Monday, June 20, 2016

जहां-जहां जंग चल रही है, वहां-वहां मेला लगने वाला है। इस मेले के खरीदार चेहरे पहचाने जा चुके हैं। साहित्‍य को वामपंथ से मुक्‍त कराने के लिए किसी स्‍वामी की ज़रूरत नहीं है, अपने ही मठाधीश काफी हैं। SAVE NIYAMGIRI Viva Revolucinema Foil Vedanta Lingaraj LingarajLingaraj

आवारा पूंजी प्रायोजित साहित्‍य मेलों की सूची में दो साल पहले जुड़े Kalinga Literary Festival ने इस बार सुब्रमण्‍यम स्‍वामी के उस बयान के कारण ध्‍यान खींचा है कि साहित्‍य को वामपंथ से मुक्‍त होना चाहिए। इस बयान को यदि आप किसी लोकतांत्रिक विमर्श का हिस्‍सा मान रहे हैं तो गलती कर रहे हैं। ज़रा इस आयोजन के आयोजकों पर भी निगाह डाल लें। सारे मौसेरे भाई एक साथ यहां उपस्थित हैं।
इस मेले के पहले संस्‍करण में कुछ सरकारी पीएसयू के साथ टाटा स्‍टील आदि भी प्रायोजक थे जो आज़ादी के पहले से ही ओडिशा की पहाडि़यों को खोद रहे हैं। बाद में इसका मुख्‍य प्रायोजक एक एनजीओ बन गया जिसका नाम है Roots of Odisha Foundation. संस्‍था बदली, लेकिन चेहरे वही रहे। इस फाउंडेशन के साझेदारों की सूचीhttp://www.rootsofodishafoundation.com/partners/ पर जाकर देखिए। उड़ीसा पुलिस और सीआरपीएफ के साथ परम पावन NDTV का नाम भी दिखेगा। आप पूछेंगे कि रिश्‍ता ये कैसा है, नाता ये कैसा है।
दरअसल, एनडीटीवी के मालिक प्रणय राय जब वेदांता कंपनी के खुराफ़ाती मालिक अनिल अग्रवाल के साथ सीएसआर के नाम पर बेटी बचाओ कैम्‍पेन चलाते हैं, तो उसी वक्‍त सीआरपीएफ नियमगिरि के डोंगरिया बेटे को नक्‍सली बताकर मार डालती है। यह विरोध जब सुंदरगढ़ के खंडाधार में पौड़ी भुइयां आदिवासियों तक फैलता है, तो टाटा कंपनी मेला लगवाकर डेमोक्रेसी पर बहस करवाती है। धीरे-धीरे तीन साल में सारे लुटेरे एक हो जाते हैं और दिल्‍ली में बैठा लोकप्रियता के मोतियाबिंद से ग्रस्‍त वही साहित्यिक गिरोह सक्रिय हो उठता है जो जयपुर से गया तक ऐसे कारनामों को जस्टिफिकेशन दिलवाने का आदी हो चुका है। मित्र Satyanand NirupamVineet Kumar, पुरुषोत्‍तम अग्रवाल, Rahul Pandita जैसे तमाम लोग भुवनेश्‍वर दौड़ पड़ते हैं।
नज़र बनाए रखिए। जहां-जहां जंग चल रही है, वहां-वहां मेला लगने वाला है। इस मेले के खरीदार चेहरे पहचाने जा चुके हैं। साहित्‍य को वामपंथ से मुक्‍त कराने के लिए किसी स्‍वामी की ज़रूरत नहीं है, अपने ही मठाधीश काफी हैं।

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