H L Dusadh Dusadh
गुलबर्ग सोसाइटी काण्ड का फैसला आने के बाद भारतीय न्यायपालिका पर लोग फिर से सवाल खड़ा करने लगे हैं.ऐसे लोग शायद इस अप्रिय सचाई की अनदेखी करते हैं कि भारतीय न्यायपालिका जिनके कब्जे में है,वे समग्र वर्ग की चेतना से पूरी तरह दरिद्र हैं तथा उनकी सोच स्व-जाती/वर्ण की स्वार्थ सरिता के मध्य .ही प्रवाहित होती है.आप लाख कोशिश करके भी उन्हें समग्र-वर्ग की चेतना से समृद्ध नहीं कर सकते .ऐसे में आप भविष्य में भी न्याय की अवधारणा को शर्मसार करनेवाले फैसले देखने/सुनने के लिए अभिशप्त रहेंगे.यदि आप भारत में सचमुच न्याय होते देखना चाहते हैं तो उसके लिए सिर्फ दो ही उपाय हैं.पहला और प्रमुख है,जजों की नियुक्ति में सामाजिक और लैंगिक विविधता का प्रतिबिम्बन.यदि न्यायपालिका में डायवर्सिटी लागू नहीं करवा सकते तो दूसरा और शेष उपाय है ,'जाति-मुक्त समाजो से जजों की आउट सोर्सिंग अर्थात विदेशों,विशेषकर पश्चिमी देशों से जजों को हायर करना.मेरे विचार से जाति-मुक्त समाज में जन्मा कोई व्यक्ति ही विश्व के एकमात्र जातियों के देश में निरपेक्षभाव से फैसला दे सकता है.बहरहाल इस पोस्ट में सुझाये दो उपायों के सिवाय न्यायपालिका को दुरुस्त करने का यदि तीसरा कोई उपाय हो तो उसे बता कर राष्ट्र को उपकृत करें
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