Saturday, June 25, 2016

मैं कवि हूँ तुम्हारी आज़ादी के पक्ष में खड़ा रहूंगा सदा तुम किसके साथ हो ? -नित्यानंद गायेन

शिक्षा के नाम पर
सबसे पहला वाक्य हमारे कानों में भरा गया
'आज्ञाकारी बनो' !
परशुराम इतने आज्ञाकारी बने
कि पिता के आदेश पर 
अपनी माँ की हत्या कर दी ।
एकलव्य भी बने आज्ञाकारी
और गंवा बैठा अपना भविष्य
अंगूठे के साथ ।
आज्ञाकारी बनना मतलब
प्रश्न करने की आज़ादी को खो देना है
सही और गलत के चयन का विवेक खो देना है ।
आज्ञाकारी बनाने वाले
दरअसल हमें भेड़ बना कर
हमसे अपनी इच्छाएं पूरी करना चाहते हैं
सम्मान करना
और भेड़ बनने में अंतर होता है
यह बात आज तक उनके समझ में नहीं आई है
ये सभी गुलामी परम्परा के पोषक हैं
और मैं लगातर इनके विरोध में खड़ा हूँ
गुलामी मुझे मंजूर नहीं
इसलिए
मैं नहीं बन पाया हूँ एकलव्य की तरह
मैं किसी भी कीमत पर अपनी आज़ादी पर
आज्ञाकारिता की दासता को स्वीकार नहीं करूँगा कभी
यह जिंदगी मेरी है
इसे मैं अपनी शर्तों पर जीऊंगा ।
मैं कवि हूँ
तुम्हारी आज़ादी के पक्ष में
खड़ा रहूंगा सदा
तुम किसके साथ हो ?
-नित्यानंद गायेन

No comments:

Post a Comment