त्रासदी-पूर्ण व्यवस्था और हस्तक्षेप' (एक
परिचर्चा)........
'हस्तक्षेप' से संबन्धित कार्यक्रम हेतु नागपुर आए पलास विस्वास और अमलेंदु जी का सानिध्य हम कुछ छात्रों को भी मिला। छात्रों से लगातार बात करने और उनसे मिलते रहने की उनकी तीव्र इच्छा का ही परिणाम था कि वे कुछ घंटे भर के लिए आए और कई वर्षों तक के लिए हमें सावधान कर गए। सावधान इसलिए क्योंकि पलास जी ऐसे पत्रकारों में रहे हैं जिन्होंने न सिर्फ़ ईमानदारी से अपना कार्य जीवन भर किया है बल्कि साथ ही सत्ता के नव-उपनिवेशवादी हथकंडों को बहुत नजदीक से देखा है। एक हद तक भोगा भी है और एक सीमा तक भोगने के लिए वो लोगों को तैयार भी करते रहे हैं। उनका यह भोगना राज्य के सामने उन्हें निहत्था ही सही पर एक मजबूत विरोधी के रूप में खड़ा करता है। अपने-अपने जीवन को सुविधा-सम्पन्न बनाने के दौर में चाटुकार प्रवृत्ति से लैस राज्य की दलाली करने वाले पत्रकारों से ठीक उलट उनका जीवन-कर्म हमेशा प्रेरणात्मक रहेगा। हम छात्रों के बीच उन्होने आज वर्तमान चुनौतियों से सिर्फ़ हमें अवगत ही नहीं कराया बल्कि उनसे लड़ाई के तरीकों पर भी चर्चा की। सत्ता की कुरूपता पर बैठकी से पहले ही उन्होने कहा कि आवाज को दबाने का षड्यंत्र आज कितना खतरनाक हो उठा है? इसलिए हमें हर क्षेत्र में विकल्प की जरूरत है और इस विकल्प को संसाधनों के अभाव में हमें तैयार करना है। वो यह मानते रहे हैं कि- आंदोलनों की शुरुआत विश्वविद्यालयों से ही होकर गुजरती है। शायद यही कारण भी है कि राज्य सबसे अधिक ध्यान छात्रों को गुमराह करने में ही देता है और अधिकांश छात्र अंजाने इस गुमराही में जी भी रहे होते हैं। जाति-प्रश्न पर बात करते हुए उन्होने आरक्षण -विरोधी मानसिकता के पीछे छुपे षड्यंत्र पर विस्तार-पूर्वक बात करते हुए समानता और एकता तथा सहमति और असहमति के लिए साहस और विवेक पर ज़ोर दिया। आज इस साहस और विवेक की जरूरत को आसानी से महसूस किया जा सकता है। आज लोग वहीं क्यूँ सहमत हैं जहां राज्य है, वर्ण-व्यवस्था है, वहाँ क्यूँ नहीं असहमत हैं जहां से आम लोगों के हित की बातें की जा सकती है? इसका साहस जुटाये वगैर भी अपने आपको महान समझने का भ्रम आखिर हमें किस बूटी से प्राप्त होता है? कम से कम समय में इस तरह के अनेकों प्रश्नों को उन्होने हर किसी के मस्तिष्क में उठाया।
साथ ही अमलेंदु जी ने विस्तार-पूर्वक 'हस्तक्षेप' जिसे हम वैकल्पिक मीडिया कह सकते हैं कि कार्य-प्रणाली पर बात करते हुए हम सभी छात्रों को आमंत्रित किया कि हम उसमें ईमानदारी से लिखें। छात्रों ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे 'हस्तक्षेप' में अपनी भूमिका जरूर अदा करेंगे।
यह परिचर्चा इतनी जल्दबाज़ी में आयोजित की गयी कि विधिवत हम सभी को सूचित भी नहीं कर सके, जिसका हमें बहुत खेद है। एक दिन पहले फोन पर पलास जी से बातचीत हुई और वो अगले दिन दोपहर मिलने आ गए। जैसे-तैसे हम कुछेक छात्र वहाँ बातचीत के लिए माहौल तैयार कर सके। इस तैयारी में मित्र भगवत प्रसाद, कुमार गौरव और वरुण का प्रभावी योगदान रहा।
बातचीत की सफलता इस अर्थ में रही कि उनके जाने के बाद भी मित्र रजनीश अंबेडकर, भगवत जी, शैलेंद्र, श्रवण, केते, गौरव, शावेज, गयास, अफ़जल आदि मित्रों ने इन विषयों पर गंभीरता से घंटों चर्चा की।
(मित्र भगवत जी के कैमरे से ये तस्वीरें)......
......reporting....... Sanjeev 'majdoor' jha.
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