हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक
Gopal Rathi
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आज (18 जून, 1861) हिंदी के प्रथम तिलिस्मी लेखक देवकीनंदन खत्री का जन्म दिन है । उन्होंने चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, काजर की कोठरी, नरेंद्र-मोहिनी, कुसुम कुमारी, वीरेंद्र वीर, गुप्त गोदना, कटोरा भर, भूतनाथ जैसी रचनाएं की। ‘भूतनाथ’ को उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने पूरा किया।
उनके उपन्यासों की भाषा इतनी सरल है कि पांचवीं कक्षा के छात्र भी इन पुस्तकों को पढ़ लेते हैं। पहले दो उपन्यासों ‘चंद्रकांता’ और ‘चंद्रकांता संतति’ के 2000 पृष्ठ से अधिक होने पर भी, एक भी क्षण ऐसा नहीं आता, जहां पाठक ऊब जाएं।
लेखन के 10 वर्षो में ही बहुत अधिक कीर्ति और यश पाने वाले खत्री जी ने 1898 में निजी प्रेस की स्थापना की। उन्होंने अपने प्रेस का नाम ‘लहरी प्रेस’ रखा। देवकीनंदन खत्री के उपन्यासों में कई ऐय्यारों और पात्रों के जो नाम आए हैं वे सब उन्होंने अपनी मित्रमंडली में से ही चुने थे और इस प्रकार उन्होंने अपने अनेक घनिष्ठ मित्रों और संगी साथियों को अपनी रचनाओं के द्वारा अमर बना दिया था।
देवकीनंदन खत्री की सभी कृतियों में जो मनोरंजन, कौतुहल और रोचक सामग्री मिलती है उसका सारा श्रेय देवकीनंदन खत्री के अनोखे और अप्रतिम बुद्धिबल का ही है। भारतेंदु के उपरांत वह प्रथम और सर्वाधिक प्रकाशमान तारे के रूप में हिंदी साहित्य में आए थे। 52 वर्ष की अवस्था में काशी में एक अगस्त, 1913 को देवकीनंदन खत्री का निधन हुआ

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