंद्र स्त्री चेतना के बारे में भी बात करते हैं। जैनेंद्र ने सुनीता, पलक आदि उपन्यासों के माध्यम से स्त्री सहनशीलता पर लिखा है। ‘चिडियां होने का अर्थ है अपना आकाश सुनना और पंखों से उड़ना’ और आगे उन्होंने मैत्री पुष्पा को कोड करते हुए कहा कि स्त्री की आजादी को हवा में नहीं खड़े कर सकते हैं। आज जरूरत है स्त्री की अपनी स्वाभाविक अस्मत और भागेदारी जिससे समाज को सशक्त बना सकती है। इस अवसर पर डॉ. सुप्रिया पाठक (प्रभारी विभागाध्यक्ष व असिस्टेंट प्रोफेसर, स्त्री अध्ययन विभाग), प्रो. शंभू गुप्त (स्त्री अध्ययन विभाग), चरनजीत सिंह के साथ विभाग के शोधार्थी व अन्य विभाग के शोधार्थी मौजूद रहे।

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