Thursday, June 23, 2016

अनुसूचित समाज को लील रहा है गंगाजल ! रक्षित परमार,उदयपुर

ग्राउंड दलित रिपोर्ट-15
अनुसूचित समाज को लील रहा है गंगाजल !
रक्षित परमार,उदयपुर
हमारा प्रदेश राजस्थान सदियों से प्रथाओं - कुप्रथाओं की जन्मस्थली रहा है । पश्चिमी राजस्थान की अनुसूचित जाति - जनजाति को आर्थिक पिछड़ेपन की ओर धकेलने में यहां की बहुत - सी प्रथाएं - कुप्रथाएं एवं रीति - रिवाज भी मुख्यरूप से जिम्मेदार है । इसी सिलसिले में आज हम बात करते है ' गंगाजल' या गंगाथाली के आयोजन की , जिसने अनुसूचित समुदाय के लाखों बच्चे - बच्चियों और युवाओं का भविष्य अंधकार में डाल दिया है । इसी प्रथा ने आर्थिक रूप से सुदृढ़ होने लगे अनुसूचित समाज को गरीबी , भूखमरी , अशिक्षा , अज्ञानता, बेरोजगारी एवं अंधविश्वास की ओर धकेला है । इस सामाजिक प्रथा को अब एक ज्वलंत कुप्रथा की संज्ञा देना ही उचित होगा । इसके अन्तर्गत अनुसूचित समाज की विभिन्न जातियों में एक ऐसी प्रवृत्ति पनप गयी जिसने समाज को केवल विनाश की ओर मोड़ा है । यह प्रथा है किसी एक जाति के व्यक्ति द्वारा उसी जाति के परगने के लोगों को समझा - बुझा कर न चाहते हुए भी अपने जातीय मगर व्यक्तिगत नकली स्वाभिमान की खातिर हरिद्वार , पुष्कर इत्यादि का भ्रमण करवाया जाता है उसके बाद उस परगने के जाति के लोगों को एक महाभोज दिया जाता है । इस प्रथा में सर्वप्रथम लोगों को वहां ले जाने हेतु महंगा आंमत्रण ( परगने के सभी गांवों में आयोजक समाजबंधू के द्वारा ही गांव -गांव टैक्सियां भेजी जाती है। एक दिन आमंत्रित एवं अनियंत्रित भीड़ को ठूस - ठूस कर महंगी - महंगी ट्रावेल्स में जबरदस्ती भर दिया जाता है । इस अनावश्यक यात्रा के दौरान सभी यात्रियो के आने - जाने का खर्च उसी आयोजक को वहन करना होता है जिसे अपना नकली व अस्थायी आत्मसम्मान हासिल करना है । हालांकि गंगाथाली / गंगाजल करने वाला शक्स इस गैरज़रूरी आयोजन के बाद अपने आपको ज़्यादा सक्षम , ऊंचा और सम्मानित समझने का खोखला भ्रम पालने लगता है । इस यात्रा के दौरान आमंत्रित
यात्रियों का तमाम तरह का खर्च भी वो ढीठ ,अज्ञानता का सूचक वही आयोजक उठाता है जिसे आज के ज़रूरी सामाजिक विकास - उसकी वर्तमान सामाजिक स्थित का ज़रा - सा भी होश नहीं है । इस यात्रा के दौरान साथ में आये सभी यात्री गंगा नदी के पवित्र जल ( आज के समय भारत की सर्वाधिक प्रदूषित नदी में ) में गंगास्नान (एक तरह का गंदास्नान जिसमें विभिन्न प्रकार के रोगों के बैक्टिरियाज़ को अपने साथ ले आते हैं - जो एक तरह का झूठा और ढोंगी स्नान है ) करवाने ले जाया जाता है । इस यात्रा में पवित्र - स्नान करने की ढोंगी चाहत लेकर आने वाले ये यात्रि अधिकतर बीड़ी , सिगरेट , दारू का सेवन करने में भी बड़े माहिर होते है । गंगास्नान के दौरान हरिद्वार में गंगा के घाटों पर पंडों के आतंक का शिकार सबसे अधिक वही आयोजक होता है जिसे उस वक्त भी नकली स्वाभिमान को पाने की बड़ी तलब लगी होती है । यात्रियों को घाटों पर पुश्तैनी धंधा जमाये बैठे पंडितों द्वारा सिर पकड़ - पकड़ कर पानी में बार - बार डूबोया जाता है और तब तक अंदर रखा जाता है जब तक कि वे मनमानि रकम