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Mohit K Pandey
नहीं कोई ‘धार्मिक’ कहानी
बिहार-बंगाल से पलायन कर आए दिल्ली के रोहिणी में बसे तमाम मजदूर मुस्लिम परिवार झेल रहे हैं आरएसएस-बीजेपी के नफरतगर्दी वाले एजेंडे की मार
सावधान! यह कहानी भी पलायन की है, लेकिन इस कहानी के सारे पात्र और घटनाएं वास्तविक हैं और सब आपको यहीं अतिस्मार्ट सिटी (चूंकि अब स्मार्टसिटी आधुनिक सिटी को रिप्लेस कर रहा है) दिल्ली में चकाचौंध-धक्कमपेल वाले कॉम्प्लेक्सों पे इठलाती रोहिणी सेक्टर-9 के रजापुर गांव में मिल जाएंगे। इस कहानी में रोज़ा हैं, रोज़ेदार हैं, रमज़ान है, नमाज़ है, लेकिन यह कहानी धार्मिक नहीं है. यह कहानी हमारे समाज की उस कड़वी और गहरी धंसी हुई सच्चाई को बयान करती है, जो कभी अखलाक है, कभी कैराना है, कभी मुजफ्फरनगर है, कभी त्रिलोकपुरी है और कभी तो हमलोगों, टीवी, समाचारों, सूचनाओं से कोसों दूर अकेले में दम तोड़ देती है. तस्लीमुद्दीन उर्फ मास्टर जी रोहिणी-सेक्टर 9 में एक चाय की दुकान चलाते हैं और कटिहार (बिहार) और बंगाल से आए तमाम मजदूरों की तरह रजापुर गांव के दड़बेनुमा कमरों में अपने परिवार के साथ गुजर-बसर करते हैं. पूछने पर पता चला कि यहां पर लगभग 4000 मजदूर परिवार इसी तरह से रहते हैं. ये सारे लोग या तो इस दिल्ली को बनाने में लगे हैं- यानि कि निर्माण मजदूर हैं या फिर रिक्शे पर खींचकर लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं. यहाँ की महिलाएं आधुनिक दौर में कामकाजी महिलाओं के डोमेस्टिक लेबर को रिप्लेस करती हैं, मतलब कि आस-पास के अपार्टमेंट्स (कोठियों) में काम करती हैं. यह गांव राजपूतों का है और ज्यादातर मकानों के मालिक भी यही लोग हैं. और यहां रहने वाले ज्यादातर मजदूर 'मुसलमान' हैं. 22 जून 2016 को जब मास्टरजी अपने परिवार के साथ रोज़ा खोलने बैठे तब 2-3 लोग "निकल साले मुल्ले, बाहर निकल" चिल्लाते हुए उनके दरवाजे को पीटने लगे. दरवाजा न खोले जाने पर वो और भारी संख्या में 50-60 लोग लाठी डंडों से लैस होकर आए और उनके बेटे, बेटी समेत परिवार के तमाम लोगों की जमकर पिटाई की. गालियों में धर्मसूचक शब्दों का बोलबाला था और सामाजिक रूप से गहरे धंसे हुए पूर्वाग्रह को कैसे इन मौकों पर हिंसा की तासीर बना दिया जाता है, इन लोगों की आक्रामकता में साफ झलक रहा था. ये लोग इसी गांव के रहने वाले लोग थे और उनमें से एक इनका मकान मालिक भी था. "मारे तो मारे ही सामान भी तोड़ दिया, और बार-बार कहते रहे तुम मुसलमान लोग रहते ही गंदे तरीके से हो", उनमें से एक महिला ने आगे बढ़कर अपनी गवाही देनी शुरू की. "यह मामला केवल कल का नहीं है, जबसे यहां आए हैं तबसे कभी इ- बात, कभी उ-बात पे हम लोगों की गांव वाले पिटाई कर देते हैं और बार-बार हमारे मुसलमान होने का ताना दिया जाता है", उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा. इतने में कुछ बच्चे ऊपर जमा होने लगे. उस महिला ने अपने बच्चे का सर पकड़कर बोला, "इसने कुछ दिन पहले केले का छिलका नीचे गिरा दिया और गांव के कुछ लोगों ने आकर इसके पापा को 2-4 थप्पड़ लगा दिए. वो लोग देखते नहीं है, राह-चलते कोई मिल जाए और मन कर जाए तो औरत, मर्द, बच्चे किसी की पिटाई कर देते हैं”. इतने में पास खड़े एक बच्चे ने कुछ उछल-कूद करनी शुरू की. वहीं पर खड़ी उसकी मां उसे डांटते हुए बोली, "अब इनके खेलने पर हमें बहुत ध्यान रखना पड़ता है. कब क्या निकल जाए और फिर मार पिटाई का सिलसिला।" रमज़ान के चलते नमाज़ के लिए इन मजदूरों ने तीन छतों को एक महीने के लिए 18000-18000 रु महीने के किराए पर लिया है. बगल की छत की तरफ इशारे करते हुए वहां खड़े एक व्यक्ति ने बताया कि पहले ये छत कम में मिल जाती थी, लेकिन इस बार कुछ मकान मालिक और उसके भाई के आपस की झगड़े की वजह से नहीं मिली और इशारा एक आगे वाली छत की तरफ बढ़ाते हुए वह बोला , "तब वो छत लिए, लेकिन आस-पास वाले उसके मकान मालिक से बोलते रहे कि नमाज़ के लिए इन्हें छत क्यों दे रहे हो. अब पैसा किसको नुकसान करता है, लेकिन हर साल इसी तरह बोला जाता है." इस गांव में मुसलमान मजदूरों के साथ आए दिन गांव के कुछ लोग मार-पिटाई करते रहते हैं. "अब सब लोग खराब थोड़ी न हैं, लेकिन हैं, कुछ लोग तो कह-कह के मारते हैं, मारो सालों मियों को" एक महिला ने गांव की बनती आम छवि में एक छोटी दखलअंदाजी की. "लेकिन क्या बताएं ऐसे-ऐसे फरमान आते हैं कि रहें कि भाग जाएं समझ में नहीं आता" उस महिला ने बात को आगे बढ़ाया. अभी कुछ दिनों पहले यहां पोस्टर लगाकर एलान किया गया कि कोई भी लुंगी पहनकर सड़क पर नहीं घूमेगा। पानी की बोतलें हमें थमाते हुए तस्लीमुद्दीन जी ने बताया कि 2009 से ही रमजान के दौरान होने वाली नमाज को लेकर यहां के लोग गहरी आपत्ति करते हैं और हर तरह की तिकड़में करके उसमें अड़चन डालते हैं. असल में मसला यह है कि आस-पास कोई मस्जिद न होने की वजह से ये मजदूर लोग पास ही के एक एमसीडी पार्क में इजाज़त लेकर ईद की नमाज अदा करते हैं. आरएसस-वीएचपी के भड़काने पर गांव के कुछ लोग किसिम-किसिम से इसको रोकने की कोशिश करते आए हैं और फिर पुलिस की मौजूदगी में हर साल नमाज़ करना पड़ता है. नीचे पार्क के पास आते-आते वहां मौजूद एक केबल एजेंट ने इस तस्वीर को और साफ कर दिया। " अरे यहां तो बजरंग दल- आरएसएस ये ग्रूप तो काम करते ही हैं" इतना बोलकर और पास बढ़ती भीड़ को ताकते हुए वह आगे बढ़ गया. उसी भीड़ में से कानों को हल्की सी एक आवाज सुनाई दी "अरे तो ये मुसलमान लोग रहते भी तो ऐसे हैं". रोहिणी आरएसएस की गतिविधियों का गढ़ माना जाता है. अभी हाल ही में दिल्ली के चुनावी मौसम में आरएसएस-बेजीपी के इशारे पर हुई भड़काऊ बवाना महापंचायत में रोहिणी से खूब लोग शामिल हुए थे. लोगों के पास तमाम ऐसे किस्से हैं, जिनमें इन संगठनों द्वारा सामाजिक रूप से धंसे साम्प्रदायिकता के आम जन मानस को बखूबी इस्तेमाल करने के उदाहरण मिलते हैं. गौरतलब है कि तमाम दंगों को छोटी-छोटी कहासुनी, लड़ाइयों और अफवाहों को हवा देकर इसी साम्प्रदायिक आम जनमानस के जरिए अंजाम दिया जाता है. हालांकि दिल्ली में बीजेपी-आरएसएस को अभी कोई चुनावी फसल नहीं काटनी, लेकिन फिर भी इस साम्प्रदायिक जन मानस को पालते-पोषते रहने और पास के राज्य उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण के लिए दिल्ली में इन फिरकापरस्त संगठनों को अपनी कारगुजारियां दर्ज कराना जरूरी जान पड़ता है. "अब रमजान खत्म होने वाला है, लेकिन कल के लड़ाई-झगड़े से हमारा डर बढ़ गया है", एक महिला ने हमसे चलते-चलते कहा था और वो आगे बोली थीं ऐसे नहीं रह पाएंगे। मजदूरी करने आए थे लेकिन अब ये सब में और जैसे ही उन्होंने अब यहां से चले जाएंगे कहना शुरू किया कई सारी आवाजें उनकी आवाज में मिलकर साथ बोल रही थीं, " हाँ-हाँ, चले जाएंगे नहीं रहेंगे यहां।" मजदूरी करने आए बिहार और बंगाल के इन लोगों को आरएसएस-बेजीपी-बजरंग दल साम्प्रदायिक जनमानस को खाद-पानी देकर बार-बार समाज में 'मुसलमान' होने की एक सामाजिक पहचान का एहसास कराते हैं. इसलिए आरएसस-बीजेपी- बजरंग दल के मंसूबों में कभी दादरी है, तो कभी बवाना, कभी मुजफ्फरनगर तो कभी कैराना और आज रोहिणी का रजापुर। और मकसद नफरतगर्दी। थाने पर जाकर दस्तक दी तो पता चला कि घटना की एफआईआर का भी कुछ अता-पता नहीं है, तो आगे की सुरक्षा के भरोसे कैसे बांधे। इसी दिल्ली से कुछ दिन पहले 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा (अरे नहीं जी जुमला) उछाला गया था, और यहीं से आज स्मार्ट सिटी बनाने का एलान हो रहा है. और फिर भी इतनी अंधेरगर्दी…?
फैक्ट फाइन्डिंग टीम में शामिल आइसा से मोहित, विजय, शिवम, फरहान, भाकपा-माले से कॉम. नरेंदर द्वारा जारी रपट.
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