मेरे पिता श्री प्रकाश भाई ने विद्यार्थी काल में मुज़फ्फर नगर के रेलवे रिकार्ड रूम में आग लगाई और पुलिस की घर में बार बार दबिश पड़ने पर फरार हो गए .
बाद में गांधी जी से पत्र व्यवहार हुआ . उन्होंने अपने आश्रम सेवाग्राम में बुला लिया . पिताजी को नई तालीम के काम में लगा दिया .
आजादी के बाद विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन शुरू किया . पिताजी उस आंदोलन में शामिल हो गए . वर्षों तक अमीरों से ज़मीने मांग कर गाँव के गरीबों में बांटने का काम किया . कभी छह महीने में एक दो दिन के लिए ही घर आते थे .
भूदान आन्दोलन से प्रेरित होकर सरकार ने सीलिंग कानून लागू किया . सरकार के पास बड़े ज़मीदारों की लाखों एकड़ ज़मीन आ गयी . इस ज़मीन को भूमिहीन गरीबों को बांटने का फैसला लिया गया .
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा विनोबा जी के पास गए और कहा कि इस सरकारी ज़मीन को बांटने का काम करने के लिए मेरे पास राजनीति में कोई ईमानदार आदमी नहीं है .आप कोई आदमी दीजिए .
विनोबा जी ने मेरे पिता का नाम बहुगुणा जी को दिया .
बहुगुणा जी ने मेरे पिताजी को केबिनेट मिनिस्टर का दर्ज़ा दिया और ज़मीन बाटने की जिम्मेदारी दी.
पिताजी ने अपने सामाजिक कार्यकर्त्ता साथियों को बुलाया और आन्दोलन के तरीके से बीस लाख एकड़ सरकारी ज़मीन भूमिहीन किसानों में बांटी .
पिताजी आज भी खुद भूमिहीन हैं .
उनका इकलौता बेटा मैं भी भूमिहीन हूँ .
न कोई मकान न बैंक में हज़ार रूपये से ज़्यादा का कभी बैंक बैलेंस .
अट्ठारह साल बस्तर में संस्था चलाई . संस्था में करीब एक हज़ार कार्यकर्ता थे .
लेकिन जब बस्तर छोड़ कर निकला तो मेरे पास सिर्फ तीस हज़ार रूपये थे .
आज भी अगले महीने के मकान किराये की जुगाड हर महीने किसी से कह सुन कर करनी पड़ती है .
लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार कहती है कि मेरे दिल्ली में कई मकान हैं . और मुझे विदेशों से अकूत पैसा मिलता है .
अलबत्ता अपने वो मकान कभी मैंने भी नहीं देखे . सिर्फ रमन सिंह ने देखे हैं .
लेकिन पिता से मिले इस फक्कडपन ने मुझे ताकत बहुत दी है .
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