ये सपने इतने जटिल क्यों होते हैं?
Desh Nirmohi
ये सपने इतने जटिल क्यों होते हैं? क्यों इन में कहानियों की तरह इतने मोड़ होते हैं ! तह के भीतर तह और दृश्य और शब्द के पीछे छुपा अक्सर एक नया अर्थ. जितनी नज़र, उतने डगर और उतनी ही संभावनाएं, विकल्प और तकलीफें. कभी सनम, कभी सखी, कभी क्रांति और कभी इन सब का अदेखा, अनजाना वह समुच्चय जो एक मनुष्य के रूप में हम सबने खो दिया है.एक कोशिकीय जीव में जन्मा हमारा जीवन आज अनगिनत खांचों में बंटा हुआ है. शायद इसीलिए सपनों के सही अर्थ तक पहुँचने में हमें इतनी दिक्कत होती है, क्योंकि सपने में कोई खांचा नहीं होता- न समय का, न समाज का, न व्यक्ति का. वहां एक ही पल में भूत, भविष्य औरवर्तमान सब होता है. एक ही आदमी में कई कई पीढ़ियाँ. महज एक सात आठ साल की लड़की में स्त्री होने का समूचा इतिहास.
'चंचला चोर' उपन्यास की इन चंद पंक्तियों के साथ 'मेरा यार मरजिया' के लेखक द्वारा लिया गया यह छायाचित्र । ' श्रीवन ' उपन्यास की कथायात्रा भी यहीं से आरम्भ होती है।
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