हासिल न कर ले । इस दौरान कई यात्री लोग तो मौत के निकटतम बिंदू तक जाने के बाद ऊपर आकर अपनी सांस भी ले पाते हैं । गंगास्नान के दौरान घाटों पर वर्गो और जातियों के अनुसार वहां पर बड़ी - बड़ी लाईने लगती है । वहां सबसे लम्बी पंक्ति हमेशा से ही अनुसूचित समाज की ही लगती है । कमोबेश ! कारण तो हम सब जानते ही है कि ये समाज आज भी अशिक्षित , रूढ़ीवादी और अंधविश्वासी बना हुआ है । इस यात्रा के पश्चात आयोजकों का गांव में उसी जाति के लोगों द्वारा सम्मान किया जाता है । आयोजक व उसके साथ गई निष्काम व निकृष्ट भीड़ के हरिद्वार से आने के बाद उसी मान - सम्मान के भूखे आयोजक द्वारा उस परगने में आने वाले सभी गांवो के उसकी ही जाति के लोगों को आमंत्रित कर एक महाभोज जिसमें कुल मिलाकर आयोजक तो कंगाली की खस्ता हालत में पहूंच ही जाता है । इस आयोजन में अगर रूपये कम भी पड़ गये तो आयोजक को अपनी जमीन - जायदाद बैचने का भी कोई विशेष गम नहीं होगा क्योंकि पूरी समाज के सामने उसका खोखला स्वाभिमान गिर जाने का भय का रहता है
यह समस्या आज पश्चिमी राजस्थान के पाली , जालोर , बाड़मेर और सिरोही में व्यापक रूप ले चूकी है । हालांकि समूचे मारवाड़ क्षेत्र के अनुसूचित समाज द्वारा इस तरह की अनावश्यक धन एवं समय की बर्बादी हो रही है जिसने इस समाज के आर्थिक , राजनैतिक , सांस्कृतिक , सामाजिक और व्यक्तिगत विकास की धज्जियां उड़ा कर रख दी है । इस सामाजिक कुप्रथा को मिटाकर कर आधूनिक समय की मांग को स्वीकार कर जड़ से मिटाना या बंद करना ही आज इसका सरल- सा एक समाधान है । हाल ही में राजस्थान के पाली जिले के स्थानीय गांव नारलाई के युवा साथियों ने मिलकर गांव में उसके जाति भाई द्वारा करवाये जा रहे कुप्रथा के आयोजन का पूर्णत : बहिष्कार करके अनुसूचित समाज को एक आधूनिक बदलाव व नयी सोच का उम्दा उदाहरण पेश किया है । इस आयोजन को स्थानीय गांव के मेघवाल जाति ने पूर्णत: बंद करने का एक बड़ा फैसला लिया है जो स्वागत योग्य एवं काबिले तारीफ़ है । मरूप्रदेश राजस्थान में अब एक विशाल सामाजिक क्रांति का सूत्रपात हो चूका है । इस दिशा में युवा कॉल्यूमनिस्ट कुमार सुधीन्द्र , पत्रकार हरीश परिहार , सामाजिक जागरूकता के प्रणेता भंवर मेघवंशी , एसएसवाययू राष्ट्रीय संयोजक एवं अनुसूचित समाज के उभरते सामाजिक नेता डॉ. राम मीणा , एसएसवायू राज्य संयोजक दिनेश जोगावत , पूर्व आईजी व युवा दिलों की धड़कन ओटाराम रोहिन , उभरते उद्घोषक हरिश मीणा , दलित टाईगर ब्रिजेश , कांतिलाल मेघवाल, शैलेश मोसलपूरिया , किशन मेघवाल और अनुसूचित समाज के सैकड़ों उभरते युवाओं व प्रबुद्ध क्रातिकारियों ने इस कुप्रथा को जड़ से मिटाने का प्रण लिया है । इस अभियान की शुरूआत एक विशाल स्तर पर किये जाने की एक बड़ी उम्मीद अब जग चूकी है । हमारे समक्ष गांव नारलाई के होनहारों का जज़्बा , हिम्मत ,साहस , नयी सोच ,नयी समझ एक नये रूप में प्रेरणास्त्रोत बन कर उभर रही है । साथियों अब समय आ चूका है एक नया बदलावों का , जिसके माध्यम से हम एक सशक्त , आज़ाद और प्रगतिशील समाज का निर्माण कर सके ।
-रक्षित परमार,उदयपुर

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