Tuesday, June 21, 2016

अनुसूचित जाति की बांसवाडा में ऐतिहासिक रैली

ग्राउंड दलित रिपोर्ट सब से बड़ा गंभीर-14
(दलितों ने भरी हुंकार, आरक्षण हमारा अधिकार)
अनुसूचित जाति की बांसवाडा में ऐतिहासिक रैली
राजस्थान के बांसवाडा जिले में 17 जून 2016 को अनुसूचित जाति के लोगों ने राज्य सरकार की दलित विरोधी नीतियों के खिलाफ बिगुल बजा दिया. दरअसल कारण यह था कि उदयपुर सम्भाग के जिले डूंगरपुर, प्रतापगढ़ और बांसवाडा तथा कोटा संभाग के जिले बारा में अनुसूचित जाति का आरक्षण केवल 5 प्रतिशत ही है जबकि अन्य सभी जिलों में इन्हे 16 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है. पूर्व में इन जिलों में भी अनुसूचित जाति का आरक्षण 16 प्रतिशत ही था लेकिन 22 मार्च 1995 में राज्यपाल द्वारा अध्यादेश जारी कर उदयपुर सम्भाग में 5 प्रतिशत कर दिया. उक्त अध्यादेश अनुच्छेद 244 पैरा 1 के अधीन पांचवीं अनुसुचि के तहत जनजाति उपयोजना क्षेत्र के नाम से जारी हुआ. जो कि असंवैधानिक और अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करते हुए अनुसूचित जाति का 11 प्रतिशत आरक्षण कम कर दिया.
राज्यपाल द्वारा जारी किया उक्त अध्यादेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (1), 16 (4), 19 (1) बी, 19 (एफ), 41, 47 क्लोज़ (1) की धारा 341 इनके साथ ही मानवाधिकार की धारा 7,8 व् 9 का भी ओवर रुल हुआ. राज्यपाल द्वारा जारी किया गया उक्त अध्यादेश 244 में संविधान में वर्णित भूमि, विकास एवं कार्यपालिका के सम्बन्ध में जनजाति के विकास हेतु अधिकार का वर्णन अनुच्छेद में वर्णित है. इसके बावजूद भी राज्यपाल ने आरक्षण को घटाने व् बढ़ाने का अधिकार राज्यपाल के पास नहीं होने के बावजूद उक्त अध्यादेश का दुरूपयोग किया.
क्या है आरक्षण प्रणाली
आरक्षण की कहानी देश में तब शुरू हुई थी जब 1882 में हंटर आयोग बना। उस समय विख्यात समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले ने सभी के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा तथा अंग्रेज सरकार की नौकरियों में आनुपातिक आरक्षण की मांग की थी। बड़ौदा और मैसूर की रियासतों में आरक्षण पहले से लागू था। सन 1891 में त्रावणकोर के सामंत ने जब रियासत की नौकरियों में स्थानीय योग्य लोगों को दरकिनार कर विदेशियों को नौकरी देने की मनमानी शुरू की तो उनके खिलाफ प्रदर्शन हुए तथा स्थानीय लोगों ने अपने लिए आरक्षण की मांग उठाई। 1901 में महाराष्ट्र के सामंती रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज द्वारा आरक्षण शुरू किया गया। 1908 में अंग्रेजों द्वारा पहली बार देश के प्रशासन में हिस्सेदारी निभाने वाली जातियों और समुदायों के लिए आरक्षण शुरू किया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। बशर्ते, यह साबित किया जा सके कि वे औरों के मुकाबले सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। 1950 में SC के लिए 15%, ST के लिए 7.5% आरक्षण की बात कही गई थी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आरक्षण व्यवस्था का उद्देश्य जाति पर जोर देना नहीं, जाति को खत्म करना था। इसके माध्यम से डॉ. आंबेडकर दलितों को स्वावलंबी बनाना चाहते थे। इसीलिए डा. बी आर आंबेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के लिए सन् 1942 में सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की थी। 1950 में अम्बेडकर की कोशिशों से संविधान की धारा 330 और 332 के अंतर्गत यह प्रावधान तय हुआ कि लोकसभा में और राज्यों की विधानसभाओं में इनके लिये सीटें आरक्षित रखी जायेंगी ।
