उत्तराखंड में पलायन एक बड़ा सवाल है.अलग राज्य की लड़ाई में भी उत्तराखंड के बनने के साथ यह आकांक्षा संजोयी गयी थी कि राज्य हमें पलायन से निजात दिलाएगा.लेकिन पिछले पन्द्रह वर्षों में पलायन कम नहीं हुआ बल्कि कई गुना बढ़ गया है.पिछले पंद्रह सालों में लगभग डेढ़ हजार गाँवों में पूरी तरह ताले पड़ गए हैं.अंग्रेजी के एक अखबार में इन गाँवों को –The Ghost villages लिखा गया.यानि भुतहा गाँव-जिन गाँवों में आदमी नाम की हवा तक नहीं रह गयी है.राज्य के सवाल,राज्य की चिंता,राज्य बनने के मकसद पर चर्चा करने वालों के बीच तो पलायन एक बड़ा मुद्दा है.लेकिन राज्य में सरकार बनाने-बिगाड़ने का खेल खेलने वाले कांग्रेस -भाजपा के बीच पलायन कभी मुद्दा नहीं बनता.
कैराना के पलायन को देश की सुर्ख़ियों में लाने वाली भाजपा के एक बड़े नेता और केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से देहरादून में उत्तराखंड के पलायन पर सवाल हुआ तो उन्होंने चिंता प्रकट कर,इतिश्री कर ली.कैराना में जितने लोगों के पलायन के नाम पर भाजपा, पूरा उत्तर प्रदेश सुलगाने को तैयार है,उससे तीन गुना अधिक तो उत्तराखंड में गाँव वीरान हो गए हैं. पलायन की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से भी लगा सकते हैं कि जब पूरे देश में जनसँख्या बढ़ रही है तब अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में जनसँख्या वृद्धि की दर नकारात्मक हो गयी है. लेकिन इस पर कोई सियासी बवाल नहीं है.शायद इसलिए कि उत्तराखंड के पलायन का कोई साम्प्रदायिक-उन्मादी पहलु नहीं है. राजनाथ सिंह जी ने चिंता तो प्रकट की, पर बीते पन्द्रह साल में उत्तराखंड को अकेले दम पर 5 मुख्यमंत्री देने वाली उनकी पार्टी के लिए तो यह सियासी सवाल कभी नहीं बना.हमारे यहाँ के पलायन का एक पहलु यह भी है कि यहाँ सिर्फ लोग ही पलायन नहीं कर रहे हैं,बल्कि नेता भी मैदानी क्षेत्रों में ही विधानसभा-लोकसभा सीट तलाश कर,वहाँ की ओर पलायन कर रहे हैं.राजनाथ सिंह जी की ही पार्टी के रमेश पोखरियाल निशंक,इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं.
नीतिगत स्तर पर किसी ठोस प्रयास के अभाव में उत्तराखंड के पलायन पर सिर्फ जुबानी चिंता करना बताता है कि असल मसला पलायन है ही नहीं,असल मसला कोई समुदाय भी नहीं,असल मसला तो सत्ता पर साम-दाम-दंड-भेद के जरिये पहुंचना है.उसके लिए तथ्य गढ़ने पड़ें या सौहार्द ख़ाक करना पड़े,सब किया जाएगा.उत्तराखंड के पलायन में “शत्रु एंगल” या “दंगा पोटेंशियल” नहीं है,यहाँ इसपर चर्चा किये बगैर भी सत्ता मिल जाती है,इसलिए यहाँ का पलायन कोई मुद्दा नहीं !
कैराना के पलायन को देश की सुर्ख़ियों में लाने वाली भाजपा के एक बड़े नेता और केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से देहरादून में उत्तराखंड के पलायन पर सवाल हुआ तो उन्होंने चिंता प्रकट कर,इतिश्री कर ली.कैराना में जितने लोगों के पलायन के नाम पर भाजपा, पूरा उत्तर प्रदेश सुलगाने को तैयार है,उससे तीन गुना अधिक तो उत्तराखंड में गाँव वीरान हो गए हैं. पलायन की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से भी लगा सकते हैं कि जब पूरे देश में जनसँख्या बढ़ रही है तब अल्मोड़ा और पौड़ी जिलों में जनसँख्या वृद्धि की दर नकारात्मक हो गयी है. लेकिन इस पर कोई सियासी बवाल नहीं है.शायद इसलिए कि उत्तराखंड के पलायन का कोई साम्प्रदायिक-उन्मादी पहलु नहीं है. राजनाथ सिंह जी ने चिंता तो प्रकट की, पर बीते पन्द्रह साल में उत्तराखंड को अकेले दम पर 5 मुख्यमंत्री देने वाली उनकी पार्टी के लिए तो यह सियासी सवाल कभी नहीं बना.हमारे यहाँ के पलायन का एक पहलु यह भी है कि यहाँ सिर्फ लोग ही पलायन नहीं कर रहे हैं,बल्कि नेता भी मैदानी क्षेत्रों में ही विधानसभा-लोकसभा सीट तलाश कर,वहाँ की ओर पलायन कर रहे हैं.राजनाथ सिंह जी की ही पार्टी के रमेश पोखरियाल निशंक,इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं.
नीतिगत स्तर पर किसी ठोस प्रयास के अभाव में उत्तराखंड के पलायन पर सिर्फ जुबानी चिंता करना बताता है कि असल मसला पलायन है ही नहीं,असल मसला कोई समुदाय भी नहीं,असल मसला तो सत्ता पर साम-दाम-दंड-भेद के जरिये पहुंचना है.उसके लिए तथ्य गढ़ने पड़ें या सौहार्द ख़ाक करना पड़े,सब किया जाएगा.उत्तराखंड के पलायन में “शत्रु एंगल” या “दंगा पोटेंशियल” नहीं है,यहाँ इसपर चर्चा किये बगैर भी सत्ता मिल जाती है,इसलिए यहाँ का पलायन कोई मुद्दा नहीं !
No comments:
Post a Comment