Ujjwal Bhattacharya
शरतचंद्र की आत्मकथामूलक कथानक श्रीकांत में राजलक्ष्मी उसकी अवैध प्रेमिका है. घर से भागकर वह तवायफ़ बन गई थी. उस पैसे से अब ज़मींदार है. ज़मींदारी में मधु डोम की कन्या की शादी होने वाली है, एकबार वहां जाकर इज़्ज़त बढ़ानी है. राजलक्ष्मी और श्रीकांत वहां पहुंचते हैं.
अचानक विवाह स्थल में शोरगुल-मारपीट शुरू हो जाती है. पता चलता है कि वरपक्ष के पुरोहित का कहना है कि कन्यापक्ष का पुरोहित शिबु पंडित गलत मंत्र पढ़ा रहा है. इतनी बड़ी बात ? शिबु पंडित भले ही डोम हो, लेकिन वह दूसरे डोम का छूआ नहीं खाता, उसके गले में जनेऊ है. खैर, बीच-बचाव के बाद तय होता है कि शिबु पंडित मंत्र पढ़ेगा और वरपक्ष का पुरोहित राखाल पंडित गलती पकड़ेगा. दोनों डोम पुरोहित राज़ी हो गये.
शिबु पंडित ने कहा - बोलो, मधु डोमाय कन्याय नमः. वर ने दोहराया.
फिर उसने कन्या से कहा - बोलो, भगवती डोमाय पुत्राय नमः.
फिर उसने कन्या से कहा - बोलो, भगवती डोमाय पुत्राय नमः.
इससे पहले कि कन्या कुछ कहती, राखाल पंडित ने गरजकर कहा - गलत मंत्र है, गलत मंत्र है.
फिर मारपीट की नौबत आ गई. खैर, अंत में तय हुआ कि राखाल पंडित मंत्र पढ़ेंगे. उन्होंने वर से कहलवाया - मधु डोमाय कन्याय भुज्यपत्रं नमः.
कन्या से कहलवाया - भगवती डोमाय कन्याय संप्रदानं नमः.
फिर वर के हाथ में फूल देकर कहलवाया - जब तक जीवनं तब तक भात-कपड़ा प्रदानं स्वाहा.
फिर दोनों से कहलवाया - युगलं मिलनं नमः.
कन्या से कहलवाया - भगवती डोमाय कन्याय संप्रदानं नमः.
फिर वर के हाथ में फूल देकर कहलवाया - जब तक जीवनं तब तक भात-कपड़ा प्रदानं स्वाहा.
फिर दोनों से कहलवाया - युगलं मिलनं नमः.
मंत्र सुनकर सभी लोग धन्य-धन्य करने लगे.
No comments:
Post a Comment