आजाद भारत के संविधान में यह सुनिश्चित किया गया कि नस्ल, जाति, लिंग और जन्म स्थान तथा धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेद भाव नहीं बरता जाएगा साथ ही सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित और अनुसूचित जनजाति की उन्नति के लिए संविधान में विशेष प्रावधान रखे गये.
सभी अनुसूचित जातियां एक साथ
इस ऐतिहासिक रैली से पहले विशाल आम सभा हुई जिसमें अनुसूचित जाति में शामिल 19 अनुसूचित जाति की महिला व् पुरुषों ने भाग लिया. इनमें मेघवाल, कोली, बुनकर, बलाई, वाल्मीकि, ढोली, गर्ग, घासी, मोची, बांसफोड़, वादी, गवारिया, थोरी, खटीक, डबगर, सरगरा, बांसड, कालबेलिया, छाबडिया आदि समाज के अध्यक्ष मैजूद थे. विशाल पण्डाल होने के बावजूद भी पण्डाल छोटा पड़ गया. इसके द्वारा राजस्थान के इतिहास में शायद पहली बार अनुसूचित जाति के लोगों ने उन लोगों को यह करारा जवाब दिया जो ये कहते हैं कि अनुसूचित जाति में एकता नहीं है. समाज के सभी अध्यक्षों ने एक सुर में अनुसूचित जाति के प्रति सरकार की संवेदनहीनता की कड़े शब्दों में भर्त्सना की और अगले चुनावों में इसका परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दे डाली.
स्वतंत्र पत्रकार एवं दलित चिन्तक भंवर मेघवंशी ने इस मौके पर अपने उद्बोधन में कहा कि आज भी दलितों के साथ सामाजिक स्तर पर दोगला व्यवहार किया जाता है. सरकार को चाहिए कि राजस्थान में अनुसूचित जाति को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सभी जिलों में समान रूप से आरक्षण दे और इस भेदभाव को समाप्त किया जाये.
सामाजिक न्याय एवं विकास समिति के सचिव गोपाल राम वर्मा ने कहा की अब दलित राजनितिक पार्टियों के पीछे नहीं है बल्कि राजनितिक पार्टियाँ दलितों के पीछे हैं क्योंकि दलितों में जागरूकता आ गयी है यह रैली इसका जीता जगता उदाहरण है. राज्यपाल का अध्यादेश भी एक राजनितिक षड्यंत्र ही था. यदि आदिवासी जनसंख्या को आधार बनाया गया था तो जहाँ अनुसूचित जाति की जनसँख्या ज्यादा है वहाँ उन्हें अधिक आरक्षण क्यों नहीं है. गंगानगर में अनुसूचित जाति की जनसँख्या 36.6 प्रतिशत, हनुमानगढ़ में 27.8 प्रतिशत, बीकानेर में 27.8 प्रतिशत, करोली में 24.3 प्रतिशत चुरू में 22.1 प्रतिशत, भरतपुर में 21.9 प्रतिशत, दौसा व् नागौर में 21 प्रतिशत तथा इसी प्रकार कई अन्य जिलों में भी 20 प्रतिशत से अधिक है. सरकार को सामाजिक न्याय के सिद्धान्त को अपनाते हुए सभी जिलों में समान रूप से आरक्षण की व्यवस्था करनी होगी. अपने अधिकार के लिए दलित अब चुप बैठने वाले नहीं हैं.
अनुसूचित जाति की एकता ने सभी राजनितिक दलों को सोचने पर मजबूर कर दिया है. आखिर में सरकार को समझना पड़ेगा कि उदयपुर सम्भाग की अनुसूचित जातियों के साथ सोतेला रुख न अपनाए. अनुसूचित जनजातियों को जो लाभ पहुंचना चाहे वो करे लेकिन अनुसूचित जातियों का भी ध्यान रखे. सभा में यह भी निर्णय लिया गया कि यदि अनुसूचित जातियों की मांग नहीं मानी गई तो दो माह बाद लाखों की संख्या में राज्य की राजधानी जयपुर में अनुसूचित जाति के लोग एकत्रित हो कर सरकार की नींद हराम करेंगे.
सभा के बाद अनुसूचित जातियों के लोग रैली के रूप में नारे लगते हुए जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और उन्होंने जिला कलेक्टर को राज्यपाल के नाम ज्ञापन दिया.
( प्रस्तुति एवं लेखन-गोपाल वर्मा )

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